2021 तक 490 किलोमीटर लंबे नेटवर्क के साथ विश्व का तीसरा सबसे लंबा नेटवर्क बनने जा रही दिल्ली मेट्रो रेल कॉरपोरेशन यानी दिल्ली मेट्रो के लिए लगातार दूसरा साल और मौका है जब उसके पहिये थमने की नौबत आते-आते बची। पिछले साल (2017) जुलाई में भी कर्मचारियों की हड़ताल के चलते मेट्रो के ठप होने के बात आई थी, लेकिन प्रबंधन ने बातचीत के जरिये मामला किसी तरह सुलझा लिया, लेकिन इस बार तो दिल्ली हाईकोर्ट ने दखल नहीं दिया होता तो मेट्रो के पहिये वास्तव में थम सकते थे। पिछले एक साल के दौरान दो बार किराया बढ़ाकर भी घाटे में चल रही चमकती-दमकती दिल्ली मेट्रो के लिए हालात अच्छे नहीं हैं, क्योंकि अपने परिचालन के 16 साल बाद भी वह घाटे में है। 
कहां-कहां पर आता है मेट्रो पर खर्च
दिल्ली मेट्रो परिचालन व यात्री किराये से मुनाफे में रफ्तार भरने वाली दुनिया की पांच मेट्रो सिस्टम में शामिल है। विस्तार परियोजनाओं के कारण लिए गए कर्ज को चुकाने के बाद वह घाटे में आती है। फिलहाल दिल्ली मेट्रो 300 करोड़ रुपये से अधिक के घाटे में चल रही है। इस नुकसान की भरपाई के लिए दिल्ली-एनसीआर के यात्रियों पर भारी भरकम किराया वृद्धि का बोझ डाला गया है, वह भी एक साल के दौरान दो बार। डीएमआरसी अधिकारियों की मानें तो ऊर्जा में 105 फीसद, कर्मचारी खर्च में 139 फीसद और मरम्मत से जुड़े कामों में 213 फीसद से अधिक का इजाफा हुआ है। मेट्रो प्रबंधन के मुताबिक, कुशलतापूर्वक चलने के बावजूद मेट्रो को 378 करोड़ रुपये का घाटा हर साल हो रहा है।
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