झारखंड में पत्थलगड़ी आंदोलन ने खूनी रंग अख्तियार कर लिया है. जमीन और जंगल बचाने को लेकर शुरू हुआ ये आंदोलन अब हिंसा की राह पकड़ चुका है.
नक्सलियों की मांद समझे जाने वाले पश्चिमी सिंहभूम जिले के गुदड़ी प्रखंड के बुरुगुलीकेरा गांव में पत्थलगड़ी समर्थकों ने पत्थलगड़ी का विरोध करने पर उप मुखिया समेत सात ग्रामीणों की पीट-पीटकर हत्या कर दी. पत्थलगड़ी समर्थकों ने लाठी-डंडों और टांगी से लोगों को मारा और घने जंगल में उनकी लाशें फेंक दी.
झारखंड पुलिस के आईजी (ऑपरेशन) साकेत कुमार ने कहा कि ठेठ ग्रामीण इलाके में स्थित होने की वजह से पुलिस को घटनास्थल बुरूगुलिकेरा पहुंचते-पहुंचते रात हो गई. मंगलवार रात को पुलिस यहां पहुंची.
रात होने की वजह से पुलिस को डेड बॉडी का पता नहीं चल पा रहा था, इसके अलावा नक्सल प्रभावित होने की वजह से खतरा और भी बढ़ गया था. रात भर सर्च ऑपरेशन के बाद घटनास्थल से चार किलोमीटर दूर सात लाशें बरामद की गई है.
झारखंड के नवनिर्वाचित सीएम हेमंत सोरेन के लिए ये घटना पहली चुनौती है. बता दें कि हेमंत सोरेन ने सीएम बनते ही उन्होंने अपनी कैबिनेट की पहली बैठक में 10000 लोगों पर पत्थलगड़ी से जुड़े मामलों को वापस ले लिया था. तब हेमंत सोरेन को उम्मीद थी कि उनकी पहल के बाद आंदोलन शांत हो जाएगा. लेकिन पत्थलगड़ी समर्थकों द्वारा 7 लोगों की हत्या राज्य सरकार सकते में हैं.
इस घटना के बाद हेमंत सोरेन ने ट्वीट कर कहा कि पश्चिम सिंहभूम की घटना दुर्भाग्यपूर्ण है. झारखंड पुलिस इस मामले की जांच कर रही है और सर्च ऑपरेशन जारी है. उन्होंने कहा कि झारखंड में कानून का राज है और दोषियों के खिलाफ कानूनन कार्रवाई की जाएगी. हेमंत सोरेन इस मामले की सभी संबंधित अधिकारियों के साथ समीक्षा करेंगे और आगे की रणनीति तय करेंगे.
पश्चिमी सिंहभूम के एसपी इंद्रजीत महथा ने कहा कि पत्थलगड़ी आंदोलन को लेकर मंगलवार को गांव में एक मीटिंग बुलाई गई थी. इसी दौरान विवाद हो गया. इसके बाद पत्थलगड़ी समर्थकों ने 7 लोगों को वहां से उठा लिया. इनमें उपमुखिया जेम्स भी शामिल थे.
पत्थलगड़ी आंदोलन झारखंड, छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल के आदिवासी और नक्सल प्रभावित इलाकों में चलने वाला आंदोलन है. इसके तहत आदिवासी अपनी जमीन और जंगल पर सार्वभौम दावा करते हैं. यानी कि वे इन प्राकृतिक संपतियों का मालिक खुद को बताते हैं और यहां राज्य का कानून भी नहीं चलने देने की बात करते हैं.
पत्थलगड़ी आंदोलन का नारा है. न लोकसभा न विधानसभा, सबसे ऊपर ग्रामसभा. इसके तहत आदिवासी एक पत्थर गाड़ देते हैं. गाड़े गए पत्थरों पर लिखा रहता है कि इन क्षेत्रों में संसद या विधानसभा का कोई भी सामान्य कानून लागू नहीं है और यहां पर बाहरी व्यक्तियों का प्रवेश भी वर्जित है.