हरियाणा, उत्तर प्रदेश और दिल्ली के बीच से होकर बहने वाली यमुना नदी…यह वही नदी है जिस पर हर साल इन तीनों राज्यों के बीच जमकर राजनीति होती है…कभी गंदे पानी के लिए तो कभी हथनीकुंड बैराज से यमुना में अधिक पानी छोड़ दिए जाने को लेकर…कुरुक्षेत्र, यमुनानगर, करनाल, सोनीपत, पानीपत और फरीदाबाद का काफी बड़ा एरिया यमुना के किनारों से सटा है। इस नदी के मुहाने पर बसे गांवों में लाखों मतदाता ऐसे हैं जिन्हें हर साल यमुना के उफान का दंश झेलना पड़ता है।
यमुना किनारे सटे इन गांवों में न तो रसोई गैस बड़ा चुनावी मुद्दा है और न ही बीपीएल का अनाज। लोगों ने लंबे समय से राजनेताओं की शक्ल तक नहीं देखी। फिर भी यहां मतदाताओं की जुबान पर मोदी का नाम पूरी शिद्दत के साथ चढ़ा हुआ है। एक अलग ही दुनिया में रहने वाले इन लोगों की सुध और राय लेने के लिए मैं सबसे पहले नबियापुर गांव पहुंचा।
उत्तर प्रदेश और हरियाणा की सीमा के बीच इस गांव में करीब 35 साल पुराना एक गुरुद्वारा है। यमुना जब भी रौद्र रूप धारण करती है तो आसपास के डबकोली, डेरा सीकलीघर, तलवाना, टापू, नग्गल, सैयद छपरा और जफ्ती छपरा के लोगों तथा उनकी फसलों व पशुओं को आगोश में ले लेती है।
गुरुद्वारा नबियापुर के सेवादार गुरनाम सिंह और बीबी गुरबख्श कौर बताते हैं कि जब भी यमुना में बाढ़ आती है तो यह गुरुद्वारा सुरक्षित रहता है। आसपास के गांवों के लोग इस गुरुद्वारे में आकर शरण लेते हैं।
गुरुद्वारे में गुरुग्रंथ साहिब के भोग के साथ यमुना को भी भोग लगाया जाता है। यमुना के प्रकोप से बचने के लिए आसपास के सैकड़ों लोग हर साल अखंड पाठ के बाद पंचायत की तरफ से सुहाग श्रृंगार यमुना को भेंट करते हैं।
इंद्री के डबकोली गांव की तरफ बढऩे पर यहां धनोरा स्कैप के नाम से एक गंदा नाला नजर आता है। यमुनानगर के मिद्दा से तमाम गंदा पानी इस नाले के जरिये लोगों की सांसों में घुल रहा है। नग्गल के गुरमीत और रंदौली के सुखविंद्र का कहना है कि कभी किसी नेता या उम्मीदवार ने हमें इस समस्या से निजात दिलाने की कोशिश नहीं की।
नन्हेड़ा के राजकुमार और प्रवेश कुमार कहते हैं कि मोदी के अलावा उन्हें कुछ नहीं सूझता। इंद्री हलके में भाजपा ने खासे काम किए हैं। डेरा नबियाबाद के जोगीराम यमुना की तरफ इशारा करते हुए बताते हैं कि इस बार पहली दफा यमुना तीन बार उफनकर आई। जीरी और गन्ने की तमाम फसल बर्बाद हो गई।
सरकार ने यमुना के किनारे स्टड तो लगवाए, लेकिन न तो वह लंबे हैं और न ही ऊंचे। यह हालात करनाल से लेकर धुर फरीदाबाद तक है। यमुना में गंदे पानी को छोडऩे का सिलसिला भी कम नहीं होता।
सोनीपत के नजदीक यमुना दिल्ली की ओर प्रस्थान करती है और खेड़ा के लोग अपने काम की धुन में व्यस्त हैं। उन्हें अगर मलाल है तो सिर्फ यही कि यमुना के नाम पर राजनीति करने वालों को न यमुना की चिंता है और न इसके किनारे बसे लाखों लोगों की फिक्र। इसके बावजूद उन्हें मोदी के अलावा और कुछ मंजूर नहीं।
वेदों में कालिंदी के नाम से जाने जानी वाली यमुना नदी उत्तराखंड के उत्तरकाशी स्थित कालिंद पर्वत पर यमुनोत्री से निकलती है। गंगा की सहायक नदी यमुना कलेसर के समीप ताजेवाला से हरियाणा में प्रवेश करती है। फरीदाबाद जिले के हसनपुर से पूर्व में मुड़कर यह पौराणिक नदी उत्तर प्रदेश की सीमा में चली जाती है।
हरियाणा में करीब 320 किलोमीटर बहने वाली यमुना के किनारे यमुनानगर, कुरुक्षेत्र, करनाल, सोनीपत, पानीपत और फरीदाबाद के बड़ी संख्या में गांव सीधे जुड़े हैं।