सूडान की सेना को बड़ी कामयाबी, खार्तूम रिपब्लिकन पैलेस पर फिर से किया कब्जा

सूडान की सेना ने शुक्रवार को कहा कि दो वर्षों तक चले संघर्ष के बाद उसने खार्तूम में रिपब्लिकन पैलेस पर फिर से कब्जा कर लिया है। देश की सत्ता का यह केंद्र राजधानी में प्रतिद्वंद्वी अर्धसैनिक बलों का अंतिम अत्यंत सुरक्षित गढ़ था।

सैनिक परिसर के अंदर
सरकारी मंत्रालयों से घिरे रिपब्लिकन पैलेस पर कब्जे को सूडान की सेना की अर्धसैनिक रैपिड सपोर्ट फोर्सेज (आरएसएफ) के विरुद्ध एक बड़ी प्रतीकात्मक जीत मानी जा सकती है। एक सूडानी सैन्य अधिकारी ने कैप्टन का एपोलेट पहनकर वीडियो में यह घोषणा की और पुष्टि की कि सैनिक परिसर के अंदर हैं।

हालांकि इसका अर्थ यह नहीं कि युद्ध समाप्त हो गया है, क्योंकि प्रतिद्वंद्वी बल का अभी भी सूडान के पश्चिमी डरफुर एवं अन्य क्षेत्र में कब्जा है। इंटरनेट मीडिया में जारी वीडियो में सैनिक रमजान के 21वें दिन की गतिविधियों को दिखा रहे हैं।

सेना ने पैलेस पर कब्जा कर लिया है- सूडान के सूचना मंत्री
कैप्टन की वर्दी में एक सूडानी सैन्य अधिकारी ने वीडियो में घोषणा की कि सैनिक परिसर के भीतर हैं। सूडान के सूचना मंत्री खालेद अल-ऐसर ने एक्स पर पोस्ट में कहा है कि सेना ने पैलेस पर कब्जा कर लिया है। आज ध्वज ऊंचा उठा और जीत मिलने तक अभियान जारी रहेगा।सेना प्रमुख जनरल अब्देल-फतह बुरहान के नेतृत्व में हाल के महीनों में इसने लगातार प्रगति की है। इसका अर्थ यह है कि अप्रैल 2023 में सूडान में युद्ध शुरू होने के बाद जनरल मोहम्मद हमदान डागालो के नेतृत्व में प्रतिद्वंद्वी रैपिड सपोर्ट फोर्सेज को खार्तूम की राजधानी से बाहर निकाल दिया गया है।

लड़ाई अभी नहीं रुकेगी
समूह ने तुरंत नुकसान को स्वीकार नहीं किया, जिससे संभवतः लड़ाई नहीं रुकेगी क्योंकि आरएसएफ और उसके सहयोगी अभी भी सूडान में अन्य क्षेत्रों पर कब्जा किए हुए हैं। गुरुवार देर रात, आरएसएफ ने दावा किया कि उसने सूडानी शहर अल-मलीहा पर कब्ज़ा कर लिया है, जो उत्तरी दारफुर में एक रणनीतिक रेगिस्तानी शहर है। सूडान की सेना ने अल-मलीहा के आसपास लड़ाई की बात स्वीकार की है, लेकिन यह नहीं कहा है कि उसने शहर खो दिया है।

युद्ध में 28,000 से ज्यादा लोग मारे गए हैं
संयुक्त राष्ट्र बाल एजेंसी के प्रमुख ने कहा है कि इस संघर्ष ने दुनिया का सबसे बड़ा और मानवीय संकट पैदा कर दिया है। युद्ध में 28,000 से ज्यादा लोग मारे गए हैं, लाखों लोगों को अपने घर छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा है और कुछ परिवार देश के कई हिस्सों में फैले अकाल के कारण जिंदा रहने के लिए घास खाने को मजबूर हैं। अन्य अनुमानों के अनुसार मरने वालों की संख्या कहीं ज्यादा है।

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