शरीर में पथरी यानि स्टोन होना काफी कॉमन समस्या है। पथरी की वजहें और इसके इलाज के बारे में एक्सपर्ट्स से बात करके पूरी जानकारी दे रहे हैं चंदन चौधरी।
डॉ. प्रदीप दुआ, अनुसंधान अधिकारी, आयुर्वेद, आयुष मंत्रालय
डॉ. अमरेंद्र पाठक, सीनियर कंसल्टंट
डॉ. राजीव सूद, डिपार्टमेंट हेड, यूरॉलजी, आरएमएल हॉस्पिटल
डॉ. अनूप कुमार यूरॉलजी डिपार्टमेंट, सफदरजंग हॉस्पिटल
डॉ. शुधींद्र सचदेव, सीनियर होम्योपथी
दरअसल, पथरी की बीमारी काफी कॉमन है और इसका इलाज भी आसान है। इसमें शरीर के कुछ अंगों में मिनरल और सॉल्ट जमकर पत्थर का रूप ले लेते हैं। इसे पथरी कहते हैं। यह मूंग दाल से लेकर टेनिस बॉल के साइज तक हो सकती है। पथरी यानि स्टोन शरीर में चार जगहों पर हो सकती है:
-किडनी, यूरेटर (पेशाब की नली) और यूरिनरी ब्लैडर (पेशाब की थैली) में। यह पूरा एरिया पथरी होने के लिहाज से काफी संवेदनशील है।
-लार बनाने वाले स्लाइवा ग्लैंड्स में। ये ग्लैंड्स मुंह के अंदर होते हैं और कभी-कभार यहां भी पथरी हो जाती है। हालांकि ऐसे मामले बहुत कम होते हैं। पथरी के कुल मामलों में एक फीसदी भी स्लाइवा ग्लैंड्स की पथरी के नहीं होते।
-खाना पचाने वाले पैनक्रियाज ग्लैंड में। यह पथरी भी कॉमन नहीं है।
सबसे कॉमन है किडनी की पथरी और फिर गॉल ब्लैडर की। दोनों पथरी में ही तेज दर्द होता है। जब पथरी एक जगह से दूसरी जगह जाने की कोशिश करती है तो दर्द होता है। यह दर्द किडनी में भी हो सकता है और यूरेटर में भी। अगर गॉल ब्लैडर में पथरी है तो सीधे हाथ की तरफ पेट के ऊपरी हिस्से में दर्द होता है। हाथ लगाने पर दर्द बढ़ जाता है। किडनी की पथरी में पीछे से होते हुए दर्द आगे की तरफ आता है और फिर जननांगों की तरफ जाता है।
शरीर में कैल्शियम या प्रोटीन की मात्रा ज्यादा होना।
-ज्यादा नमक या प्रोटीन डाइट जैसे कि मटन, चिकन, पनीर, फिश, अंडा, दूध आदि ज्यादा खाना।
-कुछ क्षेत्र विशेष से जुड़ा होना। पहाड़ी इलाकों, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान जैसे उत्तरी इलाकों में इसका खतरा ज्यादा है।
-गर्म जगहों पर काम करना जैसे कि भट्ठी के पास काम करने वाले लोग या ड्राइवर।
-पथरी होने की प्रवृत्ति होना। दरअसल, हमारे यूरीन में कुछ ऐसे तत्व होते हैं, जो शरीर में स्टोन बनने से रोकते हैं। ये तत्व हैं साइट्रेट, विटामिन बी 6, मैग्नीशियम, कुछ खास तरह के प्रोटीन आदि। जिन लोगों में ये तत्व नहीं होते, उनमें स्टोन बनने की आशंका बढ़ जाती है। अगर इस समस्या की फैमिली हिस्ट्री है तो दिक्कत बढ़ जाती है। ऐसे लोगों को ज्यादा मात्रा (दिन भर में करीब 12-15 गिलास) पानी पीना चाहिए। अगर शरीर में ज्यादा मात्रा में पानी होगा तो पेशाब कम गाढ़ा होगा और पथरी नहीं बनेगी।
-यूरिनरी ब्लैडर यानी मूत्राशय की बनावट में कोई गड़बड़ी होना।
-लंबे समय तक बेड पर लगातार लेटे रहना जैसे कि पैरालिसिस या कमर की हड्डी टूटने वाले मरीज।
-लगातार कब्ज रहना।
-किडनी में इंफेक्शन होना।
स्टोन 4 तरह के होते हैं
सिस्टीन स्टोन – यह स्टोन उन लोगों में ज्यादा बनता है जिनमें अनुवांशिक विकार सिस्टीनुरिया होता है। इस प्रकार की पथरी में सिस्टीन (एक एसिड जो शरीर में पैदाइशी होता है) का रिसाव पेशाब में होता है।
स्ट्रावाइट स्टोन – इस तरह की पथरी ज्यादातर यूरिनरी ट्रैक इन्फेक्शन (UTI) से पीड़ित महिलाओं में पाई जाती है। यह स्टोन किडनी में इन्फेक्शन की वजह से होता है। साइज में बड़ा होने पर यह पेशाब में रुकावट पैदा कर सकता है।
यूरिक ऐसिड स्टोन – यह स्टोन महिलाओं के मुकाबले पुरुषों में ज्यादा होता है। जब पेशाब में एसिड की मात्रा ज्यादा होती है तो यह बनता है। प्यूरिन से भरपूर आहार से पेशाब में एसिड का स्तर बढ़ सकता है।
कैल्शियम स्टोन – कैल्शियम स्टोन किडनी में होने वाली पथरी में सबसे कॉमन है। ये कैल्शियम ऑक्सलेट, फॉस्फेट या मेलिएट से बनते हैं। चिप्स, मूंगफली, चॉकलेट, चुकंदर और पालक में ऑक्सलेट की मात्रा ज्यादा होती है। इन्हें ज्यादा मात्रा में खाने से कैल्शियम स्टोन की आशंका बढ़ जाती है।
ऐसे पहचानें
1. पेट में दर्द होना 2. पेशाब करते समय दर्द होना 3. पेशाब का पीला होना 4. पेशाब में बहुत ज्यादा बदबू होना 6. पेशाब में खून आना 5. उलटी जैसा लगना
कौन-सी जांच
यूरिन टेस्ट दर्द की शिकायत पर जब मरीज डॉक्टर के पास आता है तो सबसे पहले यूरिन टेस्ट किया जाता है। अगर इसमें ब्लड या क्रिस्टल मिलते हैं तो इसे पथरी का लक्षण माना जाता है। इसके बाद अल्ट्रासाउंड किया जाता है।
कीमतः 120-150 रुपये लगभग
अल्ट्रासाउंड
दर्द की शिकायत पर मरीज का अल्ट्रासाउंड किया जाता है। ज्यादातर मामलों में अल्ट्रासाउंड में पथरी दिख जाती है।
कीमतः 500-1000 रुपये लगभग
सीटी स्कैन
कई बार कब्ज, गैस या फिर ढंग से अल्ट्रासाउंड न करने से पथरी अल्ट्रासाउंड में नहीं दिखती। तब सीटी स्कैन किया जाता है।
कीमतः 5000-8000 रुपये लगभग
अगर किडनी खराब हो गई है तो न्यूक्लियर स्कैन करते हैं। इस टेस्ट से पता लगता है कि किडनी कितनी खराब हुई है। यह टेस्ट हर जगह नहीं होता। कीमतः 6000-7000 रुपये लगभग
कब हो सकती है खतरनाक
– कई बार पथरी की वजह से किडनी गुब्बारे की तरह फूल जाती है और तेज दर्द हो जाता है। इससे धीरे-धीरे किडनी खराब हो जाती है। अलोपैथी में गॉलब्लैडर की पथरी में गॉलब्लैडर को निकाल देने के अलावा कोई और दूसरा इलाज नहीं है।
– कभी-कभी लापरवाही बरतने और देरी करने से पथरी जानलेवा हो सकती है। जो पथरी इन्फेक्शन से होती है, उससे किडनी भी फेल हो सकती है। अगर डायबिटीज के किसी मरीज को पथरी है तो गैस बनने के साथ-साथ उसके लिए खतरा कुछ ज्यादा रहता है।
अलोपथी
आमतौर पर पथरी का इलाज देश के हर कोने में उपलब्ध है। डॉक्टर पथरी निकालने के लिए पहले उसका साइज देखते हैं। अगर स्टोन बहुत छोटा यानी आधा सेंटीमीटर से छोटा है तो थोड़ा समय दिया जाता है ताकि यह खुद से निकल जाए। इसके लिए दवाएं दी जाती हैं। आधा सेंटीमीटर से छोटी पथरी के लिए मरीज को अल्फा ब्लॉकर दवाएं जैसे कि टैमसुलोसिन (Tamsulosin), सिलोडोसिन (Silodosin) आदि दी जाती हैं। ये जेनरिक नेम हैं और मार्केट में अलग-अलग ब्रैंड नेम से मिलती हैं। इन दवाओं से पेशाब की नली थोड़ी चौड़ी हो जाती है, जिससे छोटे स्टोन निकल सकते हैं। अगर मरीज को सूजन आ रही है तो उसे दूसरी दवा दी जाती है। अगर खुद निकलने वाली पथरी नहीं है तो फिर ऑपरेशन किया जाता है।
– पहले तो चीड़-फाड़ से पथरी का इलाज होता था। अब स्पेशलाइज सेंटर में दूरबीन, रेजर या पीठ में छेद करके इसे निकाला जाता है। पथरी को यूरॉलजिस्ट निकालते हैं। दिल्ली में एम्स, राम मनोहर लोहिया, सफदरजंग जैसे बड़े सरकारी अस्पतालों में पथरी की समस्या से निजात पाने में खर्चा नहीं आता है। इसी तरह बाकी राज्यों के सरकारी अस्पतालों में भी मुफ्त इलाज की सुविधा उपलब्ध है। यहां मरीजों को सिर्फ दवा आदि का खर्च वहन करना पड़ता है। सरकारी अस्पतालों में पथरी के ऑपरेशन के लिए 15 से 18 हजार रुपये खर्च आता है। प्राइवेट अस्पतालों में एक लाख रुपये तक का खर्च हो सकता है।
गॉल ब्लैडर की पथरी को दूरबीन से ही निकाल देते हैं। इसमें पथरी तब बनती है, जब गॉल ब्लैडर काम करना बंद कर देता है। पैनक्रियाज़ यानि पाचन वाली थैली में होने वाली पथरी को भी सर्जरी करके निकालते हैं। इसी तरह किडनी की पथरी को भी ऑपरेशन करके निकालते हैं। अगर स्टोन एक सेंटीमीटर से कम है तो बिना छेद किए हुए भी उसे लेजर से तोड़ दिया जाता है और वह चूरा बनकर बाहर निकल जाता है। अगर पथरी का साइज एक से दो सेंटीमीटर है तो फिर मरीज की पीठ के तरफ से छेद किया जाता है। फिर माइक्रोस्कोप से पथरी तक पहुंच कर उसे चूरा कर बाहर निकाल दिया जाता है। अगर पथरी नीचे यूरेटर (मूत्रवाहिका) में आ गई है तो पेशाब के रास्ते दूरबीन से बिना चीड़-फाड़ पथरी को चूरा कर बाहर निकाल दिया जाता है।
– यूरेटर में स्टोन है तो उसी दिन दूरबीन से तोड़ कर उसी दिन छुट्टी कर देते हैं। अगर किडनी के अंदर छोटी पथरी है तो लिथोट्रपसी लगा देते हैं। ये एक तरह की रेज़ यानी किरणें होती हैं, जो अंदर जाकर पथरी को तोड़ देती हैं। उसमें मरीज को अस्पताल में भर्ती भी नहीं करना पड़ता। हालांकि यह सुविधा अभी चुनिंदा अस्पतालों में ही है। अगर किडनी में बड़ा स्टोन है तो उसमें पीठ में छेद करके पथरी निकालते हैं और उसमें दो दिन भर्ती रखते हैं।
होम्योपथी
किडनी में पथरी है तो उन्हें दवा देकर तोड़ दिया जाता है। कुछ पथरी साइज में छोटी हो जाती हैं तो कुछ बिल्कुल चूरा बन जाती हैं। फिर ये पेशाब के रास्ते निकल जाती हैं।
-इस बीच डॉक्टर लगातार किडनी फंक्शन टेस्ट (KFT) कराकर चेक करते रहते हैं कि कहीं पथरी का असर किडनी पर तो नहीं पड़ रहा। उसी के अनुसार दवा और उसकी डोज आदि तय की जाती है।
-कई बार ऑपरेशन के बाद भी दोबारा पथरी बन जाती हैं। ऐसे में होम्योपथी दवाएं काफी कारगर होती है और वे दोबारा पथरी बनने से रोकने में मदद करती हैं।
-किडनी की पथरी के इलाज के लिए नक्सवोमिका 30 (Nux Vomica), कैंथेरिस 30 (Cantharis), बर्बरिस वुल्गरिस (Berberis Vulgaris (Q) आदि दवाएं दी जाती हैं।
-गॉल ब्लैडर में पथरी पित्त के गाढ़ा होने से होती है। इस पित्त को दवाओं से वापस लिक्विड बनाया जाता है। ऐसा होने पर गॉल ब्लैडर को पथरी से मुक्ति
मिल जाती है।
-कैल्केरिया कार्ब 30 (Calcarea Carb), लायकोपोडियम 30 (Lycopodium), चेलिडोनियम (Chelidonium (Q) आदि
दवाएं दी जाती हैं।