इस्लामाबाद| पाकिस्तान के सर्वोच्च न्यायालय ने गुरुवार को कहा कि पनामा पेपर्स मामले में जमा किए गए दस्तावेजों से साबित होता है कि तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने संयुक्त अरब अमीरात स्थित कंपनी से अगस्त 2013 में वेतन प्राप्त किया था, जबकि प्रधानंत्री पद से अयोग्य किये जाने के बाद नवाज ने कहा था, कि उन्होंने कभी किसी कंपनी से वेतन लिया ही नहीं है. जियो न्यूज की रिपोर्ट के मुताबिक, यह टिप्पणी न्यायमूर्ति आसिफ सईद खोसा की अगुवाई वाली पांच सदस्यीय शीर्ष अदालत की पीठ ने शरीफ परिवार और वित्तमंत्री इशाक डार द्वारा 28 जुलाई के फैसले के खिलाफ दायर की गई समीक्षा याचिका पर दोबारा सुनवाई के दौरान की. अदालत ने अपने 28 जुलाई के फैसले में शरीफ को प्रधानमंत्री पद से बेदखल कर दिया था…
कभी वेतन प्राप्त करने का दावा नहीं किया
शीर्ष अदालत की खंडपीठ के दूसरे सदस्यों में न्यायमूर्ति गुलजार अहमद, न्यायमूर्ति इजाजुल एहसान, न्यायमूर्ति शेख अजमत सईद व न्यायमूर्ति एजाज अफजल खान शामिल हैं. शरीफ का प्रतिनिधित्व करते हुए वरिष्ठ वकील ख्वाजा हारिस ने तर्क दिया कि उनके मुवक्किल ने एफजेडई कैपिटल से कभी भी कोई वेतन प्राप्त करने का दावा नहीं किया. उन्होंने जोर देकर कहा कि सांसद को अयोग्य करार देने के लिए उचित मुकदमे की जरूरत थी, हारिस ने तर्क दिया कि यदि उनके चुनाव को अमान्य ठहराया जा रहा है तो सिर्फ शरीफ को एक कार्यकाल से रोका गया है.
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न्यायमूर्ति एजाज ने टिप्पणी की कि शरीफ ने वेतन खाते को प्रकट नहीं किया और उन्होंने कहा कि अदालत में जमा किए गए दस्तावेजों में कहा गया है कि उन्होंने (शरीफ) अपने एफजेडई कैपिटल के खाते में अगस्त 2013 में वेतन प्राप्त किया है. न्यायमूर्ति एजाज ने कहा कि इस संबंध में प्रासंगिक रिकॉर्ड जेआईटी के खंड नौ में मौजूद था.