भारत और चीन के बीच जारी तनाव को कम करने की कोशिश लगातार जारी है. अब पूर्वी लद्दाख के चुशूल में कल भारत और चीन के बीच कोर कमांडर-स्तरीय वार्ता होगी. वार्ता मुख्य रूप से वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के साथ विघटन के दूसरे चरण की प्रक्रिया को लेकर होगी. सूत्रो से मिली जानकारी के मुताबिक भारत- चीन के बीच लेफ्टिनेंट जनरल स्तर की बैठक में पूर्वी लद्दाख में गतिरोध वाले स्थानों से सैनिकों को पीछे हटाने के कदमों पर चर्चा होगी.
इस दौरान होनी वाली बातचीत मुख्य रूप से वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर पीछे हटने के दूसरे चरण पर केंद्रित होगी. भारतीय सेना ने इस बैठक के सकारात्मक रहने की उम्मीद भी जताई है.
Corps Commander-level talks between India and China to be held tomorrow at Chushul in Eastern Ladakh. The talks will focus mainly on the second phase of disengagement along the Line of Actual Control (LAC): Indian Army officials pic.twitter.com/rkAcFevKiH
— ANI (@ANI) July 13, 2020
माना जा रहा है कि इस मीटिंग में एलएसी पर दोनों देशों की सेनाओं के हेवी बिल्ट-अप को कम करने के साथ-साथ फिंगर एरिया और डेपसांग प्लेन्स पर चर्चा हो सकती है.
सूत्रों की मानें तो चीनी सेना ने फिंगर एरिया नंबर चार (04) से अपने कैंप और गाड़ियां तो पीछे हटाकर फिंगर 5 पर पहुंचा दिए हैं, लेकिन उसके कुछ सैनिक अभी भी फिंगर 4 की रिज-लाइन पर मौजूद हैं. जबकि डिसइंगेजमेंट प्रक्रिया के तहत भारतीय सैनिक फिंगर 3 तक पीछे हट गए हैं. इसके अलावा फिंगर 8 से फिंगर 5 तक भी चीनी सेना बड़ी तादाद में मौजूद है. दोनों देशों की सेनाओं के बीच टकराव कम करने के लिए बेहद जरूरी है कि चीनी सैनिक यहां अपना जमावड़ा कम करें. क्योंकि फिंगर-8 तक भारत अपना दावा करता है और इस इलाके में पहले पैट्रोलिंग भी करते आए थे.
डेपसांग प्लेन्स में भी टकराव की स्थिति
दौलत बेग ओल्डी यानि डीबीओ के करीब डेपसांग प्लेन्स में भी भारत और चीन के सैनिकों के बीच टकराव की स्थिति बनी हुई है. डेपसांग प्लेन्स का मुद्दा भी इस मीटिंग में उठ सकता है. इसके अलावा एलएसी पर दोनों देशों के सैनिकों की संख्या कए कम करने का मुद्दा भी इस मीटिंग में उठ सकता है.
क्या है मामला
बता दें कि पिछले महीने भारत-चीन के बीच सीमा पर स्थिति तब बिगड़ गई जब 15 जून को गलवान घाटी में दोनों देशों के सैनिकों के बीच हुई झड़प में भारत के 20 जवान शहीद हो गए. चीन को भी काफी नुकसान पहुंचा. इस घटना के बाद दोनों देशों ने एलएसी से लगते अधिकतर क्षेत्रों में अपनी-अपनी सेनाओं की तैनाती और मजबूत कर दी. हालांकि धीरे-धीरे दोनों देशों के बीच सहमति बनी. दोनों देशों की सेना पीछे हटी है.