उत्तर प्रदेश की अखिलेश यादव सरकार ने साल 2012 और 2013 में बेरोजगारी भत्ता के तौर पर 20.58 करोड़ रुपये बांटने के कार्यक्रम के आयोजन में 15.06 करोड़ रुपये खर्च किए थे। जबकि इस योजना के तहत लाभार्थियों का पैसा सीधे उनके बैंक अकाउंट में जमा किया जाना था। ये जानकारी गुरुवार (18 मई) को उत्तर प्रदेश विधान सभा में पेश की गयी कंट्रोलर एंड ऑडिटन जनरल ऑफ इंडिया (कैग) की “जनरल एंड सोशल सेक्टर” रिपोर्ट से सामने आयी है।
कैग रिपोर्ट के अनुसार सपा सरकार ने साल 2012-13 में इस कार्यक्रमों में 8.07 करोड़ रुपये कुर्सियों, नाश्ते-पानी और दूसरे इंतजामों पर खर्च किए। वहीं 6.99 करोड़ रुपये लाभार्थियों को कार्यक्रम स्थल तक लाने में खर्च हुए। कार्यक्रम में 1.26 लाख बेरोजगार लोगों को भत्ते के चेक दिया गया है। ये चेक खुद राज्य के तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने दिया। कैग ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि “चूंकि “बेरोजगारी भत्ता योजना” के राज्य के 69 जिलों के लाभार्थियों को पैसा सीधे उनके बैंक अकाउंट में भेजा जाना था इसलिए चेक बांटने के लिए कार्यक्रम को टालकर इस खर्च से बचा जा सकता था।”
बेरोजगारी भत्ता योजना की शुरुआत साल 2003-2007 में मुलायम सिंह यादव सरकार ने की थी। इस योजना के तहत 30 से 40 साल की उम्र वाले हाई स्कूल पास बेरोजगारों को एक हजार रुपये दिए जाते थे। योजना के तहत लाभ पाने के लिए उत्तर प्रदेश का नागरिक होना और सालाना पारिवारिक आय 36 हजार रुपये से कम होने की शर्त थी। कैग रिपोर्ट के अनुसार अखिलेश यादव सरकार ने मई 2012 में इस योजना को दोबारा लागू किया।
कैग की रिपोर्ट के अनुसार योजना के नियम के अनुसार लाभार्थियों को हर तिमाही का भत्ता राष्ट्रीय या क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों में खुले बचत खाते में जमा किया जाना था। लाभार्थियों को आवेदन के समय ही अपने बैंक खाते की जानकारी देनी होती थी। योजना के प्रावधानों में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं थी कि लाभार्थियों को लाने-ले जाने और नाश्ता-पानी की व्यवस्था की जाएगी। रिपोर्ट में कहा गया है कि नवंंबर 2016 में हुई चर्चा के दौरान तत्काली राज्य सरकार ने कहा था कि “लाभार्थियों को पैसे सीधे बैंक अकाउंट में जमा करना बाध्यकारी नहीं था।” हालांकि अखिलेश सरकार ने खर्च के आंकड़ों को स्वीकार करने के साथ ही माना था कि योजना की “नियमावली” के तहत हर लाभार्थी को बैंक खाता खोलना जरूरी थी।