नोट बदली के बाद बैंकों में पुराने नोट बड़े पैमाने पर जमा हो रहे हैं और अब तक चार लाख करोड़ रुपये से ज्यादा नकदी जमा हो चुकी है, लिहाजा बैंकों के पास लोन देने के लिए काफी पैसा होगा।
नई दिल्ली (जेएनएन)। पांच सौ व हजार रुपये के पुराने नोट बंद होने के बाद बाजार पर काफी असर पड़ेगा। खासकर होम लोन और कार लोन इससे सबसे ज्यादा प्रभावित होंगे। वजह यह है कि दोनों ही चीजों की खरीद में काले धन का बड़े पैमाने पर उपयोग होता है। आलीशान बंगले, फ्लैट और लक्जरी गाड़ियों के शौकीन अक्सर इन्हें खरीदने के लिए गैर कानूनी कमाई का ही उपयोग करते हैं। ऐसे लोगों के लिए अब मुश्किल शुरू हो जाएगी। उन्हें महंगे मकान और कार खरीदने के लिए चेक, कार्ड अथवा ऑनलाइन मोड से पेमेंट करना पड़ेगा। इसलिए उनके लिए अब उतने महंगे मकान और गाड़ियां खरीदना कठिन होगा। लेकिन दूसरी ओर सामान्य व ईमानदार लोगों को फायदा होगा। ब्याज दरें घटने से ईएमआइ घटेगी जिससे उन्हें उनकी जरूरत के मकान और वाहन खरीदने में आसानी होगी। जिन लोगों ने पहले ही होम लोन और कार लोन ले रखा है, उनकी किस्त की रकम भी घटने की संभावना है।
आइसीआइसीआइ, एचडीएफसी जैसे ज्यादातर बैंक पहले ही जमा की दरें घटा चुके हैं। जबकि कर्ज दरों को घटाने में बैंकों ने उतनी रुचि नहीं दिखाई है। विमुद्रीकरण के बाद अब सभी बैंक कर्ज दरें घटा सकते हैं। जबकि जिन बैंकों ने पहले कर्ज दरों में कमी की है, उनकी ओर से दरों में और कमी लाए जाने की संभावना है। लेकिन यह काम तुरंत होने वाला नहीं है। बैंकिंग उद्योग से जुड़े विशेषज्ञों की मानें तो नोट बदलने की प्रक्रिया में जितना समय लगेगा उतना ही समय ब्याज दरें घटने में लग सकता है। यानी ब्याज दरों से राहत मिलने में चार-छह महीने लग सकते हैं। वैसे यह बहुत कुछ दिसंबर के पहले सप्ताह में आने वाली रिजर्व बैंक की अगली मौद्रिक समीक्षा पर निर्भर करेगा। इसी समीक्षा से यह तय होगा कि ब्याज दरें कितनी घटती हैं। चूंकि नोट बदली के बाद बैंकों में पुराने नोट बड़े पैमाने पर जमा हो रहे हैं और अब तक चार लाख करोड़ रुपये से ज्यादा नकदी जमा हो चुकी है, लिहाजा बैंकों के पास लोन देने के लिए काफी पैसा होगा। इसी के साथ होम लोन पर ईएमआइ की दरें घटने की उम्मीद है।
इसके अलावा होम लोन के औसत आकार पर भी नोटबंदी का असर पड़ेगा। उनका आकार घट सकता है। यानी लोग पहले जितना लोन लेते थे, अब उतना नहीं लेंगे। ऐसा प्रॉपर्टी खरीद में नकदी का अनुपात कम होने के कारण होगा।
वैसे नोटबंदी के सारे फायदे ही हों, ऐसा नहीं है। इससे हाउसिंग सेक्टर में मांग में गिरावट आने का खतरा भी है। लेकिन जैसे-जैसे हालात सामान्य होंगे, प्रापर्टी के दाम गिरने से मकानों की मांग फिर से बढ़ सकती है। चूंकि हाल के वर्षों में औद्योगिक क्षेत्र से कर्ज की मांग में बढ़ोतरी नहीं हुई है, लिहाजा बैंकों ने हाउसिंग जैसे छोटे-छोटे कर्ज देने पर ध्यान केंद्रित किया है। पिछले दो वर्षों में होम लोन में 18-19 फीसद तक की बढ़ोतरी देखने में आई है। इस साल सितंबर तक देश में आठ लाख करोड़ रुपये से अधिक के होम लोन दिए जा चुके थे।
क्रिसिल ने हाल में जारी अपनी रिपोर्ट में नोटबंदी के प्रभावों की समीक्षा की है। इसके अनुसार प्रॉपर्टी पर लिए जाने वाले कर्ज में गिरावट आ सकती है। परिणामस्वरूप मकानों की रीसेल वैल्यू कम हो जाएगी। यानी पांच साल पहले जो मकान 60 लाख में खरीदा गया होगा और जिसके नोटबंदी से पहले तक एक करोड़ से अधिक में बिकने की उम्मीद थी, उसका अब अस्सी लाख में बिकना भी कठिन हो सकता है।