श्रीलंका में चीन की उपस्थिति भारत के लिए चिंताजनक
श्रीलंका में चीन की उपस्थिति भारत के लिए चिंताजनक

श्रीलंका में चीन की उपस्थिति भारत के लिए चिंताजनक

मेरी पत्नी और मैं हाल ही में अपने कुछ मित्रों के साथ छुट्टियों के लिए श्रीलंका गए थे. हम दोनों के लिए लगभग 15 वर्षों बाद यह पहली श्रीलंका यात्रा थी, जबकि उससे पहले यह सुंदर द्वीपीय देश हिंसक गृहयुद्ध में जकड़ा था, जिसने अनगिनत जानें लीं और देश की अर्थव्यवस्था को तबाह कर दिया था.श्रीलंका में चीन की उपस्थिति भारत के लिए चिंताजनक

यह वह दौर था जब महिंदा राजपक्षे ने श्रीलंका के राष्ट्रपति के रूप में सत्ता संभाली और तमिल टाइगर्स के सफाए को अपना सबसे प्रमुख उद्देश्य बनाया. 30 महीनों की असहनीय हिंसा के बाद लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम(लिट्टे) के नेता वेलु पिल्लई प्रभाकरन और उसके समर्थकों की मौत के साथ ही 2009 में 26 सालों का गृहयुद्ध समाप्त हो गया.

यह तर्क दिया जाता है कि उस समय बड़े पैमाने पर मानवाधिकारों का उल्लंघन हुआ था और तमिलों के साथ खुले तौर पर भेदभाव किया गया था। यह सच है. लेकिन सच यह भी है कि यह द्वीपीय देश अंत में अशांति, अनिश्चितता और आतंकवाद के दशकों के बाद पहली बार शांति की ओर लौट आया. जिस श्रीलंका का मैं पहले आदी हो गया था, वह अब उससे बिलकुल विपरीत है. उस समय बंदूक लिए सुरक्षा कर्मी हर तरफ घूमते रहते थे. अब यहां शांति है.

भारत के लिए भी गृहयुद्ध और लिट्टे का अंत अच्छी खबर थी. इससे पहले ही लिट्टे को एक आतंकवादी संगठन घोषित कर दिया गया था, लेकिन तमिलनाडु में प्रभाकरन के साथ कुछ संगठनों का गठबंधन नई दिल्ली के लिए चुनौती बन गया था. दुर्भाग्य से गृहयुद्ध के अंत के साथ इतिहास ने खुद को एक बार फिर दोहराया और भारत ने अपनी स्थिति खराब कर ली और आज हम एक बार फिर चीन की कूटनीति के बीच श्रीलंका को खोने के कगार पर हैं.

श्रीलंका में चीनी उपस्थिति कोई छिपी हुई बात नहीं है. आप उन्हें हर जगह पाएंगे। चीनी ड्रेजिंग (समुद्री पानी को साफ करने वाले) जहाजों को खुले तौर पर काम करते हुए देखा जा सकता है. हंबनटोटा बंदरगाह पर काम शुरू हो गया है. शॉपिंग मॉल से लेकर पब तक हर जगह चीनी श्रमिक नजर आएंगे. कई चीनी श्रीलंका की भाषा सिंहली बोलना सीख रहे हैं. होटल, सड़कों, बुनियादी ढांचों, थिएटरों और सुख-सुविधाओं से लैस क्रिकेट स्टेडियम केवल कागजों पर लिखी परियोजना भर नहीं हैं, बल्कि लोग उन्हें देख सकते हैं. आंखों देखी चीजों के महत्व को कभी भी कम करके आंका नहीं जाना चाहिए और जिस गति से चीन यहां परियोजनाओं को अंजाम दे रहा है, वह इस बात की बानगी है कि श्रीलंका में रियल एस्टेट परिवर्तन तेजी से हो रहा है.

2005-17 के बीच 12 वर्षों की अवधि में बीजिंग ने श्रीलंका की परियोजनाओं में 15 अरब डॉलर का निवेश किया है. वहीं, चीन के एक राजदूत भारत को एक स्पष्ट संदेश दे चुके हैं, जो श्रीलंका में चीनी उपस्थिति को अपने प्रभाव क्षेत्र में घुसपैठ के रूप में देखता है. राजदूत ने भारत को स्पष्ट जवाब देते हुए कहा था, “कोई नकारात्मक ताकत श्रीलंका और चीन के बीच सहयोग को कमजोर नहीं कर सकती है.”

भारत के लिए यह परेशान करने वाला है. भारतीय विदेश नीति समय की कसौटी पर खरा उतरे संबंधों पर काफी भरोसा करती है, लेकिन श्रीलंकाई लोगों में उम्मीदों की अधीरता रही है, जिन पर भारत ध्यान देने और प्रतिक्रिया करने में विफल रहा और चीन सफल रहा है.

श्रीलंकाई लोगों के मुंह से अक्सर यह कहते हुए सुना जा सकता है कि वे चीनी उपस्थिति से कितने असंतुष्ट और नाखुश हैं, जो काफी कठोर और अभिमानी हैं. इसे एक खतरे को गले लगाने के रूप में समझा जा सकता है, लेकिन जब उनके मन-मस्तिष्क में एक समृद्ध भविष्य की इच्छा उभरती है तो वे इस मौके को काफी आकर्षक पाते हैं.

वहीं, दूसरी ओर भारत सभी ओर से अलग-थलग पड़ता जा रहा है. पाकिस्तान से दुश्मनी है. मालदीव अस्थिर है. नेपाल की स्थिति लगभग असमजंस से भरी है और श्रीलंका एक स्पष्ट लुभावने मायाजाल में फंसा है. भारत वास्तव में इस समय अब तक की सबसे गंभीर सुरक्षा चुनौती का सामना कर रहा है.

अगर भारत को एक साथ मिलकर काम करना है तो इसके लिए केवल कल्पना की नहीं, बल्कि गति और दक्षता की जरूरत है, ताकि श्रीलंका के भविष्य को लेकर किए गए वादे पूरे हो सकें.

दिग्गज शतंरज खिलाड़ी बॉबी फिशर ने एक बार कहा था, “अगर आप खेल खेल रहे हैं तो आप जीतने के लिए खेलें, लेकिन अगर आप खेल हार गए तो वह इसलिए क्योंकि आपने अपनी आंखों को प्यादों से हटा लिया था, इसलिए आप हारने के ही लायक थे.”

Powered by themekiller.com anime4online.com animextoon.com apk4phone.com tengag.com moviekillers.com