ऐसे शुरू हुई बद्रीनाथ की कहानी 
उत्तराखंड राज्य में स्थित अलकनंदा नदी के किनारे बद्रीनाथ धाम है। इसे बदरीनारायण मंदिर भी कहते हैं। हिंदू शास्त्रों के मुताबिक एक बार भगवान विष्णु काफी लंबे समय से शेषनाग की शैया पर विश्राम कर रहे थे। ऐसे में उधर से गुजरते हुए नारद जी ने उन्हें जगा दिया। इसके बाद नारद जी उन्हें प्रणाम करते हुए बोले कि प्रभु आप लंबे समय से विश्राम कर रहे हैं। इससे लोगों के बीच आपका उदाहरण आलस के लिए दिया जाने लगा है। यह बात ठीक नहीं है। नारद जी की बातें सुनकर भगवान विष्णु ने शेषनाग की शैया को छोड़ दिया और तपस्या के लिए एक शांत स्थान ढूंढने निकल पड़े। इस प्रयास में वे हिमालय की ओर चल पड़े,तब उनकी दृष्टि पहाड़ों पर बने बद्रीनाथ पर पड़ी। विष्णु जी को लगा कि यह तपस्या के लिए अच्छा स्थान साबित हो सकता है। जब विष्णु जी वहां पहुंचे तो देखा कि वहां एक कुटिया में भगवान शिव और माता पार्वती विराजमान थे।
शिशु अवतार से बना काम
अब विष्णु जी सोच में पड़ गए कि अगर वह इस स्थान को तपस्या के लिए चुनते हैं तो भगवान शिव क्रोधित हो जाएंगे। इसलिए उन्होंने उस स्थान को ग्रहण करने का एक उपाय सोचा, और एक शिशु का अवतार लिया और बद्रीनाथ के दरवाजे पर रोने लगे। बच्चे के रोने की आवाज सुनकर माता पार्वती का हृदय द्रवित हो गया और वह उस बालक को गोद में उठाने के लिए बढ़ने लगीं। शिव जी ने उन्हें मना भी किया कि वह इस शिशु को गोद न लें लेकिन वह नहीं मानी। वह शिव जी से कहने लगी कि आप कितने निर्दयी हैं और एक बच्चे को कैसे रोता हुए देख सकते हैं। इसके बाद पार्वती जी ने उस बच्चे को गोद में उठा लिया और उसे लेकर घर के अंदर आ गईं। उन्होंने शिशु को दूध पिलाया और उसे चुप कराया। बच्चे को नींद आने लगी तो पार्वती जी ने उसे घर में सुला दिया। इसके बाद वे दोनों पास के एक कुंड में स्नान करने के लिए चले गए।
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