माना जा रहा था कि नई पीढ़ी रंगमंच से दूर हो जाएगी, लेकिन इसके विपरीत हर वर्ग के लोग आज भी रंगमंच के नाटकों को पसंद कर रहे हैं।
पहले टीवी फिर ओटीटी आने के बाद बुद्धिजीवी वर्ग को रंगमंच की स्थिति को लेकर चिंता थी। ऐसा माना जा रहा था कि नई पीढ़ी रंगमंच से दूर हो जाएगी, लेकिन इसके विपरीत हर वर्ग के लोग आज भी रंगमंच के नाटकों को पसंद कर रहे हैं। केवल हिंदी ही नहीं क्षेत्रीय भाषाओं में भी रंगमंच की पकड़ मजबूत हुई है। मराठी, बंगाली, गुजराती और अन्य क्षेत्रीय भाषाओं के नाटकों के न केवल कलाकार बढ़े हैं, बल्कि इन्हें दर्शकों का भरपूर प्यार भी मिल रहा है।
विश्व रंगमंच दिवस के अवसर पर राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के निदेशक चितरंजन त्रिपाठी ने बताया कि रंगमंच की दुनिया में भारत की स्थिति अच्छी है। दिल्ली के साथ महाराष्ट्र, गोवा, असम, पश्चिम बंगाल, गुजरात जैसे राज्यों में स्थानीय भाषा के नाटकों को भरपूर दर्शक मिल रहे हैं। रंगमंच ने देशी संस्कृति और स्थानीय कलाकारों के जरिये समाज को जोड़े रखने का काम कई दशकों से किया है। डिजिटल युग में भी दर्शक रंगमंच पर आकर नाटक देखना पसंद कर रहे हैं।
विभिन्न भाषाओं में नाटकों पर मंचन के दौरान दर्शकों में काफी उत्साह देखने को मिलता है। उन्होंने बताया कि बड़े महानगरों के अलावा छोटे शहरों में भी रंगमंच का एक अलग ही रूप देखने को मिलता है। उदाहरण के लिए गोवा में कोंकणी थियेटर में बड़ी संख्या में दर्शक उपस्थित होकर इसका आनंद उठाते हैं। वहीं, ओडिशा के बरगढ़ में मनाया जाने वाला धनु जात्रा एक वार्षिक नाटक-आधारित ओपन एयर नाट्य प्रदर्शन है, इसमें दर्शकों का प्यार और उत्साह देखने लायक होता है।
रंगमंच की लोकप्रियता डिजिटल युग में भी बरकरार
डिजिटल युग में वेब सीरीज, ऑनलाइन थिएटर और वीडियो स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म की बढ़ती लोकप्रियता के बावजूद लोग रंगमंच पर नाटक देखने को अधिक पसंद कर रहे हैं। लाइव परफॉर्मेंस का आकर्षण, कलाकारों की भावनात्मक अभिव्यक्ति और मंच पर अभिनय की वास्तविकता दर्शकों को थियेटर की ओर खींच रही है। चितरंजन त्रिपाठी ने कहा, रंगमंच की प्रस्तुति दर्शकों को कहानी से गहराई से जोड़ती है, क्योंकि यह एक अनोखा और जीवंत अनुभव प्रदान करता है। इसके अलावा, थियेटर में कलाकारों और दर्शकों के बीच सीधा संवाद होता है, जिससे एक विशेष जुड़ाव महसूस किया जाता है।
महामारी के बाद भी लोगों में सामाजिक और सांस्कृतिक कार्यक्रमों के प्रति रुचि बढ़ी। नाट्य मंचों पर दर्शकों की संख्या में इजाफा हुआ। रंगमंच की लोकप्रियता का एक और कारण यह भी है कि यह समाज के विभिन्न मुद्दों को गहराई से उजागर करता है और दर्शकों को सोचने पर मजबूर करता है। कई युवा कलाकार भी थिएटर को अपनी पहचान बनाने का मंच मानते हैं।
एनएसडी के कलाकारों ने बॉलीवुड में बनाई खास पहचान
नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा (एनएसडी) भारतीय रंगमंच की दुनिया का एक प्रतिष्ठित संस्थान है, जिसने भारतीय सिनेमा को कई बेहतरीन कलाकार दिए हैं। एनएसडी से प्रशिक्षित कई कलाकारों ने थियेटर में अपनी प्रतिभा निखारने के बाद बॉलीवुड की राह पकड़ी और फिल्मी दुनिया में अपनी अलग पहचान बनाई। नसीरुद्दीन शाह, ओम पुरी, अनुपम खेर, इरफान खान, पंकज त्रिपाठी, नवाजुद्दीन सिद्दीकी और मनोज बाजपेयी जैसे दिग्गज अभिनेता एनएसडी के ही छात्र रहे हैं, जिन्होंने अपनी अभिनय क्षमता से हिंदी सिनेमा को नए आयाम दिए।
एनएसडी में रंगमंच की गहरी समझ, संवाद अदायगी और किरदारों को जीवंत बनाने की कला सिखाई जाती है, यह इन कलाकारों के बॉलीवुड में सफल होने का बड़ा कारण रंगमंच बना। बॉलीवुड में बढ़ती प्रतिस्पर्धा के बावजूद, एनएसडी के कलाकार अपने दमदार अभिनय और मंचीय अनुशासन की बदौलत अलग पहचान बनाने में सफल रहे हैं। आज भी कई युवा अभिनेता एनएसडी से प्रशिक्षण लेकर थिएटर और सिनेमा में अपना भविष्य तलाश रहे हैं।