देहरादून: प्रदेश में एक हजार मीटर से अधिक ऊंचाई वाले क्षेत्रों में पेड़ों की कटाई-छंटाई पर 32 साल पहले लगे प्रतिबंध को हटाने के लिए राज्य सरकार गंभीरता से कदम बढ़ाने जा रही है। उसका तर्क है कि कई जगह पेड़ों के ऊपरी हिस्से आपस में जुड़ने के कारण सूर्य की किरणें धरती पर नहीं पड़ती, जिससे प्राकृतिक पुनरोत्पादन प्रभावित हो रहा है। साथ ही प्रौढ़ और अतिप्रौढ़ पेड़ उस हिसाब से कॉर्बन शोषित नहीं कर पा रहे, जैसा नए पेड़ करते हैं।
ऐसे में वनों की सेहत सुधारने को कटाई-छंटाई आवश्यक है। वन एवं पर्यावरण मंत्री डॉ.हरक सिंह रावत के मुताबिक केंद्र सरकार के समक्ष इस संबंध में पक्ष रखा गया है। साथ ही विभाग प्रमुख को विस्तृत प्रस्ताव तैयार करने के निर्देश दिए गए हैं। अविभाजित उत्तर प्रदेश में पर्वतीय क्षेत्रों में पेड़ों के अंधाधुंध कटान के कारण उत्पन्न पर्यावरणीय खतरों को देखते हुए वर्ष 1986 में अदालत के आदेश के बाद एक हजार मीटर से अधिक की ऊंचाई पर पेड़ कटान प्रतिबंधित कर दिया गया था।
अब राज्य सरकार इस प्रतिबंध से छूट पाने के लिए कसरत कर रही है। इसी कड़ी में विभाग की ओर से पेड़ों की कटाई-छंटाई न होने से उत्पन्न खतरों को लेकर अध्ययन भी कराया गया है। वन एवं पर्यावरण मंत्री डॉ. हरक सिंह रावत के अनुसार अध्ययन रिपोर्ट में स्पष्ट हुआ कि एक हजार मीटर से ऊपर के जंगलें में दिक्कतें अधिक बढ़ रही हैं। बताया कि कटाई-छंटाई के पीछे मकसद राजस्व कमाना नहीं, बल्कि वनों का स्वास्थ्य ठीक करना है।
कटाई-छंटाई से जो भी पैसा मिलेगा, उसे नए वनों को पनपाने के साथ ही आसपास के ग्रामीणों के हित में व्यय किया जा सकता है। डॉ .रावत ने बताया कि केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री के समक्ष राज्य सरकार का यह तर्क रखा जा चुका है और इस पर केंद्र में मंथन भी चल रहा है। राज्य के प्रमुख मुख्य वन संरक्षक जयराज को भी इस सिलसिले में विस्तृत प्रस्ताव तैयार करने के निर्देश दिए गए हैं। उन्होंने यह भी कहा कि इस मामले में सर्वोच्च अदालत में भी तथ्यों और अध्ययन रिपोर्ट के आधार पर पक्ष रखा जाएगा।