राजनीति की चौपर पर चुनावी करवट की दशा-दिशा बदलने का अनुमान लगाने में लोजपा प्रमुख को सिद्धहस्त माना जाता है। राजनीतिक गलियारे में पासवान को इसीलिए विरोधी सबसे सटीक सियासी मौसम विज्ञानी का तंज भी कसते हैं। सियासी हवा का रुख भांपकर गठबंधन की बाजी चलने की यह काबिलियत ही है कि अपने अस्तित्व के करीब 19 वर्षों में लोजपा अधिकांश समय केंद्र की सत्ता का हिस्सा रही है।
केंद्र के गठबंधन की अगुआई भाजपा करे या कांग्रेस लोजपा सत्ता का हिस्सा रही है। क्षेत्रीय दलों का अस्तित्व अमूमन उनके क्षत्रपों की सियासी कामयाबी पर निर्भर रहा है। लोजपा और रामविलास पासवान भी कुछ इसी तरह एक दूसरे के पर्याय हैं।
2000 में रामविलास ने जब लोजपा बनाई, तब पार्टी की पहचान उन्हीं से थी। 282 सीटें जीतने वाली भाजपा के दिग्गज जब लोजपा से गठबंधन के लिए उनके घर दौड़ते हैं तो इसकी वजह भी पासवान का सामाजिक न्याय के दांव का समीकरण ही है।
यह कम दिलचस्प नहीं है कि जदयू से अलग होकर रामविलास ने जब लोजपा बनाई तो इसका सियासी सफर भी सत्ता की रोशनी से ही शुरू हुआ। वाजपेयी की एनडीए सरकार में मंत्री रहे पासवान का राजनीतिक कौशल ही रहा कि जिस जदयू से अलग होकर लोजपा बनी, वह भी एनडीए का हिस्सा बनी।
राजनीति की करवट पहचानने की पासवान की क्षमता राष्ट्रीय सुर्खियां 2004 में तब बनी जब सारे सियासी अनुमानों के विपरीत आम चुनाव में एनडीए की हार हुई और यूपीए का हिस्सा बन लोजपा मनमोहन सरकार में
शामिल हुई।
पासवान ने 2002 के गुजरात दंगों के मसले पर सबसे पहले एनडीए छोड़ा तब लोजपा का शैशव काल ही था। गठबंधन के दौर में सही वक्त पर मुफीद दांव चलने का यह कौशल ही रहा कि 2004 चुनाव से ठीक पूर्व सोनिया गांधी जब खुद उनके बंगले पर पहुंचीं तो पासवान ने भी आगे बढ़कर एनडीए विरोधी मोर्चे का पताका थाम लिया।
राजनीति के मौसम विज्ञानी की अपनी छवि के बावजूद राजद-लोजपा गठबंधन में कांग्रेस से किनारा करना 2009 में पासवान को जरूर भारी पड़ा। लोजपा का तो सफाया हुआ ही खुद रामविलास हाजीपुर के अपने गढ़ में हार गए। लोजपा नेता के तौर पर पासवान की सियासत का यह सबसे मुश्किल दौर रहा।
हालांकि तब पासवान को लालू प्रसाद यादव ने 2010 में राज्यसभा में पहुंचाया और यहीं से पासवान ने बिहार के साथ केंद्र की सियासत में वापसी की अपनी राह फिर से पकड़ ली। 2014 के चुनाव से पहले कांग्रेस और भाजपा दोनों पासवान के दरवाजे पर गठबंधन के लिए दस्तक देने लगे।
यूपीए में एक वक्त उनका जाना लगभग तय हो गया था। मगर सियासी हवा का रुख भांपते हुए अंतिम समय में
रामविलास ने एनडीए का दामन थाम फिर सत्ता की गाड़ी में सवारी सुनिश्चित कर ली। गठबंधन की बिसात पर सियासी दांव चलने में पासवान का यह अद्भुत कौशल 2019 के आम चुनाव में भी नजर आया।
एनडीए से लोजपा के रिश्तों की डोर कमजोर होने की खबरें आईं तो यूपीए ने पासवान के यहां दौड़ लगाई। भाजपा की जरूरत को भांपकर उन्होंने लोजपा की छह सीटिंग लोकसभा सीटें अपने खाते में कराई। जबकि सातवीं सीट के बदले रामविलास ने अपनी राज्यसभा सीट का पक्का वादा करा लिया।