तेजाब हमले की पीड़ित एक युवती की कहानी देखते हुए भी दर्शकों के चेहरे पर मुस्कान ले आने की ये कीमियागिरी मेघना गुलजार ही कर सकती हैं। अपनी पिछली फिल्मों राजी और तलवार से उन्होंने साबित किया है कि सामयिक विषयों पर वे बिना बनावटीपन के एक कहानी को सीधे और सच्चे तरीके से कह सकती हैं। मेघना की फिल्में उनके पिता की चंद फिल्मों जैसे मेरे अपने, आंधी, माचिस आदि की भी याद दिलाती हैं, वैसी ही रिश्तों की कमशमकश, वैसी ही सामाजिक चुनौतियां और वैसी ही मुख्य किरदार के भीतर की बेचैनी। छपाक दर्शकों को भी बेचैन करती है। फिल्में अगर कभी समाज का दर्पण कहलाई होंगी तो छपाक उसका सुनहरा फ्रेम बनने में कामयाब रही है। अमर उजाला के मूवी रिव्यू में फिल्म छपाक को मिलते हैं चार स्टार।