पार्टी आमतौर पर ये मूड बना चुकी है कि मोदी सरकार से टकराने के लिए उन्हें राहुल की रणनीति को अपनाना होगा। पहले से ही पार्टी के भीतर ये आवाज मजबूत हो रही थी कि कांग्रेस कार्यसमिति के सदस्यों का चयन राहुल की मर्जी से हो। तो अधिवेशन में इसकी आधिकारिक घोषणा भी हो गई। कांग्रेस की कार्यसमिति ही किसी फैसले को अंतिम रूप देती है। आमतौर पर कांग्रेसी नेताओं के मन में यहां जगह बनाने की इच्छा है।
आने वाले महाचुनाव की तैयारी में ज्यादा वक्त नहीं बचा है। ऐसे में कार्यसमिति जल्दी गठित करना और रणनीतिक काम जल्द से जल्द शुरू करना कांग्रेस के लिए बड़ी चुनौती है। देखने वाली बात ये है कि राहुल की मर्जी से तय होने वाले वो 24 नाम कौन-कौन से होंगे जिससे कांग्रेस मोदी सरकार को टक्कर देगी।
कांग्रेस कार्यसमिति के चयन पर पार्टी चुनावी प्रक्रिया को अपनी शान समझती थी। लेकिन ऐसे में जब पार्टी की कमान युवा हाथों में है राहुल खुद चाहते हैं कि उन्हें तौर-तरीके बदलने होंगे। वैसे पार्टी में अगर कार्यसमिति को लेकर एक राय बन पाई है तो ये अच्छे संकेत हैं। बाकी कांग्रेस नेता आरपीएन सिंह तो ये कहते भी सुने गए थे कि -‘बीजेपी में तो चुनावी प्रक्रिया ही नहीं होती, उस पर मीडिया चुप रहता है, जबकि कांग्रेस में तो बाकायदा लोकतांत्रिक प्रक्रिया का पालन होता है। कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव में भी सबके सामने हुआ और आगे भी होगा।’
इन बातों से कहीं न कहीं कांग्रेस को ये डर भी सता रहा है कि कहीं मीडिया में उनके इस नए तौर-तरीकों पर कोई सवाल न उठ जाए। क्योंकि पार्टी अपने बुरे दौर में हो या न हो, हर कोई जल्द ही सत्ता में लौटना चाहता है। राहुल के नाम पर चुनाव लड़ने वाली कांग्रेस जानती है कि अगर राहुल के नाम पर पार्टी के अंदर कोई भी ना-नुकुर की स्थिति पैदा हुई तो ये एक बड़ा खतरा पैदा कर देगी।