रामसेतु के बारे में भले ही नई-नई जानकारी सामने आ रही है। लेकिन ये एक बात अभी भी रहस्य बनी हुई है।
दरअसल, भारत में कई जगह तैरने वाले पत्थर मिल रहे हैं। ऐसे में लोग इसे रामायण काल से जोड़कर देख रहे हैं। उनका मानना है कि यह रामसेतु का पत्थर है इसलिए तैर रहा है। लोगों का कहना है अगर ये तैरने वाले पत्थर रामसेतु के नहीं है तो ये तैर क्यों रहे हैं।
बता दें कि यह अद्भुत पत्थर हाल ही में ऋषिकेश के गाजीवाली गांव के पास नीलधारा में मिला था। यह भारी भरकम पत्थर पानी में तैर रहा था। पत्थर को देखने के लिए भारी भीड़ जुट गई। लोगों ने चर्चा फैल गई कि यह पत्थर रामसेतु के उन पत्थरों में शामिल रहा जो भगवान श्रीराम ने माता सीता को रावण से मुक्त कराने के लिए पुल बनाया था।
देर शम तक पत्थर को देखने के लिए लोगों की भीड़ लगी रही। ग्राम गाजीवाली निवासी ऋषिपाल सोमवार की सुबह गंगा के किनारे बैठा हुआ था तभी उसे पानी में एक पत्थर तैरता हुआ नजर आया। उसने पत्थर को देख कर आसपास के लोगों को बुलाया और पानी में तैरते हुए पत्थर को बाहर निकाल लिया।
पत्थर को एक बड़े भगोने में पानी भरकर छोड़ा गया तो वह पत्थर भिगोने में रखे पानी में भी ऊपर तैरने लगा। पत्थर को देखने के लिए आस-पास के गांववालों की भीड़ लग गई। आपने तैरने वाला पत्थर देखा होगा। नहीं देखा होगा तो सुना होगा। कहते हैं कि इसी पत्थर से रामसेतु बनाया गया था।
रामसेतु का असली नाम नल-नील सेतु है। भारत के दक्षिणी भाग के अलावा श्रीलंका, जापान सहित अनेक स्थानों में ऐसे पत्थर मिलते हैं। ये सामान्यतः द्वीपों, समुद्र तट, ज्वालामुखी के नजदीकी क्षेत्रों पर काफी मात्रा में मिलते हैं।
यह बात इसलिए सामने आ रही है क्योंकि, हाल ही में एक साइंस चैनल ने दावा किया है कि भारत और श्रीलंका के बीच बना पुल मानव निर्मित है। चैनल के मुताबिक बलुई रेखा पर मौजूद पत्थर करीब 7 हजार साल पुराने हैं।
साइंस चैनल ने सोमवार को एक वीडियो ट्विटर पर डाला, जिसमें कुछ भूविज्ञानियों और वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि रामसेतु पर पाए जाने वाले पत्थर बिल्कुल अलग और बेहद प्राचीन हैं। की ओर से ली गई तस्वीर प्राकृतिक है।