बेसिक शिक्षा विभाग ने गैर मान्यता प्राप्त स्कूलों पर शिकंजा कसना शुरू किया तो मुस्लिम बहुल इलाकों में अचानक मदरसों की संख्या बढ़ गई। यूपी के कानपुर के इन इलाकों में बड़ी संख्या में मान्यता के बिना स्कूल चल रहे थे। जब सख्ती हुई तो यह स्कूल आधुनिक मदरसों में तब्दील हो गए। यहां पर अंग्रेजी, हिंदी, उर्दू, संस्कृत, गणित, विज्ञान जैसे विषय पढ़ाए जा रहे हैं।
अल्पसंख्यक कल्याण विभाग से इन मदरसों को मानक पूरे होने पर मान्यता भी मिल गई है। बेसिक शिक्षा विभाग का चला था डंडा
प्रदेश में भाजपा की सरकार बनने के बाद बेसिक शिक्षा विभाग ने शहर में चल रहे गैरमान्यता प्राप्त छोटे स्कूलों पर सख्ती की। नए मानकों के हिसाब से स्कूल चलाने के निर्देश दिये और न पूरा करने पर स्कूल बंद करने को कहा। मानक पूरा करना आसान नहीं था तो ऐसे में इन स्कूलों के संचालकों ने अरबी फारसी बोर्ड से मान्यता करा ली। वजह यह है कि मदरसों के लिए अल्पसंख्यक कल्याण विभाग के मानक थोड़े आसान हैं।
यह स्कूल बने आधुनिक मदरसे
कर्नलगंज का अर्श पब्लिक स्कूल अब मदरसा तालीमुल अर्श में बदल गया है। चमनगंज का टेंडरफुट मॉडल स्कूल का नाम मदरसा हमीदुल उलूम और कैंब्रिज पब्लिक स्कूल अब मदरसा कैंब्रिज स्कूल हो गया है। इसी तरह बांसमंडी का लिटिल बॉसम स्कूल और चीना पार्क का लिटिल स्टेप स्कूल भी मदरसे में परिवर्तित हो चुके हैं। कर्नलगंज के मदरसा तालीमुल अर्श के प्रबंधक अब्दुल वहीद खां ने बताया कि वह अपने मदरसे में सभी बच्चों को कॉन्वेंट स्कूल जैसी आधुनिक शिक्षा देते हैं। केंद्र और प्रदेश सरकार की मंशा भी यही है।
यह हैं दोनों विभागों के मानकों में फर्क
बेसिक शिक्षा विभाग के अधीन प्राथमिक स्तर पर चल रहे पब्लिक स्कूलों की मान्यता के लिए 20 बाई 20 फिट के छह कमरे, बड़ा हॉलनुमा ऑफिस, छह बीएड उत्तीर्ण प्रशिक्षित शिक्षिक-शिक्षिकाएं, भूकंपरोधी इमारत होनी चाहिए। जबकि अल्पसंख्यक कल्याण विभाग के अरबी-फारसी बोर्ड से मान्यता के लिए 15 बाई 20 फिट के तीन कमरे, एक हॉलनुमा ऑफिस, अरबी-फारसी बोर्ड की डिग्री (आलिम, कामिल, फाजिल आदि) वाले प्रशिक्षित शिक्षक-शिक्षिकाओं को होना चाहिए।
अरबी-फारसी बोर्ड से तमाम शिक्षण संस्थानों को मदरसे की मान्यता मिली है। मान्यता के लिए लखनऊ में अरबी-फारसी बोर्ड के रजिस्ट्रार दफ्तर से संपर्क किया जा सकता है। मानक पूरे होने पर विभाग से मान्यता मिल जाएगी।