इस पर कोर्ट ने पुलिस स्थापना बोर्ड को पदों की सही संख्या का पता लगाकर छह माह में नियुक्ति करने का निर्देश दिया है। उपेंद्र सिंह, अर्जुन यादव सहित कई अभ्यर्थियों ने क्षैतिज आरक्षण के तहत बचे हुए पदों को अगली दो भर्तियों के लिए अग्रसारित (कैरी फारवर्ड) करने के निर्णय को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। याचिकाओं पर वरिष्ठ अधिवक्ता अशोक खरे, सीमांत सिंह, अभिषेक श्रीवास्तव आदि ने पक्ष रखा।
याचिका में कहा गया कि 41610 कांस्टेबल भर्ती का विज्ञापन 20 मई, 2013 को जारी हुआ था। इसका अंतिम चयन परिणाम जुलाई 2016 में जारी किया गया। चयन परिणाम आने के बाद एक्स सर्विस मैन और स्वतंत्रता सेनानी आश्रित कोटे के लिए आरक्षित 2312 पद योग्य अभ्यर्थी न मिलने के कारण रिक्त रह गए।
प्रदेश सरकार ने 1994 की आरक्षण नियमावली के नियम 3(5) के तहत अगली भर्तियों के लिए अग्रसारित कर दिया। याचिका में नियम 3(5) की वैधानिकता को चुनौती दी गई। अधिवक्ताओं का तर्क था कि यदि एक भर्ती के बचे हुए पदों को उसमें से निकाल दिया जाता है तो कुल पदों पर लागू आरक्षण का फार्मूला गड़बड़ हो जाएगा।
इसी प्रकार से इन पदों के अगली भर्ती में जुड़े जाने से उसमें आरक्षण 50 प्रतिशत से अधिक हो जाएगा। यह इंद्रा साहनी केस में सुप्रीमकोर्ट के निर्णय का उल्लंघन होगा कि आरक्षण 50 प्रतिशत से अधिक नहीं हो सकता है। इस व्यवस्था से संविधान के अनुच्छेद 14 और 16 का उल्लंघन होता है।