यूपी उपचुनावः बाहरी उम्मीदवार उतारने और बसपा के चुनाव नहीं लड़ने से भाजपा का सिरदर्द बढ़ा
यूपी उपचुनावः बाहरी उम्मीदवार उतारने और बसपा के चुनाव नहीं लड़ने से भाजपा का सिरदर्द बढ़ा

यूपी उपचुनावः बाहरी उम्मीदवार उतारने और बसपा के चुनाव नहीं लड़ने से भाजपा का सिरदर्द बढ़ा

देश को पहला प्रधानमंत्री देने वाले लोकसभा क्षेत्र फूलपुर में फिर से चुनावी सरगर्मी देखने को मिल रही है. 11 मार्च को होने वाले लोकसभा उप चुनाव के लिए चुनाव प्रचार अंतिम दौर में है. बसपा के चुनाव मैदान से हटने से भाजपा और सपा के बीच सीधी टक्कर मानी जा रही है. कहने को 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में मोदी लहर के सहारे सूबे के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्या ने लगभग 3,08,308 रिकॉर्ड मतो से जीत अर्जित की थी. लेकिन अब फाफामऊ के तट से गंगा का पानी काफी बह चुका है.यूपी उपचुनावः बाहरी उम्मीदवार उतारने और बसपा के चुनाव नहीं लड़ने से भाजपा का सिरदर्द बढ़ा

केन्द्र और राज्य में भाजपा की सरकार होने के कारण कहीं न कहीं एंटीइनकंबैंसी भी देखने को मिल सकती है. ऊपर से बसपा द्वारा चुनाव नहीं लड़ने की घोषणा से इसका सीधा फायदा सपा को जाता दिख रहा है. एक और फैक्टर जो भाजपा को परेशान कर सकता है वह उसके उम्मीदवार का बाहरी होना. यहां भाजपा ने वाराणसी के पूर्व मेयर कौशलेंद्र सिंह पटेल को अपना उम्मीदवार बनाया है, जिनका स्थानीय वोटरों से ज्यादा सरोकार नहीं रहा है.

यह फैक्टर इसलिए भाजपा को परेशानी में डाल सकता है, क्योंकि 1996 में कुर्मियों के सबसे बड़े नेता सोनेलाल पटेल को इसलिए स्थानीय वोटरों ने नकार दिया था क्योंकि वे बाहरी थे. सिर्फ जाति के सहारे उन्हें यहां सफलता नहीं मिली. ऐसे में समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार नागेन्द्र प्रताप सिंह पटेल को इसका फायदा मिल सकता है. ओबीसी बहुल इस सीट पर हमेशा से ही पटेल वोटर निर्णायक भूमिका में रहे हैं. 2004 के पहले हुए सात लोकसभा चुनावों में कुर्मी उम्मीदवार ही सीट का प्रतिनिधित्व करते रहे हैं. एक बार फिर इसी जाति के उम्मीदवार का चुना जाना तय है.

कांग्रेस उम्मीदवार से भाजपा और निर्दलीय अतीक अहमद से सपा को नुकसान

वैसे यह उप चुनाव सीधे-सीधे भाजपा बनाम सपा के बीच माना जा रहा है, लेकिन कांग्रेस पार्टी द्वारा ब्राह्मण उम्मीदवार बनाए जाने से भाजपा को कुछ वोटों का नुकसान होता दिख रहा है. तकरीबन 1.5 लाख वोटर ब्राह्मण हैं, जिनके वोट बिखर सकते हैं. वहीं बाहुबली नेता अतीक अहमद के निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर मैदान में उतरने की वजह से सपा को अपने परंपरागत मुस्लिम वोटरों के खिसकने का डर सता रहा है. हालांकि दोनों पार्टियों का दावा है कि दोनों उम्मीदवारों से उन्हें कोई विशेष नुकसान नहीं होने वाला है और वे भारी मतों से चुनाव जीतेंगी. सपा के लिए जहां बसपा का चुनाव न लड़ना फायदेमंद माना जा रहा है, वहीं भाजपा को अन्य पिछड़ी जातियों से उम्मीद है कि केशव प्रसाद मौर्या की वजह से उन्हें फिर से इस सीट पर जीत हासिल होगी.

ऐसा है फूलपुर में वोटों का जातिगत समीकरण

अगर फूलपुर सीट पर जातीय समीकरण की बात करें 19 लाख 59 हजार मतदाताओं वाली इस सीट पर 5 लाख 55 हजार दलित मतदाता हैं. 7 लाख 50 हजार के करीब पिछड़े समाज के वोटर हैं, जिनमें 1 लाख 76 हजार यादव, 1 लाख 85 हजार कुर्मी वोटर, 1 लाख मौर्या वोटर हैं।

2 लाख 25 हजार मुस्लिम मतदाता और 4 लाख 50 हजार के करीब अगड़ी जाति के वोटर हैं, जिनमें सबसे अधिक करीब डेढ़ लाख ब्राह्मण मतदाता हैं. चुनाव में कांग्रेस ने मनीष मिश्रा के रूप में ब्राह्मण प्रत्याशी पर दांव लगाया है और इस चुनाव में बीजेपी की स्थिति 2014 लोकसभा चुनाव जैसी नहीं है. लिहाजा अब तक सपा प्रत्याशी नागेंद्र सिंह पटेल सबसे मजबूत प्रत्याशी दिख रहे थे, लेकिन अतीक के चुनाव मैदान में आने के बाद सपा के खेमे में बौखलाहट देखी जा रही है.

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