हुआ भी यही। अयोध्या भले ही नहीं बदली, लेकिन राजनीतिक दलों की स्थिति बदल गई। राजनीति की धारा बदल गई। भाजपा ने अयोध्या के सहारे हिंदुत्व को धार देकर लोगों को लामबंद किया तो मुलायम सिंह यादव के नेतृत्व में सपा ने मुस्लिमों की लामबंदी करने में सफलता पाई।
कांग्रेस और बसपा जैसे दलों ने भी इसी के सहारे मुस्लिम वोटों की लामबंदी की कोशिश की। किसे नफा हुआ और किसे नुकसान, उसका कारण क्या रहा… यह अलग सवाल है, पर शायद ही किसी को इन्कार हो कि अयोध्या के सहारे हर राजनीतिक दल अपने वोटों की गणित दुरुस्त करने की कोशिश करता रहा।
वरिष्ठ पत्रकार राजनाथ सिंह सूर्य कहते हैं कि इसकी जड़ में अयोध्या आंदोलन के अलावा और कुछ नहीं है। पहले शिवसेना, हिंदू महासभा, जनसंघ और भाजपा जैसे दलों को छोड़कर अन्य पार्टियां हिंदुत्व की बात करने से डरती थी। हिंदू शब्द को ही अछूत मानती थीं। बकौल सूर्य, एक नेता तो कहते थे कि मुझे सब कुछ कह लो लेकिन हिंदू न कहो। पर, अयोध्या आंदोलन से फैली चेतना ने जब हिंदुओं में यह भाव पैदा किया कि देश में 80 प्रतिशत होने के बावजूद उनकी उपेक्षा हो रही है तो राजनीतिक परिणाम बदलने लगे। भाजपा बढ़ने लगी और दूसरे दल सिकुड़ने लगे।
यही वजह है कि दशकों तक सत्ता के शीर्ष पर रही कांग्रेस जैसे दलों को भी अपने नेता को सिर्फ हिंदू नहीं बल्कि पंडित राहुल गांधी हिंदू बताना पड़ रहा है। यह अयोध्या आंदोलन से पैदा हुई चेतना का ही नतीजा है। इसीलिए इस पर ढुलमुल रवैया नुकसान पहुंचाता है और स्पष्टता शक्ति प्रदान करने की पर्याय बन गई है।
बाद में अखिलेश यादव के नेतृत्व में बनी प्रदेश सरकार के कार्यकाल में अयोध्या, मथुरा-वृंदावन, काशी व प्रयाग के विकास के लिए प्रतीकात्मक तौर पर ही सही, लेकिन योजनाएं लाना, मथुरा-वृंदावन व अयोध्या को नगर निगम का दर्जा देने का प्रस्ताव पारित करना, राम की पैड़ी का पुनरुद्धार तथा रामायण पार्क के निर्माण का काम आगे बढ़ाना इस बात का प्रमाण रहा है कि कभी घोर मुस्लिम हितैषी चेहरा गढ़ने से संकोच न करने वाली सपा को भी अब उसे बदलने की जरूरत महसूस होने लगी है।
मायावती और कांग्रेस का अयोध्या पर रुख आज वैसा मुस्लिम हितैषी नहीं दिख रहा है, जैसा शुरुआत में हुआ करता था। जाहिर है कि इस सबके पीछे इन दलों को हिंदुओं की नाराजगी का डर ही है।
मोदी भले ही अभी तक अयोध्या नहीं गए, लेकिन उन्होंने कुछ मौलाना की तरफ से दी गई टोपी को ठुकराकर और हिंदुत्व के नए प्रतीकों को तलाशकर तथा राम व कृष्ण के नाम के सहारे कांग्रेस, सपा और बसपा पर ऐसा हमला बोला कि वोटों का ध्रुवीकरण होता चला गया।
प्रदेश में योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में बनी सरकार का अयोध्या के विकास पर ध्यान, सरयू आरती का प्रारंभ, त्रेता युग की दिवाली का आयोजन, राम से ही जुड़ी दूसरी धरती चित्रकूट पर मंदाकिनी की आरती, अब मथुरा-वृंदावन में होली मनाने की तैयारी, अयोध्या, मथुरा-वृंदावन को नगर निगम का दर्जा देना, हिंदुओं की आस्था से जुड़े स्थलों पर ध्यान इस बात का प्रमाण है कि भाजपा पुरानी गलती दोहराना नहीं चाहती। वह अयोध्या के जरिये हिंदुओ में आई चेतना को सहेजकर रखना चाहती है।
जैसा कि 2002 के विधानसभा चुनाव और 2004 के लोकसभा चुनाव में उसके खिलाफ मुद्दा बना था। भाजपा को यह भी पता है कि इस बार उसके पास कोई बहाना भी नहीं है। निचले स्तर से लेकर शीर्ष तक वही सत्ता में है।
ऐसे में अगर विकास के स्तर पर कोई कमी रही तो उसे इसका खामियाजा भुगतना होगा क्योंकि अयोध्या का विकास सिर्फ एक नगर का स्थूल विकास नहीं है बल्कि भाजपा के सरोकारों का विस्तार और उसकी साख का संदेश भी होगा।