यूं ही नहीं अयोध्या पर बदला सियासी दलों का नजरिया, अब भी रामनगरी जगा रही राजनीतिक उम्मीद

यूं ही नहीं अयोध्या पर बदला सियासी दलों का नजरिया, अब भी रामनगरी जगा रही राजनीतिक उम्मीद

अयोध्या भले ही धार्मिक व सांस्कृतिक नगरी हो, पर हिंदुओं की आस्था की प्रमुख नगरी होने के नाते यह लोगों में सियासी उम्मीदों को भी जगाती रही है। आज से नहीं, बल्कि काफी पहले से। श्रीराम मंदिर निर्माण की पक्षधर भाजपा हो या फिर अदालती निर्णय से इस स्थान का फैसला होने की मांग करने वाले भाजपा विरोधी दल, दोनों यही कहते हैं कि अयोध्या का मसला राजनीतिक नहीं है।यूं ही नहीं अयोध्या पर बदला सियासी दलों का नजरिया, अब भी रामनगरी जगा रही राजनीतिक उम्मीद
पर, सच्चाई यही है कि श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन को लेकर 33 साल पहले देश-दुनिया में चर्चा में आई अयोध्या पर शायद ही कोई दल राजनीति करने से बाज आया हो। अयोध्या हर दल के एजेंडे में रही। पक्ष व विपक्ष दोनों ने शुरू से ही समझ लिया था कि अयोध्या में देश की राजनीति बदल देने की क्षमता है। सभी को यह मुद्दा वोट दिलाने का जरिया नजर आने लगा था।

हुआ भी यही। अयोध्या भले ही नहीं बदली, लेकिन राजनीतिक दलों की स्थिति बदल गई। राजनीति की धारा बदल गई। भाजपा ने अयोध्या के सहारे हिंदुत्व को धार देकर लोगों को लामबंद किया तो मुलायम सिंह यादव के नेतृत्व में सपा ने मुस्लिमों की लामबंदी करने में सफलता पाई।

कांग्रेस और बसपा जैसे दलों ने भी इसी के सहारे मुस्लिम वोटों की लामबंदी की कोशिश की। किसे नफा हुआ और किसे नुकसान, उसका कारण क्या रहा… यह अलग सवाल है, पर शायद ही किसी को इन्कार हो कि अयोध्या के सहारे हर राजनीतिक दल अपने वोटों की गणित दुरुस्त करने की कोशिश करता रहा।

हिंदुत्व से जनेऊधारी तक… सबके मूल में अयोध्या ही

राजनीतिक विश्लेषक कहते हैं कि गुजरात चुनाव में हिंदुत्व से आगे बढ़कर जनेऊधारी हिंदू होने पर वोटों की लामबंदी की कोशिश हो रही है, बहस असली और नकली हिंदू तक पहुंच गई है तो इसकी जड़ में कहीं न कहीं अयोध्या आंदोलन ही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का यह कहना ‘एक समय वह भी था जब धर्मनिरपेक्षता साबित करने की प्रतिस्पर्धा होती थी। एक कहता था कि वह धर्मनिरपेक्ष है तो दूसरा कहता था कि वह 4 किलो ज्यादा धर्मनिरपेक्ष है और चौथा कहता था कि वह 10 किलो ज्यादा धर्मनिरपेक्ष’ तो कांग्रेस की तरफ से यह सफाई ‘मंदिर में दर्शन करते वक्त गलती से उनका नाम गैर हिंदू वाले रजिस्टर में दर्ज हो गया। राहुल तो जनेऊधारी हिंदू हैं’ देश की राजनीति में आज हिंदुत्व की शक्ति का प्रमाण देती है।

वरिष्ठ पत्रकार राजनाथ सिंह सूर्य कहते हैं कि इसकी जड़ में अयोध्या आंदोलन के अलावा और कुछ नहीं है। पहले शिवसेना, हिंदू महासभा, जनसंघ और भाजपा जैसे दलों को छोड़कर अन्य पार्टियां हिंदुत्व की बात करने से डरती थी। हिंदू शब्द को ही अछूत मानती थीं। बकौल सूर्य, एक नेता तो कहते थे कि मुझे सब कुछ कह लो लेकिन हिंदू न कहो। पर, अयोध्या आंदोलन से फैली चेतना ने जब हिंदुओं में यह भाव पैदा किया कि देश में 80 प्रतिशत होने के बावजूद उनकी उपेक्षा हो रही है तो राजनीतिक परिणाम बदलने लगे। भाजपा बढ़ने लगी और दूसरे दल सिकुड़ने लगे।

यही वजह है कि दशकों तक सत्ता के शीर्ष पर रही कांग्रेस जैसे दलों को भी अपने नेता को सिर्फ हिंदू नहीं बल्कि पंडित राहुल गांधी हिंदू बताना पड़ रहा है। यह अयोध्या आंदोलन से पैदा हुई चेतना का ही नतीजा है। इसीलिए इस पर ढुलमुल रवैया नुकसान पहुंचाता है और स्पष्टता शक्ति प्रदान करने की पर्याय बन गई है।

सपा, कांग्रेस को भी बदलना पड़ा चेहरा

राजनीतिक दल अयोध्या पर जिस तरह प्रयोग करते रहे, दृष्टिकोण बदलते रहे, उससे भी उसकी राजनीतिक ताकत समझी जा सकती है। 90 के दशक में विवादित स्थल बचाने के नाम पर हिंदुओं की गिरफ्तारी और अयोध्या में कारसेवकों पर बल प्रयोग कराने वाले तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव पहले तो इसे मस्जिद की रक्षा के नाम पर की गई कार्रवाई बताकर वोटों की लामबंदी करते रहे। उन्हें इसका फायदा भी हुआ।

पर, उन्हीं मुलायम को वर्ष 2007 में जब मुस्लिम वोट बसपा की तरफ जाते दिखा तो कहा कि उन्होंने अयोध्या में कारसेवकों पर मजबूरी में गोली चलवाई। उन्हें इसका अफसोस है। मुलायम की कोशिश अपने मुस्लिम हितैषी चेहरे को कुछ हद तक समन्वयवादी बनाने की थी।

बाद में अखिलेश यादव के नेतृत्व में बनी प्रदेश सरकार के कार्यकाल में अयोध्या, मथुरा-वृंदावन, काशी व प्रयाग के विकास के लिए प्रतीकात्मक तौर पर ही सही, लेकिन योजनाएं लाना, मथुरा-वृंदावन व अयोध्या को नगर निगम का दर्जा देने का प्रस्ताव पारित करना, राम की पैड़ी का पुनरुद्धार तथा रामायण पार्क के निर्माण का काम आगे बढ़ाना इस बात का प्रमाण रहा है कि कभी घोर मुस्लिम हितैषी चेहरा गढ़ने से संकोच न करने वाली सपा को भी अब उसे बदलने की जरूरत महसूस होने लगी है।

मायावती और कांग्रेस का अयोध्या पर रुख आज वैसा मुस्लिम हितैषी नहीं दिख रहा है, जैसा शुरुआत में हुआ करता था। जाहिर है कि इस सबके पीछे इन दलों को हिंदुओं की नाराजगी का डर ही है।

इसलिए ज्यादा सक्रिय है भाजपा

अयोध्या से हर दल की राजनीति प्रभावित होती चली आई है। अयोध्या आंदोलन से पैदा चेतना के सहारे फर्श से अर्श पर पहुंची भाजपा भी अलग नहीं है। भले ही पार्टी का दृष्टिकोण प्रारंभ से मंदिर और हिंदूवादी रहा हो, लेकिन अयोध्या की राजनीतिक ताकत उसे भी चेताती रही है। मंदिर आंदोलन के सहारे प्रदेश और देश की सत्ता पर पहुंची भाजपा ने इस मुद्दे पर जब भी समझौतावादी रुख अपनाया, पार्टी के लिए हानिकारक रहा।

एजेंडे में मंदिर को बाहर-भीतर करने के प्रयोगों और हिंदुत्व पर नरम रुख के कारण पार्टी को न सिर्फ सत्ता से बाहर होना पड़ा, बल्कि जनाधार भी सिकुड़ता चला गया। नरेंद्र मोदी ने वर्ष 2013 में उसी कमी को ठीक किया और भाजपा की वापसी करा ली।

मोदी भले ही अभी तक अयोध्या नहीं गए, लेकिन उन्होंने कुछ मौलाना की तरफ से दी गई टोपी को ठुकराकर और हिंदुत्व के नए प्रतीकों को तलाशकर तथा राम व कृष्ण के नाम के सहारे कांग्रेस, सपा और बसपा पर ऐसा हमला बोला कि वोटों का ध्रुवीकरण होता चला गया।

प्रदेश में योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में बनी सरकार का अयोध्या के विकास पर ध्यान, सरयू आरती का प्रारंभ, त्रेता युग की दिवाली का आयोजन, राम से ही जुड़ी दूसरी धरती चित्रकूट पर मंदाकिनी की आरती, अब मथुरा-वृंदावन में होली मनाने की तैयारी, अयोध्या, मथुरा-वृंदावन को नगर निगम का दर्जा देना, हिंदुओं की आस्था से जुड़े स्थलों पर ध्यान इस बात का प्रमाण है कि भाजपा पुरानी गलती दोहराना नहीं चाहती। वह अयोध्या के जरिये हिंदुओ में आई चेतना को सहेजकर रखना चाहती है।

अब कोई बहाना भी नहीं बना सकती है भाजपा

भाजपा ने पुराने सबक से बहुत कुछ सीखा है। उसे पता है कि मंदिर का निर्माण तो अब सर्वोच्च न्यायालय के ऊपर है। इसलिए वह अब यह कहने का मौका नहीं देना चाहती कि मंदिर बनवाना तो न्यायालय पर निर्भर था लेकिन भाजपा अयोध्या सहित प्रदेश के उन स्थानों का विकास भी नहीं करा पाई जो हिदुओं की आस्था से जु़ड़े हैं।

जैसा कि 2002 के विधानसभा चुनाव और 2004 के लोकसभा चुनाव में उसके खिलाफ मुद्दा बना था। भाजपा को यह भी पता है कि इस बार उसके पास कोई बहाना भी नहीं है। निचले स्तर से लेकर शीर्ष तक वही सत्ता में है।

ऐसे में अगर विकास के स्तर पर कोई कमी रही तो उसे इसका खामियाजा भुगतना होगा क्योंकि अयोध्या का विकास सिर्फ एक नगर का स्थूल विकास नहीं है बल्कि भाजपा के सरोकारों का विस्तार और उसकी साख का संदेश भी होगा।

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