आपने पहले कभी नहीं सुना होगा कि पहाड़ में कुछ ऐसे गांव भी हैं, जहां गर्मी शुरू होते ही ग्रामीण अपने पशुओं की नीलामी कर देते हैं। या फिर गांव को छोड़कर कहीं दूर छानियों में चले जाते हैं। लेकिन कुछ ऐसे ही गांव टिहरी लोकसभा क्षेत्र के कांडी मल्ला, सड़ब, बेल, परोगी और कांडी तल्ला हैं। गांव छोड़ने और पशुओं को नीलाम करने की सिर्फ इन गांवों में एक ही वजह है और वो है पानी का संकट। ये संकट आज से नहीं पिछले 28 सालों से बना हुआ है।
टिहरी गढवाल के जौनपुर विकासखंड की सिलवाड़ पट्टी की उपपट्टी अठज्यूला के प्रमुख गांव काण्डी (मल्ला व तल्ला) सड़ब(मल्ला व तल्ला), बेल व परोगी आदि सभी गांवों में साल के लगभग आठ महीनों में पेयजल की किल्लत बनी रहती है। गर्मी शुरू होते ही गांव में पानी की एक-एक बूंद के लिए हाहाकार मच जाता है। इनमें सबसे ज्यादा पानी की कमी से कांडी मल्ला व तल्ला गांवों में होती है।
करीब 1500 की आबादी वाले इन गांवों में पानी की समस्या 1991 में आए भूकंप से शुरू हुई। भूकंप से गांव में ग्रामीणों के घर क्षतिग्रस्त होने के साथ ही गांव का जो प्राकृतिक जल स्नोत था। वह भी पूरी तरह सूख गया। पहले कुछ वर्षों तक तो ग्रामीणों ने घोड़े-खच्चरों के जरिये पानी का इंतजाम किया, लेकिन जब गांव तक सड़क पहुंची तो टैंकरों के जरिये पानी की सप्लाई शुरू हुई। टैंकरों के जरिये ग्रामीणों को सीमित पानी मिल पाता है।
कांडी मल्ला गांव के भूतपूर्व सैनिक नागेंद्र सिंह रावत कहते हैं कि गांव में ग्रामीण पशुपालन और खेती करते हैं। गर्मी के चार महीने तो गांव के लिए अभिशाप ही हैं। इस सीजन में पानी के इंतजाम न होने के कारण ग्रामीण अपने मवेशियों की नीलामी कर रहे हैं। कांडी मल्ला गांव के सुल्तान सिंह रावत, प्रेमसिंह, राकेश रावत, गुरदयाल आदि का कहना है कि ग्रामीणों के सामने इन दिनों दो ही विकल्प हैं। या तो गांव से दूर झानियों में मवेशियों को रखा जाए। या फिर मवेशियों को नीलाम किया जाए।
सड़ब गांव के नागेंद्र राणा कहते हैं कि सड़ब में प्राकृतिक स्नोत से भरपूर पानी मिलता था, लेकिन अक्टूबर 1991 में आए भूकंप के कारण पेयजल स्नोत सूख गए। 28 सालों से अगलाड़ नदी व सड़ब खाले से काण्डी पंपिंग योजना की लगातार मांग की जाती रही है। 2010 में इन योजनाओं के लिए प्रस्ताव भी बना। लेकिन वह प्रस्ताव सरकारी दफ्तरों की फाइलों में गुम हो गया।