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हमारे वेद, पुराण आदि धार्मिक ग्रंथों में सोमरस का वर्णन आता है। हम लोग सोमरस को शराब या मदिरा समझते है, हालांकि यह तथ्य बिलकुल गलत है। सोमरस, मदिरा और सुरापान तीनों में फर्क है।

ऋग्वेद में कहा गया है-

।।हृत्सु पीतासो युध्यन्ते दुर्मदासो न सुरायाम्।।

यानी सुरापान करने या नशीले पदार्थों को पीने वाले अक्सर युद्ध, मार-पिटाई या उत्पात मचाया करते हैं।

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क्या है सोमरस 
ऋचाओं में लिखा गया है कि ‘यह निचोड़ा हुआ शुद्ध दधिमिश्रित सोमरस, सोमपान की प्रबल इच्छा रखने वाले इंद्रदेव को प्राप्त हो।।

 …हे वायुदेव! यह निचोड़ा हुआ सोमरस तीखा होने के कारण दुग्ध यानी दूध में मिलाकर तैयार किया गया है। आइए और इसका पान कीजिए।।

।। यहां इन सारी ही ऋचाओं में सोमरस में दूध व दही मिलाने की बात हो रही है यानी सोमरस शराब यानी मदिरा नहीं हो सकता। मदिरा के पान के लिए मद पान शब्द का इस्तेमाल किया गया है, जबकि सोमरस के लिए सोमपान का उपयोग हुआ है। मद का अर्थ नशा या उन्माद है जबकि सोम का अर्थ शीतल अमृत होता है।

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