NEW DELHI: नोटबंदी की घोषणा हुई और लोग इसे प्रधानमंत्री नरेंद्री मोदी का काले धन पर ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ बता रहे हैं। हालांकि, पीएम के इस बड़े कदम के पीछे आइडिया पुणे निवासी अनिल बोकिल और उनके थिंक टैंक अर्थक्रांति प्रतिष्ठान का है।
जुलाई महीने में बोकिल को मोदी से मिलने के लिए महज नौ मिनट का वक्त मिला था। लेकिन जब मोदी ने बोकिल को सुना तो दोनों के बीच बातचीत दो घंटों तक खिंच गई। इस बातचीत का परिणाम नोटबंदी के रूप में सामने आया।
अब जब देशवासी बैंकों और एटीएमों के सामने लाइन लगा कर खड़े हैं, बोकिल इसका दोष सरकार पर मढ़ रहे हैं। उनका आरोप है कि सरकार ने उनके सुझाव को पूरा-पूरा मानने के बजाय अपनी पसंद को तवज्जो दी। उन्होंने मुंबई मिरर से कहा कि मंगलवार को वह प्रधानमंत्री से मिलने दिल्ली जा रहे थे। हालांकि, मुलाकात को लेकर प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) से कोई कन्फर्मेशन नहीं आया था।
काले धन पर ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ में क्या गड़बड़ी हुई, इस बारे में अनिल बोकिल का कहना है कि उन्होंने प्रधानमंत्री के सामने एक व्यापक प्रस्ताव रखा था जिसके पांच आयाम थे। हालांकि, सरकार ने इनमें सिर्फ दो को ही चुना। यह अचानक उठाया गया कदम था, ना कि बहुत सोचा-समझा। इस कदम का ना ही स्वागत किया जा सकता है और ना ही इसे खारिज कर सकते हैं। हम इसे स्वीकार करने के लिए बाध्य हैं। हमने सरकार को जो रोडमैप दिए थे, उससे ऐसी परेशानियां नहीं होतीं
बकौल बोकिल उन्होंने सरकार से कहा-
1. केंद्र या राज्य सरकारों के साथ-साथ स्थानीय निकायों द्वारा वसूले जाने वाले प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष, सभी करों का पूर्ण खात्मा।
2. ये टैक्सेज बैंक ट्रांजैक्शन टैक्स (बीटीटी) में तब्दील किए जाने थे जिसके अंतर्गत बैंक के अंदर सभी प्रकार के लेनदेन पर लेवी (2 प्रतिशत के करीब) लागू होती। यह प्रक्रिया सोर्स पर सिंगल पॉइंट टैक्स लगाने की होती। इससे जो पैसे मिलते उसे सरकार के खाते में विभिन्न स्तर (केंद्र, राज्य, स्थानीय निकाय आदि के लिए क्रमशः 0.7%, 0.6%, 0.35% के हिसाब से) पर बांट दिया जाता। इसमें संबंधित बैंक को भी 0.35% हिस्सा मिलता। हालांकि, बीटीटी रेट तय करने का हक वित्त मंत्रालय और रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के पास होता।
3. कैश ट्रांजैक्शन (निकासियों) पर कोई टैक्स नहीं लिया जाए।
4. सभी तरह की ऊंचे मूल्य की करंसी (50 रुपये से ज्यादा की मुद्रा) वापस लिए जाएं।
5. सरकार निकासी की सीमा 2,000 रुपये तक किए जाने के लिए कानूनी प्रावधान बनाए।
अगर ये सभी सुझाव एकसाथ मान लिए गए होते, तो इससे ना केवल आम आदमी को फायदा होता बल्कि पूरी व्यवस्था ही बदल गई होती। हम सबकुछ खत्म होता नहीं मान रहे। हम सब देख रहे हैं। लेकिन, सरकार ने बेहोशी की दवा दिए बिना ऑपरेशन कर दिया। इसलिए मरीजों को जान गंवानी पड़ी। हम इस प्रस्ताव पर 16 सालों से काम कर रहे हैं जब अर्थक्रांति साल 2000 में स्थापित हुई।