कृषि कानून के खिलाफ दिल्ली के गाजीपुर बॉर्डर पर किसान पिछले दो महीने से आंदोलन कर रहे हैं, लेकिन 26 जनवरी के मौके पर राजधानी में हुई हिंसा से किसान आंदोलन कमजोर पड़ गया था. गाजियाबाद प्रशासन ने किसान नेताओं को धरना खत्म करने का अल्टीमेटम दे रखा था. गाजीपुर बॉर्डर पर पुलिस और फोर्स की मौजूदगी इस ओर इशारा कर रही थी कि किसानों का आंदोलन किसी भी समय खत्म हो सकता है.
इसी बीच भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत ने कहा कि वह आत्महत्या कर लेंगे लेकिन आंदोलन समाप्त नहीं करेंगे और फूट-फूटकर रोने लगे. राकेश टिकैत के निकले आंसुओं ने पूरे माहौल को एकदम से बदल दिया और बोरिया बिस्तर समेट रहे किसानों ने फिर से डेरा जमा दिया है.
किसान नेता राकेश टिकैत एक बार फिर से चर्चा में हैं. उन्हें किसान सियासत अपने पिता और किसान नेता महेंद्र सिंह टिकैत से विरासत में मिली है. पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह के बाद महेंद्र सिंह टिकैत देश में सबसे बड़े किसान नेता थे. टिकैत की एक आवाज पर किसान दिल्ली से लेकर लखनऊ तक की सत्ता हिला देने की ताकत रखते थे. महेंद्र सिंह टिकैत ने एक नहीं कई बार केंद्र और राज्य की सरकारों को अपनी मांगों के आगे झुकने को मजबूर किया. महेंद्र सिंह टिकैत भारतीय किसान यूनियन के लंबे समय तक राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे.
भारतीय किसान यूनियन की नींव 1987 में उस समय रखी गई थी, जब बिजली के दाम को लेकर किसानों ने शामली जनपद के करमुखेड़ी में महेंद्र सिंह टिकैत के नेतृत्व में एक बड़ा आंदोलन किया था. इसमें दो किसान जयपाल और अकबर पुलिस की गोली लगने से मारे गए थे. उसके बाद ही भारतीय किसान यूनियन का गठन किया गया और अध्यक्ष चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत बने थे. इसके बाद महेंद्र टिकैत किसानों के हक की लड़ाई जीवन भर करते रहे और अपनी छवि किसान मसीहा के तौर पर बनाई.
महेंद्र सिंह टिकैत की शादी बलजोरी देवी से हुई थी. उनके चार बेटे और दो बेटियां हैं. महेंद्र सिंह टिकैत के सबसे बड़े बेटे नरेश टिकैत हैं, जो मौजूदा समय में भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं, दूसरे नंबर पर राकेश टिकैत, जो किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता हैं. तीसरे नंबर पर सुरेंद्र टिकैत जो मेरठ के एक शुगर मिल में मैनेजर के तौर पर कार्यरत हैं. वहीं, सबसे छोटे बेटे नरेंद्र टिकैत खेती का काम करते हैं.
राकेश सिंह टिकैत का जन्म मुजफ्फरनगर जनपद के सिसौली गांव में 4 जून 1969 को हुआ था. उन्होंने मेरठ यूनिवर्सिटी से एमए की पढ़ाई की है. उसके बाद एलएलबी किया. राकेश टिकैत की शादी साल 1985 में बागपत जनपद के दादरी गांव की सुनीता देवी से हुई थी. इसी साल उनकी नौकरी दिल्ली पुलिस में लगी थी. इनके एक पुत्र चरण सिंह और दो पुत्री सीमा और ज्योति हैं. इनके सभी बच्चों की शादी हो चुकी है.
किसान नेता पुरन सिंह कहते हैं कि महेंद्र सिंह टिकैत के बड़े बेटे नरेश टिकैत भारतीय किसान यूनियन में ही सक्रिय थे, लेकिन 1985 में राकेश टिकैत दिल्ली पुलिस में कॉन्स्टेबल भर्ती हुए थे. इसी दौरान 90 के दशक में दिल्ली के लाल किले पर महेंद्र सिंह टिकैत के नेतृत्व में किसानों का आंदोलन चल रहा था.
ऐसे में सरकार की ओर से राकेश टिकैत पर पिता महेंद्र सिंह टिकैत से आंदोलन खत्म कराने का दबाव बना. ऐसे में राकेश टिकैत उसी समय पुलिस की नौकरी छोड़ किसानों के साथ खड़े हो गए थे. इसके बाद से ही किसान राजनीति का हिस्सा बन गए और देखते ही देखते ही महेंद्र सिंह के किसान सियासत के वारिस के तौर पर उन्हें देखा जाने लगा.
पिता महेंद्र सिंह टिकैत की कैंसर से मृत्यु के बाद राकेश टिकैत को उनका वारिस माना जा रहा था. 15 मई 2011 को लंबी बीमारी के चलते महेंद्र सिंह टिकैत के निधन के बाद बड़े बेटे चौधरी नरेश टिकैत को पगड़ी पहनाकर भारतीय किसान यूनियन का अध्यक्ष बनाकर कमान सौंप दी गई और राकेश टिकैत राष्ट्रीय प्रवक्ता की जिम्मेदारी निभाते रहे. महेंद्र सिंह टिकैत बालियान खाप से आते थे. इसी चलते उनकी मृत्यु के बाद उनके बड़े बेटे नरेश टिकैत को भारतीय किसान यूनियन का अध्यक्ष बनाया गया, क्योंकि खाप के नियमों के मुताबिक बड़ा बेटा ही मुखिया हो सकता है.
हालांकि, नरेश टिकैत भले ही किसान यूनियन के अध्यक्ष बन गए हों, लेकिन व्यावहारिक तौर पर भारतीय किसान यूनियन की कमान राकेश टिकैत के हाथ में है और सभी अहम फैसले राकेश टिकैत ही लेते हैं. किसान आंदोलन की रूप रेखा आज भी राकेश टिकैत ही तय करते हैं. राकेश टिकैत ने दो बार राजनीति में भी किस्मत आजमाई. पहली बार 2007 में उन्होंने मुजफ्फरनगर की खतौली विधानसभा सीट से निर्दलीय चुनाव लड़ा था, लेकिन नहीं जीत सके. इसके बाद राकेश टिकैत ने 2014 में अमरोहा जनपद से राष्ट्रीय लोक दल पार्टी से लोकसभा का चुनाव भी लड़ा था, पर जीतकर संसद नहीं पहुंच सके.
भारतीय किसान युनियन के महासचिव धर्मेंद्र मलिक ने बताया कि किसानों की लड़ाई के चलते राकेश टिकैत 44 बार जेल जा चुके हैं. मध्यप्रदेश में एक समय भूमि अधिग्रहण कानून के खिलाफ उनको 39 दिनों तक जेल में रहना पड़ा था. इसके बाद दिल्ली में संसद भवन के बाहर किसानों के गन्ना मूल्य बढ़ाने को लेकर उन्होंने सरकार के खिलाफ प्रदर्शन किया, गन्ना जला दिया था, जिसकी वजह से उन्हें तिहाड़ जेल भेज दिया गया था. राजस्थान में भी किसानों के हित में बाजरे के मूल्य बढ़ाने के लिए सरकार से मांग की थी. सरकार द्वारा मांग न मानने पर टिकैत ने सरकार के खिलाफ प्रदर्शन किया था. जिस वजह से उन्हें जयपुर जेल में जाना पड़ा था. अब एक बार फिर से दिल्ली हिंसा में उन्हें नोटिस दिया गया है और उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज हुई है.
किसान ट्रैक्टर परेड के दौरान हुई हिंसा के लिए दिल्ली पुलिस ने राकेश टिकैत के खिलाफ एफआईआर भी दर्ज कर ली है. दिल्ली पुलिस ने हिंसा को लेकर आईपीसी की धारा 395 (डकैती), 397 (लूट या डकैती, मारने या चोट पहुंचाने की कोशिश), 120 बी (आपराधिक साजिश) और अन्य धाराओं के तहत एफआईआर दर्ज की है. मामले की जांच क्राइम ब्रांच द्वारा की जाएगी. दिल्ली पुलिस ने सैकड़ों लोगों को हिरासत में भी लिया है.