मेरठ की चुनावी जमीन से पीएम मोदी ने आखिर किस स्कैम का खुलासा किया..

मेरठ की सरजमीं से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक स्कैम (SCAM) का जिक्र किया. यूपी में पहले चरण के चुनाव की तारीख 11 फरवरी है. ठीक एक हफ्ते पहले पीएम मोदी द्वारा उठाए गए इस स्कैम की हर ओर चर्चा है. दरअसल इस स्कैम की रणनीति बीजेपी के वॉर रूम में पहले ही तय हो गई थी.मेरठ की चुनावी जमीन से पीएम मोदी ने आखिर किस स्कैम का खुलासा किया..

दरअसल भारतीय जनता पार्टी यूपी चुनाव में आगे का चुनाव प्रचार कैसे करे, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कैसे और किस मुद्दे पर चुनावी रैलियों को संबोधित करें, इसको लेकर पार्टी के कैंपेन मैनेजरों ने नया फॉर्मूला तैयार किया है. चुनावी रणनीति पर पार्टी की बैठक में ये तय किया गया है कि पीएम मोदी का चुनावी रथ अब बीजेपी बनाम स्कैम (SCAM) के फॉर्मूले पर चलाया जाना चाहिए.

पीएम मोदी ने स्कैम (SCAM) का खुलासा कुछ इस तरह किया. S यानी समाजवादी, C यानी कांग्रेस, A यानी अजित और M यानी मायावती. इस तरह के फॉर्मूले के पीछे का तर्क ये दिया गया है कि बीजेपी ने 2014 लोकसभा चुनाव के बाद यूपी में जो मजबूत जनाधार प्राप्त किया था उसे न खोया जाए. पार्टी किसी भी सूरत में चुनाव की मुख्य धुरी से हटना नहीं चाहेगी.

अगर 1989 से देश के इस महत्वपूर्ण राजनीतिक राज्य पर नजर डालें तो पाएंगे कि यहां कभी भी राष्ट्रीय राजनीति का प्रभाव नहीं देखा गया. यहां मायावती और मुलायम सिंह यादव की पार्टियों ने देश की अहम पार्टियों बीजेपी और कांग्रेस को मजबूत अंतर से पीछे रखा है. हालांकि 2014 के लोकसभा चुनाव में राजनीति के इस दुर्भाग्य को मोदी के जादू ने तोड़ा.

ये पहली बार है जब राज्य में सामाजिक और ऐतिहासिक रूप से बेमेल पार्टियों कांग्रेस और सपा के बीच गठबंधन हुआ है. इसका मकसद है बीजेपी को हराना. इसमें राहुल गांधी और यूपी सीएम अखिलेश के साथ आने का मुख्य मकसद मुस्लिम वोटरों को एक साथ वोट में अपने पक्ष में बदलना है.

इन सबके बीच सबसे ज्यादा जिज्ञासा का विषय है कांग्रेस के राजनीतिक चाल पर नजर. शायद राहुल गांधी के लिए यूपी ही इकलौता राज्य है जहां वह सबसे ज्यादा मेहनत करते हैं. उनका मकसद रहता है खुद को नेहरू—गांधी के वंशज के रूप में योग्य साबित करना. 2009 के लोकसभा चुनाव में जब कांग्रेस सिर्फ 21 सीटें ही जीती थी तब लोगों को लगा था कि शायद अगले चुनाव में पार्टी फिर वापसी करे. पर ऐसा नहीं हुआ, 2012 विधानसभा चुनाव और 2014 लोकसभा चुनाव में कांग्रेस का आकार और छोटा हो गया. इसीलिए 2017 के चुनाव में कांग्रेस ने खुद को राष्ट्रीय पार्टी के तौर पर कद बढ़ाने के लिए अखिलेश यादव के सहारे चुनावी दंगल में ताल ठोंका है.

अगर इतिहास पर नजर डालें तो देखेंगे कि सपा के मुखिया मुलायम सिंह यादव हमेशा से कांग्रेस विरोधी रहे हैं. इस तरह ये देखना दिलचस्प होगा कि अब सपा और कांग्रेस के बीच गठबंधन का भविष्य कैसा होगा. उदाहरण के तौर पर यादवों का स्थानीय निकाय चुनाव में दबदबा. इसी तरह नौकरशाही समेत प्रदेश के तमाम बड़े पदों पर यादवों की नियुक्ति. पूरे प्रदेश में तमाम महत्वपूर्ण पुलिस स्टेशनों पर यादव जाति के लोगों की तैनाती और बड़ी संख्या में भर्ती.

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