नई दिल्ली. उत्तर प्रदेश में दो लोकसभा सीटों पर 11 मार्च को हुए उपचुनाव के नतीजे बुधवार को आएंगे. पहली सीट तो सांसद योगी आदित्यनाथ के प्रदेश के मुख्यमंत्री बनने से खाली होने वाली गोरखपुर है. वहीं दूसरी सीट फूलपुर भी सांसद केशव प्रसाद मौर्य के उप मुख्यमंत्री बनने से ही खाली हुई है. इन दोनों महत्वपूर्ण स्थानों पर होने वाले चुनाव पर प्रदेश से लेकर देशभर के नेताओं और जनता की नजरें लगी हुई हैं. क्योंकि इन दोनों ही सीटों पर जीत या हार से प्रदेश में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी की लोकप्रियता का ग्राफ जुड़ा हुआ है.
अगर भाजपा ये दोनों सीटें बचा पाने में नाकाम रहती है तो इसे प्रदेश में सीएम योगी और उनकी पार्टी के लिए नैतिक पराजय माना जाएगा. वहीं, अगर भाजपा के मुकाबले भारी अंतर से पिछले विधानसभा चुनाव में मात खाने वाली समाजवादी पार्टी इन दोनों सीटों पर चुनाव जीत जाती है तो यह प्रदेश में उसकी खोती साख बचाने वाला घटनाक्रम माना जाएगा. जाहिर है गोरखपुर और फूलपुर सीटों का यह उपचुनाव सियासी दृष्टि से अहम होने वाला है. लेकिन सियासत से इतर गोरखपुर का अपना इतिहास रहा है. उपचुनाव के बरक्स ही हमें यह भी जानना चाहिए कि हम गोरखपुर को कितना जानते हैं. तो आइए जानते हैं गोरखपुर को और पढ़ते हैं गोरखनाथ के इस शहर के बारे में.
गुरु गोरखनाथ के नाम पर ही पड़ा शहर का नाम
उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल में गोरखपुर, बाबा गोरखनाथ के नाम से सुविख्यात अनेक पुरातात्विक, अध्यात्मिक, सांस्कृतिक एवं प्राकृतिक धरोहरों को समेटे हुए है. मुंशी प्रेमचन्द की कर्मस्थली व फिराक गोरखपुरी की जन्मस्थली के रूप में गोरखपुर, पूर्वांचल के गौरव का प्रतीक है. तीर्थांकर महावीर, करुणावतार गौतम बुद्ध, संत कवि कबीरदास एवं गुरु गोरखनाथ ने जनपद के गौरव को राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्थापित किया. यह एक धार्मिक केंद्र के रूप में मशहूर है जो बौद्ध, हिन्दू, मुस्लिम, जैन और सिख संतों की साधनास्थली रहा. मगर मध्ययुगीन सर्वमान्य संत गोरखनाथ के बाद उनके ही नाम पर इसका वर्तमान नाम गोरखपुर रखा गया. यहां का प्रसिद्ध गोरखनाथ मंदिर नाथ संप्रदाय की पीठ है. यह महान संत परमहंस योगानंद का जन्म स्थान भी है. इसके अलावा अमर शहीद पं. राम प्रसाद बिस्मिल, बन्धु सिंह व चौरीचौरा आंदोलन के शहीदों की शहादत स्थली गोरखपुर रही है. यह हस्तकला ‘टैराकोटा’ के लिए भी प्रसिद्ध है.
गोरखनाथ मंदिर का है समृद्ध इतिहास
हिन्दू धर्म, दर्शन, आध्यात्म और साधना की समृद्ध संस्कृति में ‘नाथ संप्रदाय’ प्रमुख स्थान रखता है. नाथ संप्रदाय की मान्यता के अनुसार सच्चिदानंद शिव के साक्षात् स्वरूप ‘श्री गोरक्षनाथ जी’ सतयुग में पेशावर (पाकिस्तान) में, त्रेतायुग में गोरखपुर, उत्तरप्रदेश, द्वापर में हरमुज, द्वारिका के पास तथा कलियुग में गोरखमधी, सौराष्ट्र में अविर्भूत हुए थे. चारों युगों में विद्यमान एक अयोनिज अमर महायोगी, सिद्ध महापुरुष के रूप में एशिया के विशाल भूखंड तिब्बत, मंगोलिया, कंधार, अफगानिस्तान, नेपाल, सिंघल तथा समूचे भारतवर्ष को इन्होंने अपने योग से कृतार्थ किया. बताया जाता है कि गुरु गोरखनाथ की यह तपो भूमि शुरुआत में तपोवन के रूप में रही होगी. इस शांत तपोवन में योगियों के निवास के लिए छोटे-छोटे मठ रहे होंगे. बाद के दिनों में यहां पर मंदिर का निर्माण हुआ होगा. आज जिस विशाल और भव्य मंदिर का दर्शन करने श्रद्धालु गोरखपुर पहुंचते हैं, उस मंदिर का निर्माण ब्रह्मलीन महंत श्री दिग्विजयनाथ जी महाराज जी ने कराया था. आज यह मंदिर पूरे भारतवर्ष में नाथ संप्रदाय का सबसे बड़ा केंद्र है. संपूर्ण देश में फैले इस संप्रदाय के विभिन्न मंदिरों और मठों की देख-रेख भी यहीं से होती है.
गोरखनाथ मंदिर के अलावा भी कई प्रसिद्ध स्थल हैं गोरखपुर में
वैसे तो गोरखपुर को सबसे ज्यादा गोरखनाथ मंदिर के लिए ही जाना जाता है. यह मंदिर अपने सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व के कारण इतना ही महत्वपूर्ण है भी. लेकिन गोरखपुर में इसके अलावा भी कई सुरम्य और सांस्कृतिक पर्यटन स्थल हैं जो इस शहर को विशिष्ट बनाते हैं. इनमें विष्णु मंदिर, विनोद वन, गीता वाटिका, रामगढ़ ताल, इमामबाड़ा, प्राचीन महादेव झारखंडी स्थान, मुंशी प्रेमचंद उद्यान और सूर्यकुंड मंदिर आदि शामिल हैं. वहीं गोरखपुर का गीताप्रेस भी अपने आप में धार्मिक और साहित्यिक महत्व रखता है.