कानपुर। आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के हैदराबाद में शुरू हुए 26वें अधिवेशन में वंदेमातरम् और संस्कृत भी एजेंडे में शामिल है। अधिवेशन में कानपुर से शामिल होने गए बोर्ड सदस्य मोहम्मद सुलेमान ने इन्हें अनिवार्य करने को भगवाकरण की साजिश बता चर्चा का प्रस्ताव दिया है। इन बिंदुओं पर बोर्ड 11 फरवरी को विमर्श करेगा।
बोर्ड का तीन सदस्यीय अधिवेशन कल शुरू हुआ। इस संदर्भ में मोहम्मद सुलेमान ने आरोप लगाया कि केंद्र व राज्य सरकार स्कूलों में वंदेमातरम् थोप रही है। केंद्रीय विद्यालयों की इतिहास की पुस्तकों में तथ्य बदले जा रहे हैं। अल्पसंख्यक विद्यालयों में संस्कृत भी पढ़ाई जाएगी। यह भगवाकरण की साजिश है। इसका उद्देश्य भीमराव आंबेडकर के संविधान के साथ छेड़छाड़ करना है। संविधान ने सभी को अपने धर्म अनुसार इबादत करने की आजादी दी है, लेकिन अब भगवा एजेंडा लागू करने का प्रयास हो रहा। पर्सनल लॉ बोर्ड सदस्य ने कहा कि बोर्ड अब सिर्फ मुस्लिमों तक ही सीमित नहीं रहेगा बल्कि अपनी इस्लाहे मुआशरा (समाज सुधार) योजना के तहत अब सभी समुदाय के लोगों से भी संपर्क करेगा और उन्हें बताएगा कि इस्लाम क्या है।
गौरतलब है कि बोर्ड पिछले दस वर्षों से इस्लाहे मुआशरा (समाज सुधार) का अभियान चला रहा है। मॉडल निकाहनामा बोर्ड पांच वर्ष पूर्व बना चुका है लेकिन ढिलाई के चलते उसका प्रभाव बहुत ज्यादा नहीं रहा। ट्रिपल तलाक को बोर्ड पहले ही शरीयत से छेड़छाड़ बता चुका है। अयोध्या पर आने वाला खर्च भी मुद्दे में रखा जाएगा।
अयोध्या पर सुलह को तैयार नहीं
अयोध्या विवाद का हल कोर्ट के बाहर सुलह-समझौते से निकालने की श्रीश्री रविशंकर की ताजा कोशिशों को दूसरे ही दिन मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने खारिज कर दिया। हैदराबाद में बोर्ड की बैठक में पदाधिकारियों ने कहा कि उसे सुप्रीम कोर्ट का फैसला ही मंजूर होगा। आर्ट ऑफ लिविंग के श्रीश्री रविशंकर ने गुरुवार को मुस्लिम प्रतिनिधियों के साथ बैठक की थी। इसमें बोर्ड के सदस्य मौलाना सैयद सलमान हुसैन नदवी ने मस्जिद दूसरी जगह बनाने की राय जाहिर की थी।
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का हैदराबाद में तीन दिवसीय 26वां अधिवेशन शुरू हुआ। पहले दिन की बैठक के बाद बोर्ड के कार्यकारी सदस्य और ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआइएमआइएम) सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने बताया कि अयोध्या मामले पर पर्सनल लॉ बोर्ड के पुराने रुख में कोई बदलाव नहीं आया है। उन्होंने बोर्ड का बयान भी पढ़कर सुनाया। इसमें कहा गया कि बोर्ड अपनी दिसंबर 1990 और जनवरी 1993 वाले प्रस्ताव पर कायम है।
बोर्ड के मुताबिक, यह जमीन मस्जिद के लिए है और इसे न तो बेचा जा सकता है और न ही गिफ्ट किया जा सकता है। एक बार मस्जिद को दी गई जमीन अल्लाह की हो जाती है। इस मामले पर समझौते के लिए की गई सभी बातचीत बिना किसी नतीजे की ही खत्म हुई है। इसलिए बोर्ड को अब सिर्फ सुप्रीम कोर्ट का फैसला ही मंजूर होगा।