नई दिल्ली : समाजिक विकास सूचकांक पर अन्य समुदायों के मुकाबले मुसलिमों के पिछड़ने पर उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी ने फिक्र जताई है।
हामिद अंसारी ने दिल्ली में शुक्रवार को एक कार्यक्रम मुस्लिमों की बदहाली का जिक्र करते हुए कहा कि यदि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सबका साथ, सबका विकास नारे को हकीकत में तब्दील करना है तो अल्पसंख्यक समुदाय को अन्य समुदायों के बराबरी में लाना होगा। मुस्लिमों को अब गुहार लगाना छोड़ना होगा। इनके पास सरकार से मांगने का कानूनी हक है लेकिन अफसोस ये है कि अल्पसंख्यकों को कई बार उनके दायित्वों और जिम्मेदारियों की याद दिलाने की जरूरत पड़ती है।
अंसारी ने कहा कि देश का नागरिक होने के नाते मुसलमानों के भी उतने ही हक हैं, जितने अन्य नागरिकों को हासिल हैं।
यदि हुकूमत उन्हें उनके हक देने में कोताही करती है या देरी करती है तो वह अपनी आवाज उसके सामने उठा सकते हैं लेकिन यदि उसने अपने बच्चों को तालीम से महरूम रखा तो विकास की दौड़ में वह पिछड़ जाएंगे।
उन्होंने कहा कि मुसलमानों को इस बात पर खुद से सवाल करना चाहिये देश के नागरिक के रूप में तालीम के क्षेत्र में उनकी क्या हैसियत है और इसके लिये उन्होंने कितनी जद्दोजहद की। इस संबंध में उन्होंने उत्तर प्रदेश के इटावा में सवा सौ साल पुराने एक इस्लामी कॉलेज के दौरे का जिक्र करते हुए कहा कि वहां बातचीत करने पर उन्हें पता लगा कि मुसलमान सातवीं-आठवीं कक्षा की पढ़ाई के बाद अपने बच्चों को यह कहकर काम में लगा देते हैं कि वे घर में हाथ बटाएं।
अंसारी ने मुसलिमों को अपने भीतर झांकने और शिक्षा उपलब्ध कराने पर अधिक ध्यान देने को भी कहा क्योंकि इस समुदाय में तालीम बीच में छोड़ने वाले बच्चों की संख्या बहुत अधिक है। उपराष्ट्रपति ने यहां कहा-हमारे प्रधानमंत्री ने सबका साथ, सबका विकास पर जोर दिया है। लेकिन अगर सबको साथ चलना है तो सबको एक लाइन में खड़ा होना है। उन्होंने आगे कहा कि अगर कोई 10 गज पीछे है तो मुकाबला नहीं कर सकता। सबको एक लाइन पर लीजिए तब मुल्क तरक्की करेगा। यह एक महान राष्ट्र है और आगे समृद्ध होगा। अंसारी यहां एक सम्मेलन को संबोधित कर रहे थे जिसमें अल्पसंख्यकों के सशक्तीकरण में शिक्षा कैसे मददगार साबित हो सकती है, इस पर चर्चा की गई।