आधुनिक परमाणु बम की तरह ब्रह्मास्त्र एक अचूक अस्त्र है. यह शत्रु पक्ष का नाश करके ही छोड़ता है. इसे दूसरा ब्रह्मास्त्र चलाकर ही रोका या खत्म किया जा सकता है, महर्षि वेदव्यास ने इसका प्रभाव कुछ इस तरह लिखा है कि जहां ब्रह्मास्त्र छोड़ा जाता है, वहां 12 सालों तक पर्जन्य वृष्टि (जीव-जंतु, पेड़-पौधे आदि की उत्पत्ति) नहीं हो पाती. इसका प्रयोग रामायण काल में भी हुआ और महाभारत युद्ध में भी.
महाभारत में ब्रह्मास्त्र अर्जुन और अश्वत्थामा के अलावा कर्ण चलाना जानता था, मगर गुरु परशुराम के श्राप के चलते कर्ण खुद अंतिम समय में इसे चलाने की विद्या भूल गया. इसी तरह दूसरा दिव्यास्त्र ब्रह्मशिरा था, यह भी ब्रह्मास्त्र की तरह ही महाविनाशक था, ब्रह्मशिरा माने ब्रह्माजी के सिर. इसका प्रयोग करना श्रीकृष्ण, गुरु द्रोण और अर्जुन ही पूरी तरह जानते थे. लेकिन इसकी मामूली जानकारी रखने वाले अश्वत्थामा ने युद्ध के अंत में गुस्से में आकर चला दिया, जवाब में अर्जुन ने भी अश्वत्थामा पर ब्रह्मशिरा प्रयोग कर दी. तबाही शुरू हो गई तो ऋषि मुनियों ने अर्जुन और अश्वत्थामा को समझाया कि इन दो महाविनाशकारी अस्त्रों की आपस में टक्कर से पृथ्वी पर प्रलय आ जाएगा.
ऋषि मुनियों के आह्वान पर अर्जुन ने चलाया अपना दिव्यास्त्र तो वापस ले लिया, लेकिन अश्वत्थामा अज्ञानता के चलते ऐसा नहीं कर सका. ऐसे में उसने इसे अर्जुन की बहू उत्तरा के गर्भ की ओर मोड़ दिया. इसे उत्तरा के गर्भ में पल रहे शिशु की मौत हो गई. यह देखकर कृष्ण आपे से बाहर हो गए और अश्वत्थामा को तीन हजार सालों तक बीमारियों के साथ भटकने का श्राप दे दिया. कृष्ण ने अपने तप से उत्तरा का गर्भ फिर जीवित कर दिया.