NEW DELHI: भगवान शिव की एक विदेशी भक्त इन दिनों तीर्थ नगरी पुष्कर की सुर्खियों में है। दरअसल, ये विदेशी मैम शिव की अनन्य भक्त है और सावन के सोमवार को न सिर्फ उपवास रखती है बल्कि पूरे सावन महीने में लहसुन और प्याज से भी परहेज रखती है। हम बात कर रहे हैं इटली मूल की मारा सांद्री की। सांद्री करीब 35 साल पहले अपनी स्प्रिचुअल विजिट पर भारत आई थीं। तब शिव से उनका परिचय अमीश त्रिपाठी की किसी बेस्ट सेलिंग ‘शिवा ट्राय लॉजी’ पुस्तक ने नहीं कराया था, बल्कि पुष्कर के शिवालय में आत्म अनुभूति से वो हमेशा-हमेशा के लिए शिव उपासक बन गईं।
हम बात कर रहे हैं इटली मूल की मारा सांद्री की। सांद्री करीब 35 साल पहले अपनी स्प्रिचुअल विजिट पर भारत आई थीं। तब शिव से उनका परिचय अमीश त्रिपाठी की किसी बेस्ट सेलिंग ‘शिवा ट्राय लॉजी’ पुस्तक ने नहीं कराया था, बल्कि पुष्कर के शिवालय में आत्म अनुभूति से वो हमेशा-हमेशा के लिए शिव उपासक बन गईं। सांद्री ने बताया कि शिव अराधना वे भारत आने या सिर्फ पुष्कर में रहते हुए नहीं करती बल्कि अपने देश में भी वे नियमित पूजा अर्चना करती हैं। सांद्री ने अमेरिकी देश डोमेनिक रिपब्लिक स्थित अपने नए घर में शिव मंदिर बनवा रखा है। वे बताती है कि वे अमेरिका में रहते हुए भी भगवान शिव के सेवा करना नहीं भूलती।
सांद्री ने बताया कि शिव अराधना वे भारत आने या सिर्फ पुष्कर में रहते हुए नहीं करती बल्कि अपने देश में भी वे नियमित पूजा अर्चना करती हैं। सांद्री ने अमेरिकी देश डोमेनिक रिपब्लिक स्थित अपने नए घर में शिव मंदिर बनवा रखा है। वे बताती है कि वे अमेरिका में रहते हुए भी भगवान शिव के सेवा करना नहीं भूलती।
सांद्री बताती है कि वे पिछले 13 सालों से सावन के महीने में शिव की विशेष आराधना करती है। सावन के सोमवार को उपवास रखती हैं और पूरे महीने खास शिड्यूल फॉलो करती हैं। इसी तर्ज पर इस बार लहसुन और प्याज खाने का परहेज किया है। सांद्री ने पुष्कर में 2003 में फ्यिोर दी लोटो फाउंडेशन की संस्थापना की और तब से वे जरूरतमंदों की सेवा में लगी हैं। खासतौर पर लड़कियों की शिक्षा और उनके स्वास्थ्य को लेकर वे और उनका फाउंडेशन काम करता आ रहा है। 2003 में जहां उन्होंने 42 गरीब बच्चियों को स्कूल शिक्षा से जोड़ा वहीं अब उनकी संस्था की मदद से 500 से अधिक लड़कियां शिक्षा ले रही हैं। यही नहीं गरीब परिवारों को आर्थिक मदद और पेंशन के रूप में सहायता भी उपलब्ध करा रही हैं।
2003 में जहां उन्होंने 42 गरीब बच्चियों को स्कूल शिक्षा से जोड़ा वहीं अब उनकी संस्था की मदद से 500 से अधिक लड़कियां शिक्षा ले रही हैं। यही नहीं गरीब परिवारों को आर्थिक मदद और पेंशन के रूप में सहायता भी उपलब्ध करा रही हैं।
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