नई दिल्ली: मध्य प्रदेश सरकार ने केंद्र सरकार से कहा है कि वन्यजीव संरक्षण अधिनियम के कुछ प्रावधानों के कारण राज्य महज ‘ रबर स्टांप’ बनकर रह गए हैं और उन प्रावधानों में संशोधन करने की जरूरत है. प्रदेश सरकार ने 1972 के अधिनियम में बदलाव करने की जरूरत पर बताई ताकि राज्य बाघ अभयारण्य में बफर क्षेत्र में वह बदलाव कर सकें. बफर इलाका बाघ के मुख्य आवास वाले क्षेत्र का बाहरी इलाका होता है. यहां मानव बस्तियां भी हो सकती हैं.मध्‍य प्रदेश सरकार ने केंद्र से कहा, वन्‍यजीव संरक्षण कानून के कुछ प्रावधानों ने राज्‍यों को बनाया 'रबर स्‍टॉम्‍प'

केंद्र ने वन्यजीव संरक्षण में बदलाव के लिए मांगे थे सुझाव

ये सुझाव विभिन्न पक्षकारों की ओर से प्राप्त जानकारियों के आधार पर तैयार किए गए हैं. इन पक्षकारों में मध्य प्रदेश सरकार के कुछ सचिव, देहरादून स्थित वन्यजीव संस्थान के प्रमुख एवं अन्य शामिल हैं. राज्य सरकार ने वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 में बदलाव के लिए उनसे उनके विचार मांगे थे. पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने राज्य सरकार से कानून के संबंध में रचनात्मक सुझाव मांगे थे.

वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 में बदलाव की मांग की

केंद्र को भेजे जवाब में राज्य सरकार ने कहा कि अधिनियम की धारा 38 (वी) की उपधारा एक क्षेत्र को बाघ अभयारण्य के रूप में अधिसूचित करने के मामले में राज्य के लिए केंद्र की संस्तुति का पालन करना अनिवार्य बनाती है. राज्य ने इसमें बदलाव की मांग की है. पत्र में राज्य सरकार ने कहा कि अधिनियम की धारा 38 (डब्ल्यू) वन्यजीव बोर्ड और राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण की सिफारिशों को लागू करने में राज्यों को महज ‘रबर स्टांप’ बनाती है. इस पत्र की एक प्रति भोपाल के रहने वाले वन्यजीव कार्यकर्ता अजय दुबे को आरटीआई के जरिए प्राप्त हुई है.