चुनावी तैयारियों को समय पर दुरूस्त रखने में सफल रहने के बावजूद भाजपा सरकार के आरक्षण कोटे के ताजा दांव को लेकर कांग्रेस सतर्क हो गई है। बता दें कि कर्नाटक में विधानसभा चुनाव के तारीख का एलान हो गया है।
चुनावी प्रबंधन की कमजोरी को लेकर अक्सर सुर्खियों में रहने वाली कांग्रेस कर्नाटक विधानसभा चुनाव की तैयारियों में आश्चर्यजनक रूप से इस बार अपने विरोधियों से आगे नजर आ रही है। पिछले कई सालों से एंटनी समिति की रिपोर्ट के अनुरूप समय रहते पार्टी चुनावी तैयारियां पूरी कर लेने की कसौटी पर खरी नहीं उतर पा रही थी लेकिन कर्नाटक चुनाव में यह ट्रेंड कुछ हद तक बदला दिख रहा है।
चुनावी तारीखों की बुधवार हुई घोषणा से करीब हफ्ते भर पहले ही कांग्रेस ने सूबे की आधी से अधिक सीटों पर अपने उम्मीदवारों का ऐलान कर दिया था।
भाजपा को घेर रही कांग्रेस
बहरहाल चुनावी प्रबंधन में सुधारों के बावजूद कर्नाटक में भाजपा की जातीय और सामाजिक ध्रुवीकरण के आखिर में चले गए सियासी दांव ने कांग्रेस की चुनावी राह की चुनौतियां बढ़ा दी है।
जाहिर तौर पर चुनाव अभियान के दौरान ध्रुवीकरण बढ़ाने वाले भावनात्मक मुद्दों पर अब पार्टी के सामने बहुत मुखर होने की गुंजाइश नहीं है और इसीलिए पार्टी ने सूबे की भाजपा सरकार के भ्रष्टाचार के गंभीर मामलों और नाकामियों पर ज्यादा फोकस रखने के संकेत दिए हैं।
चौतरफा राजनीतिक चुनौतियों का सामना कर रही कांग्रेस के लिए राहुल गांधी की लोकसभा सदस्यता खत्म किए जाने के तत्काल बाद होने जा रहा कर्नाटक का चुनाव बेहद महत्वपूर्ण हो गया है।
इस साल कई राज्यों में होने वाले हैं विधानसभा चुनाव
सूबे में चुनावी जीत पार्टी और राहुल दोनों की राजनीतिक वापसी के लिए निर्णायक साबित हो सकती है। 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव और उससे पूर्व मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ, राजस्थान, तेलंगाना जैसे बड़े राज्यों में इस साल के आखिर में होने वाले चुनावों में पूरा जोर लगाने के लिए भी कर्नाटक की कामयाबी पार्टी को मनोवैज्ञानिक रूप से भाजपा को टक्कर देने के लिए ताकत देगी।बेशक जेडीएस के तीसरी ताकत होने की हकीकत को नकारा नहीं जा सकता मगर मौजूदा सियासी वास्तविकता यह भी है कि मुख्य चुनावी मुकाबला भाजपा और कांग्रेस के बीच ही है।
कर्नाटक में कांग्रेस सफल होती है तो पार्टी का यह भरोसा बढ़ेगा कि वह भाजपा को शिकस्त देने में सक्षम है। इस साल के आखिर में जिन राज्यों में चुनाव होने हैं उनमें तेलंगाना को छोड़ सभी में कांग्रेस और भाजपा का ही सीधा मुकाबला है और स्वाभाविक रूप से कर्नाटक की कामयाबी मनोवैज्ञानिक संजीवनी साबित हो सकती है। साथ ही इन चुनावी राज्यों में कांग्रेस की सफलता ही 2024 में उसके विपक्ष की केंद्रीय धुरी बनने और भाजपा को चुनौती देने की दिशा निर्धारित करेगी।
कांग्रेस की सक्रियता सूबे में बोमई सरकार के लिए चुनौती बनी
इसीलिए पार्टी ने कर्नाटक में चुनाव की तैयारियों को आगे रखने की रणनीति पर लगातार काम करते हुए 224 में से 124 विधानसभा सीटों का उम्मीदवार पहले ही घोषित कर दिया था। सूबे की भाजपा सरकार के खिलाफ राजनीतिक अभियानों से लेकर प्रमुख चुनावी वादों को जनता के बीच पहुंचाने में भी कांग्रेस की सक्रियता सूबे में बोमई सरकार के लिए चुनौती बनी है।
कर्नाटक कांग्रेस के प्रभारी महासचिव रणदीप सुरजेवाला तो पिछले कई महीनों से लगभग पूरा समय वहीं बिता रहे हैं। इतना ही नहीं पार्टी हाईकमान की सीधी निगहबानी के चलते पार्टी के दिग्गज नेताओं विशेष रुप से पूर्व सीएम सिद्धारमैया और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष डीके शिवकुमार के बीच नेतृत्व के चेहरे के लिए किसी तरह की न लड़ाई है और अंदरूनी गुटबाजी पर भी विराम लगा हुआ है।
अल्पसंख्यकों को ओबीसी कोटे में दिए गए चार फीसदी आरक्षण खत्म
भाजपा सरकार के खिलाफ लोगों की नाराजगी के दावों के बीच चुनावी तैयारियों के लगभग सभी मोर्चेों को दुरूस्त रखने की इस रणनीतिक सफलता के बावजूद कर्नाटक चुनाव को पार्टी इसलिए आसान नहीं मान रही कि चुनावी तारीखों के ऐलान के चंद दिनों पहले ही बोम्मई सरकार ने अल्पसंख्यकों को ओबीसी कोटे में दिए गए चार फीसदी आरक्षण को खत्म कर दिया। साथ ही इस चार फीसदी कोटे को सूबे की दो सबसे प्रभावशाली जातियों ¨लगायत और वोक्कालिंगा के बीच दो-दो प्रतिशत बांट दिया है।
इस फैसले से असहमत होते हुए भी कांग्रेस चुनाव के दरम्यान इसका मुखर विरोध करने की स्थिति में नहीं है। इन दोनों समुदायों के एक बड़े वर्ग के समर्थन के बिना चुनावी फतह की दहलीज तक पहुंचना आसान नहीं खासकर यह देखते हुए कि भाजपा के दिग्गज येदियुरप्पा लिंगायतों के सबसे बड़े नेता हैं तो पूर्व पीएम एचडी देवेगौड़ा वोक्का¨लगा समुदाय के सबसे बड़े चेहरे हैं। ऐसे में साफ है कि सामाजिक ध्रुवीकरण की सियासत में कर्नाटक में कांग्रेस के लिए सबसे बड़ी चुनावी चुनौती है।