भारत-चीन सीमा पर सेना की राह आसान बनाने के लिए सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) चमोली जिले में नीती व माणा पास को सड़क से जोडऩे का काम कर रहा है, लेकिन निर्जन सीमा क्षेत्र में कार्य होने के कारण आज तक कभी किसी महिला अधिकारी की तैनाती बीआरओ में नहीं हुई। अब माणा दर्रे में देश की सबसे ऊंचाई वाली निर्माणाधीन सड़कों में से एक की जिम्मेदारी पहली बार महिला अधिकारी मेजर आईना राणा को सौंपी गई है। वह बीआरओ की 75-सड़क निर्माण कंपनी (आरसीसी) की कमान बखूबी संभाल रही हैं।
मूलरूप से हिमाचल प्रदेश के मंडी जिले की निवासी आईना राणा की शिक्षा-दीक्षा पंजाब के पठानकोट में हुई। आईना के पिता संजीव कुमार रेलवे से सेवानिवृत्त हैं, जबकि मां कविता गृहिणी हैं। एसएमडीआरएसडी कालेज पठानकोट से कंप्यूटर साइंस में स्नातक आईना बचपन से ही सेना में जाने का ख्वाब देखती थी। इसके लिए माता-पिता ने भी हमेशा उनका हौसला बढ़ाया। स्वयं आईना ने भी पढ़ाई के दौरान ही एनसीसी के जरिये इस ख्वाब को हकीकत में बदलने की राह बनाई। एनसीसी में रहते हुए आईना ने दो बार राष्ट्रीय शिविर में शामिल होकर अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन किया।
वर्ष 2007 में वह थल सेना कैंप और वर्ष 2009 में राजपथ पर गणतंत्र दिवस परेड का हिस्सा बनीं। वर्ष 2011 में उन्होंने अधिकारी प्रशिक्षण अकादमी (ओटीए) चेन्नई में प्रवेश लिया और सितंबर 2012 में वहां से पासआउट होने के बाद सेना में कोर आफ इंजीनियरिंग का हिस्सा बनीं। इसके बाद उन्होंने दिल्ली व लेह में सेवाएं दी, लेकिन पढ़ाई से रिश्ता बराबर बनाए रखा। इसी दौरान उन्होंने कालेज आफ मिलिट्री इंजीनियरिंग से सिविल इंजीनियरिंग में बीटेक किया। वर्ष 2018 में इंजीनियरिंग की डिग्री लेने के बाद उन्हें उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले में तैनाती मिली।
यहां आईना को पहाड़ की विषम भौगोलिक परिस्थितियों को जानने-परखने का मौका मिला। इसके बाद उन्होंने सेना की राह आसान करने के लिए दुर्गम क्षेत्र में सड़क निर्माण को जीवन का लक्ष्य बना लिया। आईना का यह सपना तब साकार हो गया, जब उन्होंने दुर्गम क्षेत्र में सड़क निर्माण की इच्छा जताते हुए बीआरओ मुख्यालय को सेना के माध्यम से आवेदन भेजा। दरअसल, बीआरओ के डीजी ले.जनरल राजीव चौधरी भी महिला अधिकारियों को बीआरओ के माध्यम से दुर्गम क्षेत्र में बड़ी जिम्मेदारी देकर कुछ नया करना चाहते थे। इसके लिए मेजर आईना में उन्हें सर्वाधिक संभावनाएं नजर आईं और बीते अगस्त में उन्हें चीन सीमा पर सबसे दुर्गम माने जाने वाले माणा पास की जिम्मेदारी देते हुए 75-आरसीसी की कमान अधिकारी नियुक्त किया गया।
माणा पास सड़क निर्माण का कार्य देश के अंतिम गांव माणा से चीन सीमा तक किया जा रहा है। इसके बाद यह देश की सबसे ऊंचाई वाली सड़कों में से एक होगी। मेजर आईना कहती हैं कि यह मुश्किल लक्ष्य था, लेकिन डीजी ने 75-आरसीसी में उनके साथ अन्य महिला अधिकारियों की भी तैनाती कर कंपनी को अलग पहचान दिलाने की पहल की। उनके साथ तीन प्लाटून कमांडर के रूप में कैप्टन अंजना, एई विष्णुमाया व एई भावना की भी तैनाती हुई। मेजर आईना के अनुसार उनकी टीम अधिकारी, कर्मचारी व श्रमिकों को साथ लेकर लगातार माणा पास सड़क के विस्तार में जुटी है। लक्ष्य है कि इस वर्ष यह कार्य पूरा हो जाए।
पति ने हमेशा किया इच्छाओं का सम्मान : मेजर आईना का विवाह वर्ष 2016 में महेंद्रगढ़ जिले (हरियाणा) के ग्राम सेलंग निवासी मेजर अनूप कुमार यादव से हुआ। उनका चार साल का एक बेटा भी है। वह कहती हैं, पति ने हमेशा उनकी इच्छाओं का सम्मान करते हुए उन्हें आगे बढऩे की प्रेरणा दी। उनके जेठ-जेठानी भी सेना में अधिकारी हैं। जबकि, ससुर कुमाऊं रेजीमेंट से सेवानिवृत्त हुए हैं।
चुनौतियों से डर नहीं लगता : मेजर आईना कहती हैं कि माणा पास में निर्माणाधीन सड़क अति दुर्गम क्षेत्र में है। जोशीमठ के हेलंग से माणा तक 30 किमी हिस्से में सड़क का रखरखाव और माणा से माणा पास तक 50 किमी हिस्से में सड़क निर्माण व डामरीकरण का कार्य चल रहा है। इस क्षेत्र में मौसम प्रतिकूल रहता है। बर्फबारी व भूस्खलन के बीच सड़क निर्माण का कार्य किसी चुनौती से कम नहीं है। कहती हैं, सेना में रहते हुए उन्होंने हर दिन नई-नई चुनौतियों का सामना किया है, इसलिए विकट से विकट परिस्थितियां भी उन्हें डराती नहीं। हां! यह जरूर है कि आरसीसी में टूआइसी से लेकर श्रमिक लेवल तक जितने भी लोग हैं, उन्होंने हमेशा आरसीसी की कमान पुरुष अधिकारी के हाथ में देखी है। अचानक एक महिला का इस पद पर काबिज होना, उनके और मेरे लिए नया अनुभव है।
कैंट देखकर हुआ सेना से लगाव
मेजर आईना कहती हैं, हम पठानकोट में पले-बढ़े। पठानकोट, जम्मू-पंजाब और हिमाचल प्रदेश के बीच एक संपर्क बिंदु है। यहां मामून कैंट बिल्कुल हमारे घर के पास स्थित है। हम जहां भी जाते थे, वहां हमें जवान दिखाई देते थे। मैं जब भी कैंट एरिया को देखती तो मुझे भी वहां घूमने का मन होता था। लेकिन, सुरक्षा कारणों से आमजन को अंदर जाने की अनुमति नहीं थी। तभी मैंने ठान लिया था कि एक दिन मैं भी सेना में जाऊंगी।
पूरा किया पिता का सपना : मेजर आईना कभी उस पल को भूली नहीं, जब उन्होंने पहली बार सेना की वर्दी पहनी थी। कहती हैं, पिता का भी सेना में जाने का सपना था, जो किसी कारणवश पूरा नहीं हो सका। इसलिए जब उन्होंने मुझे वर्दी में देखा तो भावुक हो गए। अब तो वह कहते हैं कि मुझे सेना में न जा पाने का कोई अफसोस नहीं है। क्योंकि, मेरा सपना तो तुमने पूरा कर दिया।