शहर के बेरोजगारों को आजीविका से जोड़ने के मकसद से खोले गए ‘शहरी आजीविका केंद्रों’ (सीएलसी) की ‘बेरोजगारी’ दूर करने के लिए सरकार के स्तर पर पहल शुरू कर दी गई है। प्रदेश के विभिन्न शहरों में खोले गए सीएलसी को समृद्ध करने के लिए ‘जयपुर मॉडल’ पर ‘बिजनेस प्लान’ तैयार होगा।
सरकारी विभागों में आउटसोर्सिंग से ली जाने वाली सेवाओं को जहां सीएलसी से जोड़ने की व्यवस्था होगी, वहीं अर्ध सरकारी विभागों, उपक्रमों, प्राधिकरणों व निगमों में भी सीएलसी के माध्यम से ही सेवाएं मुहैया कराई जाएंगी। राष्ट्रीय शहरी आजीविका मिशन (एनयूएलएम) के तहत प्रदेश के कई शहरों में सीएलसी खोले गए हैं।
इनके जरिए, बढ़ई, लोहार, इलेक्ट्रिशियन, प्लंबर, चालक जैसे तमाम स्किल्ड व सेमी स्किल्ड और तकनीकी हुनर जानने वाले कामगारों को रोजगार मुहैया कराने और इसके एवज में पंजीकृत कामगारों द्वारा एक निश्चित फीस के तौर पर सीएलसी को दिए जाने की व्यवस्था की गई थी।
मंशा यह थी कि इस व्यवस्था से जहां रोजगार मिलेगा, वहीं फीस के रूप में मिलने वाली राशि से सीएलसी का खर्च भी निकलता रहेगा। सीएलसी खोलने के लिए सरकार द्वारा 10 लाख रुपये देने का प्रावधान है, लेकिन इसके बाद इन केंद्रों का संचालन खुद की कमाई से करना होता है। लखनऊ, गोरखपुर, वाराणसी व कानपुर के परियोजना अधिकारियों की टीम ने पिछले दिनों मदुरै व जयपुर जाकर वहां के सीएलसी का अध्ययन किया था।
तय किया गया है कि यूपी में ‘जयपुर मॉडल’ पर सीएलसी का संचालन होगा। निदेशक सूडा की ओर से इस मॉडल का प्रारूप सभी जिलों के परियोजना अधिकारियों को भेजकर उनसे इसी आधार पर ‘बिजनेस प्लान’ का प्रस्ताव तैयार कर निदेशालय को उपलब्ध कराने को कहा गया है। इसके तहत एनयूएलएम की घटक महिलाओं की ‘स्वयं सहायता समूह’ (एसएचजी) को भी सीएलसी से जोड़ने की तैयारी है।