बॉम्बे हाईकोर्ट ने जैन समाज की उस याचिका को खारिज किया जिसमें पर्यूषण पर्व के दौरान 10 दिन तक वधशालाएं बंद रखने की मांग की गई थी। कोर्ट ने कहा कि भावनाओं का सम्मान है लेकिन पूरे शहर पर पाबंदी उचित नहीं। बीएमसी का दो दिन का बंद आदेश ही रहेगा लागू।
बॉम्बे हाईकोर्ट ने बुधवार को जैन समाज की उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें पर्यूषण पर्व के दौरान शहर की वधशालाएं 10 दिनों के लिए बंद रखने की मांग की गई थी। अदालत ने स्पष्ट किया कि वह समुदाय की भावनाओं का सम्मान करती है, लेकिन यह अधिकार कहां से बनता है कि पूरे शहर की वधशालाएं इतने लंबे समय तक बंद कराई जाएं।
खंडपीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता कोई ठोस आधार प्रस्तुत नहीं कर पाए। अदालत ने बृहन्मुंबई महानगरपालिका (बीएमसी) और राज्य सरकार को नोटिस जारी कर दो सप्ताह बाद सुनवाई तय की। याचिकाकर्ताओं ने बीएमसी आयुक्त के 14 अगस्त के आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें वधशालाएं केवल दो दिन बंद रखने की अनुमति दी गई थी। बीएमसी ने दलील दी कि मुंबई में जैन समाज की आबादी कम है और शहर का दियोनार वधशाला पूरे मुंबई मेट्रोपॉलिटन क्षेत्र की जरूरत पूरी करती है।
पर्यूषण पर्व दिगंबर समुदाय द्वारा 20 से 27 अगस्त और श्वेतांबर समुदाय की ओर से 21 से 28 अगस्त तक मनाया जाएगा। जैन समाज का कहना है कि यह पर्व अहिंसा का संदेश देता है और इस अवधि में पशुवध पर रोक लगनी चाहिए। बीएमसी ने अदालत को बताया कि वर्तमान में सरकार ने वर्ष में 16 दिन वधशालाओं की बंदी अधिसूचित की हुई है। इस वर्ष पर्यूषण के दौरान भी 24 और 27 अगस्त को वधशालाएं बंद रहेंगी।
निगम को मनाना कठिन साबित हो रहा है…
सुनवाई के दौरान वरिष्ठ अधिवक्ता प्रसाद धाकेपल्कर ने एक ऐतिहासिक संदर्भ देते हुए कहा कि जैन समाज ने मुगल सम्राट अकबर को भी वधशालाएं बंद कराने के लिए मना लिया था। अकबर ने अहमदाबाद में छह महीने तक वध पर रोक लगाई थी। उन्होंने हल्के-फुल्के अंदाज में कहा, सम्राट को मनाना आसान था, लेकिन राज्य सरकार और निगम को मनाना कठिन साबित हो रहा है।
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