जम्मू कश्मीर में हिज्बुल कमांडर बुरहान वानी के एनकाउंटर के बाद भी घाटी के युवा आतंक की राह पर जा रहे हैं लेकिन इन भर्तियों का लिंक बुरहान वानी से जरूर है. 8 जुलाई 2016 को बुरहान की हत्या के बाद 35 से ज्यादा युवाओं ने आतंकी संगठन हिज्बुल का रुख किया है और इनकी भर्ती के पीछे नया चलन देखने को मिला है.
अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस में छपी खबर के मुताबिक बुरहान एनकाउंटर के बाद हिज्बुल में शामिल हुए इन युवाओं के बारे में उनके परिजनों, मित्रों से जुड़ी जानकारी जुटाने पर यह पता चलता है कि वह किसी ने किसी रूप में बुरहान की मौत प्रभावित थे. अखबार के हाथ लगी रिपोर्ट में कहा गया कि इन युवाओं को बुरहान की मौत ने हिज्बुल में दाखिल होने के लिए प्रभावित किया.
सुरक्षाबलों के लिए यह आतंकी कोई चुनौती बन पाते इससे पहले ही ज्यादातर का एनकाउंटर कर दिया गया है. बावजूद इसके अब भी नए युवा हिज्बुल में शामिल हो रहे हैं. एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि इस ट्रेंड को जल्द से जल्द खत्म किए जाने की जरूरत है.
पहले कैसे होती थी भर्ती
घाटी में इससे पहले आतंक की राह चुनने वाले युवाओं की भर्ती गुपचुप तरीके से होती थी. कम बार ही ऐसा होता था कि नए भर्ती हुए युवाओं को कोई बड़ा मिशन दिया जाता था. भर्ती के बाद उन्हें सीमा पार भेज कम से कम 3 महीनों के लिए हथियारों की ट्रेनिंग दी जाती थी और इसके बाद वो गोली-बारूद लेकर वापस लौटते और उन्हें पहचान छुपाकर काम पर लगाया जा था.
ऐसे बदल रहा है ट्रेंड
नब्बे के दशक में आतंकवादी गतिविधियों में कमी आई और किसी आतंकी के एनकाउंटर के बाद प्रतिक्रिया या जवाबी हमले भी कम हुए. ऐसा कम ही हुआ जब आतंकवादी की हत्या के बाद उसे शहीद का दर्जा दिया गया हो. बुरहान शुरुवात में पहचान छिपाकर ही काम कर रहा था लेकिन बाद में उसने इस ट्रेंड को बदला और खुलेआम नाम के साथ सबसे सामने आया. सोशल मीडिया के जरिए उसने नाम और फोटो उजाकर की और नया चलन शुरू कर दिया, जो अब पहले से ज्यादा खतरनाक साबित हो रहा है.
इन दिनों आतंकी संगठनों में शामिल हो रहे युवा इसी ट्रेंड को फॉलो कर रहे हैं. आतंकी आजकल हथियारों के साथ सोशल मीडिया पर फोटो या वीडियो शेयर करते हैं और इसके बाद परिवार वालों को इस बारे में पता चला पाता है. इनमें से ज्यादातर को तो ट्रेनिंग भी नहीं मिली होती है. हाथियारों के लिए भी इन्हें पुलिस और सुरक्षाबलों से लूटे गए हथियारों पर निर्भर रहना पड़ता है. यह किसी खास मिशन को अंजाम देने से पहले की सुरक्षाबलों की गोली का शिकार हो जाते हैं.
बीते दिनों ऐसे कई उदाहरण देखने को मिले हैं, लेकिन एक उदाहरण सबसे खतरनाक है. इसे बयान करते हुए वरिष्ठ अधिकारी कहते हैं कि स्थानीय लोग सुरक्षा इंतजामों को बिगाड़ते हैं जिसका फायदा उठाकर आतंकी अपनी पैठ जमा लेते हैं. दूसरी ओर जब आतंकी को घेर लिया जाता है तो स्थानीय सुरक्षाबलों को रोकने की कोशिश करते हैं. अगर आतंकी को मार दिया जाता है तो उसके जनाजे में शामिल होने के लिए सैकड़ों की तादाद में घरों से बाहर आते हैं. आतंकी के आस-पास इस तरह का माहौल बनाया जा रहा है.