अपने दूसरे कार्यकाल में मोदी सरकार ने भारत में जल संकट की गंभीरता को देखते हुए जल शक्ति मंत्रालय का गठन कर दिया है, जो सभी जल संबंधी मुद्दों की व्यापक रूप से निगरानी करेगा। मौजूदा जल संसाधन मंत्रालय को पेयजल और स्वच्छता मंत्रालय के साथ विलय करके और नदी संरक्षण निदेशालय को नए मंत्रालय में स्थानांतरित करके मजबूत किया गया है। देश में बढ़ते जल संकट को ध्यान में रखते हुए केंद्र सरकार ने जल संरक्षण और वर्षा जल संचयन, पारंपरिक जल निकायों और टैंकों का नवीनीकरण, बोरवेल रिचार्ज संरचनाओं का पुन: उपयोग, वाटरशेड विकास और गहन वनीकरण पर जोर देते हुए जल शक्ति अभियान शुरू किया है। यह अभियान 255 जिलों में फैले 1593 ब्लॉकों में लागू किया जाएगा, जिनमें से अधिकांश तमिलनाडु, राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, तेलंगाना, कर्नाटक, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में स्थित हैं।
पीएम मोदी ने सभी ग्राम प्रधानों को व्यक्तिगत पत्र लिखकर देश के जल संकट को दूर करने के लिए सामूहिक प्रयास करने को कहा है। अपने मन की बात कार्यक्रम के जरिये भारत के नागरिकों से आग्रह किया कि पानी की कमी के बारे में जागरूकता पैदा करें, ज्ञान साझा करें, जल भंडारण के पारंपरिक तरीकों और जल संरक्षण पर काम करने वाले व्यक्तियों और गैर सरकारी संगठनों के बारे में जानकारी साझा करें। समयबद्ध तरीके से सफल क्रियान्वयन सुनिश्चित करने के लिए प्रत्येक जिले के लिए केंद्र सरकार के 255 वरिष्ठ अधिकारियों को केंद्रीय प्रभारी नियुक्त किया जाएगा। यह सही दिशा में सराहनीय कदम हैं।
नल से जल सरकार की एक नई पहल है, जो 2024 तक सभी शहरों और ग्रामीण क्षेत्रों से मौजूदा जल संकट को दूर करने और सभी घरों में पाइप से पानी प्रदान करने का वादा करती है। यदि इसे सफलतापूर्वक लागू किया जाता है तो यह गेम चेंजर होगा। सभी के लिए पाइप जलापूर्ति का प्रावधान करने के लिए नए कौशल, उच्च निवेश, उत्तरदायी संस्थान और जल संवर्धन और उच्च उपयोग दक्षता की आवश्यकता होगी। इसके लिए हमें ये कदम उठाने चाहिए।
अधिकांश सुरक्षित पाइप पेयजल योजनाएं भूजल आपूर्ति पर आधारित होंगी। इसलिए सभी पारंपरिक और आधुनिक भूजल पुनर्भरण हस्तक्षेपों को अपनाकर स्थानीय भूजल संसाधनों के संवद्र्धन के प्रयास किए जाने चाहिए। भारत के प्रत्येक राज्य और क्षेत्र के पास अपने समय की जांच की गई प्रौद्योगिकी और प्रथाएं हैं, जो स्थानीय जल सुरक्षा प्रदान करती हैं। सफल उदाहरणों में राजस्थान में जोहड़, तालाब, टनका, खड़ीन; दिल्ली में बावली, हौज और तालाब, बुंदेलखंड में चंदेला टैंक, केरल में सर्ग, मंदिर और दक्षिणी भारत में सामुदायिक टैंक; पंजाब में टोबा; बिहार में अहार और पाइनेस और ताल, और अपाटनी और उत्तर पूर्व में बांस से टपकना शामिल हैं।तालाबों में पुनर्भरण कुओं की स्थापना करके स्थानीय जल आपूर्ति को बढ़ाने के लिए इनका प्रभावी ढंग से उपयोग किया जा सकता है।
इस तरह के प्रयास से गांव को अत्यधिक बाढ़ से भी बचाया जा सकेगा। उत्तर और दक्षिण दोनों से कई अच्छे उदाहरण हैं, यहां कैस्केडिंग चेक डैम, सोख-गड्ढों, खाइयों, गहन वृक्षों और घास रोपण के निर्माण के8 माध्यम से समुदाय के ठोस प्रयासों ने सूखी नदियों और नदियों को पुनर्जीवित करने में मदद की है। इस तरह के प्रयासों को गुजरात और कर्नाटक में बढ़ाया गया है। वेटलैंड्स, झीलों, जल निकायों, जो शहर के लिए स्पंज के रूप में कार्य करते हैं उन्हें कभी भी उद्योगों और शहरीकरण के लिए अतिक्रमण नहीं किया जाना चाहिए। क्योंकि वो बाढ़ को अवशोषित करने और भूजल को रिचार्ज करने में संतुलन रखते हैं। डेवलपर्स का ऐसा लालच चेन्नई में हाल के जल संकट का एक मुख्य कारण था।