बीएचयू वीसी बोले- मैं मोदी के रोड शो में नहीं था, झूठ फैलाने वाला मिले तो पिट जाएगा

यूपी में अंतिम चरण के चुनावों की सरगर्मी के बीच बनारस इस समय सियासी हॉट पॉइंट बन चुका है. लेकिन इलेक्शन के बीच बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी अपने वाइस चांसलर जीसी त्रिपाठी के चलते चर्चा में है. नवंबर 2014 में बीएचयू की कमान संभालने वाले त्रिपाठी अपने कई फैसलों के कारण विवादों में रहे हैं. उन पर आरएसएस से जुड़े होने का आरोप लगाया गया है.

कहा जा रहा है कि जीसी त्रिपाठी संघ के प्रचारक हैं और उन्हें यूनिवर्सिटी का भगवाकरण करने के लिए भेजा गया है. त्रिपाठी पर नया आरोप लगा है कि उन्होंने 4 मार्च को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के रोड शो में भी हिस्सा लिया. इन सारे आरोपों पर बीएचयू के वाइस चांसलर जीसी त्रिपाठी ने न्‍यूज18 से खास बातचीत की.

क्‍या आप 4 मार्च को पीएम मोदी के रोड शो में शामिल हुए थे?

मुझ पर 4 मार्च को पीएम मोदी की रैली अटैंड करने का आरोप झूठा है. मैं इसमें नहीं गया. 4 मार्च को मैं अपने ऑफिस में बैठकर टेलीविजन पर पूरी रैली देख रहा था. यदि मेरे वहां जाने की बात साबित हो जाए तो मुझ पर कार्रवाई कर सकते हैं. मैं जानता हूं एक पत्रकार ने ट्विटर के जरिये इस झूठ को फैलाया है. यदि वह कैंपस में आता है, तो यकीं मानिए ‘वे विधिवत पीटे जाएंगे’. मैं इस तरह का झूठ फैलाने वाली चीजों को बर्दाश्त नहीं करुंगा.

आप पर सबसे बड़ा आरोप है कि आप राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के आदमी हैं. क्या यह झूठ है? 

हां मैं आरएसएस का हूं और मुझे इस पर गर्व है. लेकिन इससे दूसरे को क्या लेना-देना. क्या आरएसएस से जुड़ा होने का अर्थ किसी सीनियर पोस्ट पर बैठने की योग्यता ना रखना है. ऐसे तो हमारे पीएम भी आरएसएस से हैं,  तो क्या उन्हें भी भगा दें.

आरएसएस के लोग भी प्रशासन कर सकते हैं, और संघ का मेंबर होने का आधार है, तो फिर बड़ी मुश्किल होगी. यदि आरएसएस के साथ होते हुए प्रोफेसर हो सकता हूं, तो फिर मैं एक विवि का वाइस चांसलर भी हो सकता हूं.

लेकिन इस तरह के आरोप हैं कि आप यूनिवर्सिटी का भगवाकरण कर रहे हैं?   

मुझे आप मेरा एक फैसला बता दें तो जो यूनिवर्सिटी का भगवाकरण करता है. आप मुझे एक उदाहरण दे दीजिए.

यूनिवर्सिटी में आरएसएस की शाखा लगती है या नहीं?

शाखा तो मेरे वाइस चांसलर बनकर यहां आने से पहले से लग रही है. क्या मैंने इसे शुरू किया? संघ कार्यालय तो यहां यूनिवर्सिटी स्थापना के समय से चल रहा है, जबकि इमरजेंसी के दौरान इसे खत्म किया गया. ऐसे में तो मुझे बनवाना चाहिए था और यदि मैं ऑफिस बनवा भी दूं, तो कोई विरोध नहीं करेगा. इस बात को ध्यान रखा जाना चाहिए कि संघ के दूसरे सरसंघचालक परमपूज्य गुरु जी माधवराव सदाशिव गोलवलकर भी यहां पढ़े थे और उन्होंने यहां पढ़ाया भी था. फिर ये भगवा क्या है?  यह तो सूर्य का प्रतीक है. यदि आप इसे हटा दें तो क्या पृथ्वी बच पाएगी? केसरिया रंग तो ऊर्जा है, प्रकाश है, ज्ञान है और इन सबके बिना हम सब निष्क्रिय हो जाएंगे. यदि भगवा का मतलब ज्ञान, प्रकाश, त्याग और ऊर्जा है, तो फिर बीएचयू का भगवाकरण किया जाना चाहिए.

क्या शाखा जाते हैं?

मैं पहले जाया करता था, लेकिन व्यस्तता के चलते अब नहीं जा पाता हूं. मुझे वक्त‍ मिले तो मैं जरूर जाऊंगा. वैसे मैै फिर से जाऊंगा. मुझे आज भी शाखा में शामिल होने में कोई दिक्कत नहीं है.

कई छात्रों का आरोप है कि आप यहां राजनीतिक आवाजों को उठने नहीं देते. आप क्या कहना चाहेंगे इस पर? 

मुझे लगता है कि निहित स्वार्थों के चलते कई राजनीतिक दल विश्वविद्यालयों का राजनीतिकरण कर रहे हैं. देखिए हैदराबाद की सेंट्रल यूनिविर्सिटी का क्या हुआ. उस मुद्दे को लगातार उछाला गया. क्या वह सही मुद्दा था. किसने क्या किया मुझे यह नहीं पता, लेकिन उसे एक राजनीतिक मुद्दा बनाया गया. आप ही बताइए कि कुछ महीनों बाद उस केस में क्या निकलकर आया?

यही कि वह दलित नहीं था?

इसमें दलित होने या गैर दलित होने की बात नहीं है. क्या उसे किसी ने सुसाइड करने के लिए बाध्य किया. नहीं ना. यही हर यूनिवर्सिटी कैंपस की स्थिति है इस समय. देखिए जेनएयू को और डीयू को. यकीनन हमें मुद्दों पर बात करनी चाहिए और एक-दूसरे को सुनना चाहिए, लेकिन छात्रों को राजनीति पढ़नी चाहिए और परिपक्व लोगों को राजनीति करनी चाहिए.

यदि आप संवाद और चर्चा का सपोर्ट करते हैं, तो क्या आप यहां भी वैसे प्रोग्राम आयोजित करवाएंगे जो दिल्ली् यूनिवर्सिटी के रामजस कॉलेज में हुआ. क्या आप उमर खालिद को बस्तर पर बोलने की अनुमति देंगे? या कश्मीर में चल रहे अलगाववादी आंदोलन पर बात करने देंगे?

हम कश्मीर मुद्दे पर हमारे बीच में ही चर्चा करेंगे.  किसी बाहरी व्यक्ति को इस बात की अनुमति नहीं दी जा सकती कि वो यहां यूनविर्सिटी में आकर इस पर चर्चा करे. जहां तक उमर खालिद की बात है, उसका रिकॉर्ड ऐसा है कि कैंपस में हड़कंप मचना तय है. उसने कभी भी जेएनयू में उस दिन कही गई बात पर अफसोस नहीं जताया. पहले उसे बताना होगा कि वह यहां क्या कहेगा, उसके बाद उस पर सोचा जाएगा. मैं किसी भी विचार के खिलाफ नहीं हूं.

आप देखिए ना

आहार निद्रा भय मैथुनं च

सामान्यमेतत् पशुभिर्नराणाम्

धर्मो हि तेषामधिको विशेष:

धर्मेण हीनाः पशुभिः समानाः

इसका अर्थ है निद्रा, भय और मैथुन– ये तो मनुष्यं और पशु में समान है, लेकिन मनुष्य‍ में विशेष केवल धर्म है,  और बिना धर्म के लोग पशुतुल्य हैं.

किस पुस्तक का श्लोक है ये?

उसी स्मृति का है जिसे सब खत्म करना चाहते हैं

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