आगामी बिहार विधानसभा चुनाव में भीम आर्मी के संस्थापक और आजाद समाज पार्टी के अध्यक्ष चंद्रशेखर आजाद की एंट्री हो गई है. चंद्रशेखर ने मंगलवार को पटना में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस करते हुए ऐलान किया कि उनकी पार्टी आगामी बिहार विधानसभा चुनाव के सभी 243 सीटों पर उम्मीदवार उतारने की तैयारी कर रही है.
चंद्रशेखर के चुनावी मैदान में उतरने की घोषणा के बाद अब बिहार की राजनीति में दलित वोट बैंक की सियासत गरमाने लगी है. चंद्रशेखर के बिहार विधानसभा चुनाव लड़ने के ऐलान के बाद जिन राजनीतिक दलों की धुकधुकी सबसे ज्यादा बढ़ चुकी है, उनमें लोक जनशक्ति पार्टी और हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा है.
बिहार में मुख्यतः दलित वोट बैंक की राजनीति करने वाली लोक जनशक्ति पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष चिराग पासवान फिलहाल एनडीए गठबंधन का हिस्सा है. वहीं, महागठबंधन में हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी शामिल हैं, जिनका भी कोर वोट बैंक दलित है.
सवाल उठने लगे हैं कि चंद्रशेखर आजाद के बिहार चुनाव में उतरने से किसको फायदा होगा और किसको नुकसान? बिहार में अगर दलित वोट बैंक पर नजर डालें तो इसकी संख्या तकरीबन 15 फीसदी है.
पिछले कुछ सालों में देखें तो बिहार की राजनीति में अब तक दलित वोट बैंक पर नीतीश कुमार और रामविलास पासवान का कब्जा रहा है. बिहार में दलित आबादी 22 उपजाति में बंटी हुई है.
इन 22 उपजाति में सबसे ज्यादा संख्या पासवान वोटरों की है जो तकरीबन 4.5 फीसदी हैं. बिहार के 243 विधानसभा सीटों में से 38 अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है. माना जाता है कि पासवान वोटर रामविलास पासवान के लिए समर्पित हैं.
इसके अलावा जो दलित वोट बैंक है उस पर नीतीश कुमार का कब्जा है. जिस तरीके से पिछले 15 सालों में नीतीश कुमार ने दलितों के विकास के लिए कार्यक्रम चलाए हैं उसकी वजह से दलित समाज नीतीश कुमार के प्रति समर्पित है.
ऐसे में, चंद्रशेखर के बिहार विधानसभा चुनाव में उतरने के ऐलान से सवाल उठने लगे हैं कि उनका कितना असर पड़ेगा? सबसे बड़ी बात जो चंद्रशेखर आजाद के खिलाफ जाती है वो ये है कि उन्होंने अब तक बिहार में कोई काम नहीं किया है.
चंद्रशेखर आजाद की राजनीति अब तक उत्तर प्रदेश तक ही सीमित रही है. बिहार के किसी भी इलाके में चंद्रशेखर आजाद ने काम नहीं किया है, जिसका असर वहां की राजनीति में देखा जा सके.
चंद्रशेखर आजाद की बिहार विधानसभा चुनाव में एंट्री मुख्य तौर पर प्रतीकात्मक है. बिहार की राजनीति में उनकी एंट्री को एक पब्लिसिटी स्टंट के रूप में देखा जा सकता है. जिन विधानसभा सीटों पर दलित वोट बैंक निर्णायक भूमिका में है, वहां पर चंद्रशेखर आजाद एनडीए गठबंधन को डैमेज कर सकते हैं मगर इतना ज्यादा भी नहीं की परिणाम को ही पलट दें.