इलाहाबाद हाई कोर्ट (Allahabad High Court) की लखनऊ खंडपीठ ने कानपुर विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. विनय पाठक (Prof Vinay Pathak) के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामले में दर्ज प्राथमिकी को रद करने और उनकी गिरफ्तारी पर रोक लगाने की मांग को खारिज कर दिया है। यह आदेश जस्टिस राजेश सिंह चौहान एवं जस्टिस विवेक कुमार सिंह की पीठ ने पाठक की ओर से दाखिल याचिका पर पारित किया। इससे पहले कोर्ट ने याचिका पर सुनवाई पूरी करके गुरुवार को फैसला सुरक्षित कर लिया था।
कानपुर विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. विनय पाठक की उस याचिका को हाई कोर्ट मे खारिज कर दिया है जिसमें उन्होंने अपने खिलाफ दर्ज एफआइआर को चुनौती दी थी। न्यायालय ने कहा है कि याची की ओर से ऐसा कोई तथ्य नहीं बताया जा सका जिसके आधार पर उसके खिलाफ दर्ज एफआइआर को खारिज किया जा सके। न्यायालय ने कहा कि चूंकि एफआइआर नहीं खारिज हो सकती लिहाजा याची को गिरफ्तारी से भी कोई राहत नहीं प्रदान की जा सकती है।
प्रो. विनय पाठक के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराकर वादी डेविड मारियो डेनिस ने कहा था कि उन्होंने उनके बिल पास करने के एवज में 1 करोड़ 41 लाख रुपये ऐंठे हैं। विनय पाठक की ओर से पेश अधिवक्ता एलपी मिश्रा का तर्क था कि भ्रष्टाचार के केस में पाठक को बिना अभियोजन स्वीकृति के गिरफ्तार नहीं किया जा सकता है।
राज्य सरकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता जेएन माथुर एवं वादी के वरिष्ठ अधिवक्ता आइबी सिंह ने कहा था कि प्राथमिकी को पढ़ने से प्रथमदृष्टया संज्ञेय अपराध का बनना स्पष्ट होता है, लिहाजा प्राथमिकी को खारिज नहीं किया जा सकता। इन परिस्थितियों में पाठक की गिरफ्तारी पर भी रोक नहीं लगाई जा सकती है।
दोनों पक्षों की बहस सुनने के बाद पीठ ने अपना फैसला सुरक्षित कर लिया था। इससे पहले भी पीठ ने एक नवंबर को सुनवाई पूरी कर अपना फैसला सुरक्षित किया था किंतु अगले दिन फैसला आने से पहले ही पाठक के अधिवक्ता के अनुरोध पर उन्हें और बहस करने का समय दे दिया था।