जज ‘बड़े भाई साहब’ कहानी सुनाते हुए कहते हैं कहानी में बड़ा भाई छोटे को अच्छे रास्ते पर ले जाने के लिए प्रेरित करता है लेकिन अफजाल ऐसा नहीं कर सका।प्रेमचंद की कहानी में भाई होने का धर्म निभाने के लिए भाई किस तरह अपनी इच्छाओं की तिलांजलि देता है।
आज से करीब 89 साल पहले ‘हंस’ पत्रिका में प्रेमचंद की एक कहानी छपी थी। शीर्षक था – ‘बड़े भाई साहब’। कथा सम्राट प्रेमचंद की इसी कहानी का उद्धरण गाजीपुर के एमपी-एमएलए कोर्ट के अपर सत्र न्यायाधीश दुर्गेश ने शनिवार 29 अप्रैल को गैंगस्टर मामले में माफिया मुख्तार अंसारी और उसके बड़े भाई अफजाल अंसारी को सजा सुनाते समय दिया।
जज अफजाल से बोले- अगर आपने बड़े भाई का फर्ज अदा किया होता तो मुख्तार अंसारी अपराधी नहीं होते। प्रेमचंद की यह कहानी समाज में समाप्त हो रहे कर्तव्यबोध को जीवित करने के साथ अपने आचरण से आदर्श प्रस्तुत करने का संदेश देती है।
प्रेमचंद की कथा में दोनों भाई ही मुख्य पात्र हैं। पांच साल बड़ा भाई पढ़ाई में दिन-रात जुटा रहता है पर परीक्षा में फेल हो जाता है। छोटा भाई पढ़ाई में कम मेहनत कर भी परीक्षा में पास हो लेता है। कम पढ़ाई करने वाले छोटे भाई का पढ़ाई के प्रति ईमानदार बने रहना, बड़े भाई के कठोर अनुशासन का ही प्रतिफल है। अन्यथा उसके पास यानी छोटे भाई के पास ऐसे अनेक संसाधन और अवसर हैं जो उसे बार-बार पढ़ाई करने से विमुख करते हैं।
संपूर्ण कथा वस्तु ऐसे ही प्रसंगों से अटी पड़ी है। कहानी की शुरुआत में ही छोटे भाई का यह वचन देखें- “मैं छोटा था, वह बड़े थे। मेरी उम्र नौ साल की थी वह चौदह साल के थे। उन्हें मेरी तम्बीह (डांट-डपट) और निगरानी का पूरा और जन्मसिद्ध अधिकार था और मेरी शालीनता इसी में थी कि उनके हुक्म को कानून समझूं।”
इन पंक्तियों में कूट-कूट कर भ्रात अनुशासन का बोध व्याप्त है। शासकीय अधिवक्ता नीरज श्रीवास्तव ने बताया कि जज अफजाल अंसारी पर फैसला पढ़ रहे थे तो उसके वकील ने कहा कि उनका मुवक्किल 1985 से लगातार पांच बार विधायक और दो बार सांसद रहा है। उसके खिलाफ गैंगस्टर का दोष सिद्ध नहीं होता।
जवाब में सरकारी वकील ने कहा कि अफजाल 1985 में विधायक निर्वाचित हो गया था। मुख्तार की आयु उस समय 20 या 22 वर्ष रही होगी। उस समय छोटे भाई को सही राह दिखाने के बजाय अफजाल ने न सिर्फ उसे राजनीतिक प्रश्रय दिया, उसके दुष्कृत्यों में भी सहभागी बना।
इसके बाद जज ‘बड़े भाई साहब’ कहानी सुनाते हुए कहते हैं, इस कहानी में बड़ा भाई, छोटे को अच्छे रास्ते पर ले जाने के लिए प्रेरित करता है, लेकिन अफजाल ऐसा नहीं कर सका।प्रेमचंद की कहानी में भाई होने का धर्म निभाने के लिए बड़ा भाई किस तरह अपनी इच्छाओं की तिलांजलि देता है।
यह इस कथन से स्पष्ट होता है – “”मेरा मन भी कनकौए (पतंग) उड़ाने का करता है। मेरा भी जी ललचाता है। लेकिन करूं क्या। खुद बेराह चलूं तो तुम्हारी रक्षा कैसे करूं? यह कर्तव्य भी तो मेरे सिर है! बड़े होने का धौंस दिखाने से भी नहीं चूकता।
छोटे भाई से कहता है- … मेरे देखते तुम बेराह चलने न पाओगे। तुम यूं न मानोगे तो (थप्पड़ दिखाकर) इसका प्रयोग भी कर सकता हूं। आखिरकार छोटा भाई मानता है कि वह सही समझा रहे हैं।
उसके मन में भाई साहब के प्रति श्रद्धा उत्पन्न होती है और सजल आंखों से कहता है-”आप जो फरमा रहे हैं, बिल्कुल सच है और आपको यह कहने का अधिकार है।”।