धुमाकोट में हुए भीषण बस हादसे में असमय काल का ग्रास बने कई बदनसीबों की चीथड़े हो चुकी देह को कफन तक नसीब नहीं हो पाया। रविवार देर शाम चादर व चुन्नियों में लपेट ‘अपनों’ के शवों को घर लेकर पहुंचे परिजन सोमवार सुबह कफन के लिए मारे-मारे फिरते रहे। लेकिन, नियति की क्रूरता देखिए कि धुमाकोट बाजार में भी कफन का कपड़ा कम पड़ गया।
धुमाकोट बस हादसे में इडिय़ाकोट पट्टी के नाला, पोखार, मैरा, भौन, पीपली, अपोला, डंडधार, बाड़ागाड, डंडोली, ढंगलगांव व परकंडई गांवों के लोग सबसे ज्यादा संख्या में हताहत हुए। हादसे के बाद लोग दिनभर घटनास्थल पर अपनों की रक्तरंजित निर्जीव काया के साथ बदहवास स्थिति में रहे। देर शाम पोस्टमार्टम के बाद जब शवों को घर ले जाने की बारी आई तो परिजनों के पास कफन तक नहीं था। प्रशासन की निष्ठुरता देखिए कि कफन की व्यवस्था का जिम्मा भी मृतकों के परिजनों पर ही छोड़ दिया।
आलम यह रहा कि पूरे दिन की बदहवासी और मातम के माहौल में लोगों को मौके पर दुपट्टे से लेकर चादर तक, जो भी कपड़ा मिला, उसी में अपने प्रियजनों के शव को बांध टैक्सियों के जरिये घरों तक लाना पड़ा। सोमवार सुबह शवों के लिए कफन का इंतजाम करने जब परिजन धुमाकोट बाजार पहुंचे तो कईयों को वहां भी कफन का कपड़ा नहीं मिल पाया।