पोषण का दावा करने वाले हेल्दी फूड प्रोडक्ट सेहत के लिए हानिकारक

_1481928849अगर आप अपने बच्चे की बढ़ोतरी और विकास के लिए बाजार में उपलब्ध पोषक उत्पादों का चुनाव कर रहे हैं तो संभल जाइए। प्रचारों में दिखाए जाने वाले इनसे जुड़े सभी दावे खोखले हैं। इनका न तो वैज्ञानिक आधार है और न ही पोषण देने का दावा करने वाले इन खाद्य उत्पादों में किसी तरह का विस्तृत ब्योरा और तथ्य दिया जा रहा है। यह काम फूड और बेवरेज तैयार करने वाली कई मशहूर कंपनियां कर रही हैं।
यह बात शुक्रवार को सेंटर फॉर साइंस एंड एनवॉयरनमेंट (सीएसई) की ओर से एक दिवसीय कार्यशाला के दौरान कही गई। कार्यशाला में मौजूद फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड अथॉरिटी ऑफ इंडिया (एफएसएएआई) के मुख्य कार्यकारी अधिकारी पवन अग्रवाल ने भी खाद्य उत्पादों पर पोषण का सही ब्योरा न देने की बात को स्वीकार किया है।
मसलन दूध में मिलाए जाने वाले कई पोषण पाउडरों में चीनी तय मानकों से कहीं ज्यादा पाई गई है वहीं जंक फूड में सोडियम यानी नमक की मात्रा अत्यधिक मिली है। लिहाजा पोषण की गफलत में हम जाने-अनजाने जरूरत से ज्यादा चीनी या नमक अपने बच्चों को दे रहे हैं।
सीएसई की निदेशक व पर्यावरणविद सुनीता नारायण ने कहा कि इन पहलुओं की बड़े पैमाने पर गहराई से जांच की गई है। सीएसई की ओर से फूड लेबलिंग, दावे और प्रचार, पुस्तिका में इन तथ्यों को उजागर किया गया है। सीएसई ने पोषण खाद्य उत्पादों का भ्रामक प्रचार करने वाले सेलिब्रेटी पर रोक लगाने की मांग भी की है। फूड और बेवरेज से जुड़े भ्रामक विज्ञापनों पर रोक लगाने की मांग की गई है। 

‘पैकेट पर कुछ लिखा और असल में कुछ और’

सुनीता नारायण ने कहा कि कई फूड उत्पादों पर दिए गए पोषण के ब्योरे की जांच की गई है। इसमें पाया गया कि एक ही कंपनी अपने अलग-अलग उत्पादों में मनमाने तौर पर नमक और चीनी की मात्रा का उल्लेख करती है। मसलन नेस्ले के 70 ग्राम मैगी पैक में नमक यानी सोडियम की मात्रा बताई गई है जबकि नेस्ले के ही 80 ग्राम आटा नूडल पैक में नमक की मात्रा नहीं बताई गई है।
इसी तरह कुरकुरे के ही दो अलग-अलग उत्पादों में नमक की मात्रा का उल्लेख नहीं किया गया है। इस कड़ी में कैलॉग, सफोला मसाला ओट, क्वेकर ओट जैसे कई उत्पादों में स्पष्ट तौर पर नमक की मात्रा का उल्लेख नहीं है। वहीं उन्होंने कहा कि कमजोर नियमों के चलते कंपनियां ऐसा कर रही हैं।
कार्यशाला में बताया गया कि एक फूड या पोषण खाद्य उत्पाद में यह स्पष्ट नहीं होता है कि एक बार परोसने पर कितना पोषण शरीर को मिलेगा। सुनीता नारायण ने कहा कि कमजोर कानून के चलते ऐसा हो रहा है। इस तरह का स्पष्ट ब्योरा और तथ्य फूड पैकेट पर न होने से ओवर ईटिंग की संभावना सबसे अधिक रहती है।
मिसाल के तौर पर बताया गया कि कुरकुरे पफकॉर्न यमी चीज में एक बार में 30 ग्राम खाया जा सकता है। जबकि पूरा पैकेट ही 34 ग्राम का है। ऐसे में व्यक्ति 4 ग्राम का क्या करेगा? वहीं सनफीस्ट यिप्पी नूडल्स का पूरा पैक 70 ग्राम का है जबकि एक बार कितना उपभोग करना है यह बताया ही नहीं गया है।
वहीं ब्रिटानिया और सनफीस्ट जैसे बिस्कुट व कुकीज उत्पादों में एक बार में कितना उपभोग किया जा सकता है पैकेट पर नहीं लिखा रहता। सीएसई ने फूड और वेबरेज से जुड़े भ्रामक विज्ञापनों पर रोक लगाने की मांग की है। कार्यशाला के दौरान एम्स के मानसिक रोग विभाग के हेड व प्रोफेसर राजेश सागर, वरिष्ठ ब्रांड विशेषज्ञ हरीश बिजूर, उपभोक्ता मामलों के विभाग के सचिव हेम पांडे भी ने भी अपनी बातें रखीं। 

एएससीआई के पास अधिकार नहीं

एडवरटाइजिंग स्टैंडर्ड काउंसिल ऑफ इंडिया (एएससीआई) जैसी संस्थाओं के पास इनके खिलाफ कार्रवाई करने का कोई अधिकार नहीं है। एएससीआई ऐसे उत्पादों के बारे में मिथ्या प्रचार की सिर्फ घोषणा कर सकता है।
बीते दो से तीन वर्षों में एएससीआई ने मिथ्या प्रचार करने के लिए फॉर्च्यून राइस ब्रान हेल्थ, सफोला गोल्ड ऑयल, जिवो कैनोला , कैलॉग स्पेशल के, कम्पलॉन, हॉर्लिक्स, जूनियर हार्लिक्स, डाबर च्यवनप्राश, मैगी वेजिटेबल आटा नूडल और मैगी ओट नूडल को भ्रामक प्रचार फैलाने वालों की श्रेणी में घोषित किया है। यह सभी उत्पाद बच्चों में विकास, तंदरुस्त दिल और दिमाग व सेहत बरकरार रखने का दावा करते हैं।
फूड पैकेट के अगले हिस्से में हो जानकारी 
सीएसई ने कहा है फूड और बेवरेज पैकेट के अग्र भाग पर ही स्पष्ट पोषण के श्रेणी के तहत ब्योरा होना चाहिए। अमेरिका व यूरोप के कई देशों में इस तरह का ब्योरा देना कंपनियों के लिए अनिवार्य है, जबकि भारत में ऐसा नहीं है। तंबाकू और सिगरेट उत्पादों की तरह पैकेट के अग्र भाग में ही चेतावनी और सही तथ्य दिए जाने चाहिए।
 
 

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