कारगिल युद्ध के दौरान छह वर्ष की उम्र में जुड़वां बेटों के सिर से पिता का साया उठ गया। इन मासूमों के लिए भला इससे दुखद घड़ी क्या होगी। शहादत पर सबको गर्व था, लेकिन वेदना विकट। विषम हालात के बावजूद मां ने धैर्य खोने के बजाय बेटों को भी वतन की हिफाजत में लगाने की ठान ली। मेहनत रंग लाई और ख्वाब आकार लेने लगा। एक बेटा सेना में लेफ्टिनेंट बना तो मानो मां का जीवन सफल हो गया। बेटा पिता की ही रेजीमेंट में देशसेवा में जुटा है तो दूसरा बेटा भी वर्दी पहनकर इस रवायत को आगे बढ़ाने की राह पर है।


लांस नायक शहीद बचन सिंह
पूरा हुआ मां का ख्वाब : पति की शहादत के बाद छोटे बच्चों की परवरिश के साथ-साथ कामेश बाला के सामने कई अन्य चुनौतियां भी थीं। कामेश ने खुद को बिखरने से रोका और साहस बटोरकर बच्चों पर ध्यान केंद्रित किया। कामेश ने ठान लिया था कि दोनों बेटों को भी देश सेवा में अर्पित करेंगी। कामेश कहती हैं कि जिस दिन बेटे का सैन्य अफसर के रूप में चयन हुआ, वह पल उनकी जिंदगी के लिए बहुत खास था। ऐसा लगा मानो जीवन सफल हो गया। हितेश कहते हैं कि सैनिक बनकर उन्होंने पिता को श्रद्धांजलि अर्पित की है और पिता की तरह ही वे भी मातृभूमि के चरणों में सर्वस्व अर्पित करने में कभी पीछे नहीं हटेंगे।
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