बिहार में बदले सियासी हालात और नीतीश-मोदी की दोस्ती पर आरजेडी के साथ-साथ कांग्रेस भी हमलावर है. कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने गुरुवार को नीतीश कुमार पर जमकर हमला बोला. नीतीश कुमार पर धोखे का आरोप लगाते हुए राहुल ने कहा- मुझे 3 महीने से मालूम था कि सियासी खिचड़ी पक रही है. पर यहां अब सवाल ये उठता है कि अगर कांग्रेस या राहुल गांधी को ये पता था कि ये उठापटक होने वाली है तो बिहार में महागठबंधन बचाने के लिए कुछ किया क्यों नहीं गया?कहां चूक गए राहुल?
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ऐसे वक्त में जब राहुल गांधी एक्टिव तरीके से कांग्रेस की अगुआई करने की कोशिश कर रहे हैं. अक्टूबर में पार्टी अध्यक्ष के रूप में उनकी ताजपोशी की तैयारियां भी चल रही हैं. ऐसे में बिहार में सत्ता महागठबंधन की बजाय एनडीए के खेमे में चला जाना विपक्ष के लिए एक बड़ा झटका है. वो भी ऐसे वक्त में जब विपक्ष 2019 में मोदी को चुनौती देने के लिए राष्ट्रीय महागठबंधन की कवायद कर रहा था. बिहार जैसे बड़े राज्य में कांग्रेस सत्ता की साझेदार थी. 2019 के लिए बिहार को मॉडल बनाने की बात हो रही थी. पिछले हफ्ते नीतीश कुमार राहुल गांधी से दिल्ली में आकर मिले औऱ तब भी महागठबंधन बच नहीं सका. इससे राहुल गांधी की सियासत पर सवाल खड़े होने शुरू हो जाएंगे.
इशारों को नहीं पकड़ पाए राहुल गांधी?
राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति चुनाव में भी कांग्रेस ने उम्मीदवार उतारा लेकिन बिहार में तब कांग्रेस के सहयोगी रहे नीतीश कुमार ने राष्ट्रपति चुनाव में एनडीए उम्मीदवार को समर्थन दे दिया. इसके लिए कांग्रेस के रणनीतिकार और राहुल गांधी ने क्या कोई पहल की ताकि महागठबंधन को बचाया जा सके. जिस राष्ट्रीय महागठबंधन के फॉर्मूले के साथ 2019 में मोदी को चुनौती देने की विपक्ष की योजना थी उसका मॉडल ही बिहार में फेल हो गया. अब कांग्रेस और तमाम विपक्षी दलों को फिर से नई नीति के साथ सामने आना पड़ेगा.
विधानसभा के अहम चुनावों से पहले झटका
इसी साल गुजरात और हिमाचल प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं. इससे पहले बिहार जैसे बड़े राज्य की सत्ता से दूर हो जाना कांग्रेस के लिए बड़ा झटका है. गोवा और मणिपुर में कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी लेकिन वहां भी बीजेपी सरकार बनाने में कामयाब रही. हाल में जब यूपी के चुनाव में बीजेपी के हाथों करारी हार मिली तब जाकर मायावती, अखिलेश यादव और कांग्रेस महागठबंधन के आइडिया को लेकर साथ आए थे.
बिहार में एकता बनाए रखकर विपक्षी दल आने वाले चुनावों में बीजेपी के विजय का रथ रोक सकते थे लेकिन बिहार दांव मोदी-शाह की रणनीति की बड़ी सफलता है और विपक्ष के लिए मुकाबले में लौटना और मुश्किल होगा. खासकर विपक्ष का चेहरा बनने की राहुल गांधी की कोशिशों के लिए भी इसे बड़ा झटका माना जाएगा.