अक्टूबर 2015 में एक नाबालिग ने अपने नाना पर रेप का आरोप लगाया था। अब करीब ढाई साल चले कोर्ट केस के बाद दिल्ली की अदालत ने 65 वर्षीय बुजुर्ग को बरी कर दिया है। यह फैसला सुनाते हुए कोर्ट ने यह भी कहा कि देश में महिलाओं और बच्चों के झूठे मुकदमों से पुरुषों को बचाने के लिए कोई कानून नहीं है।
विशेष पोक्सो कोर्ट की अतिरिक्त सत्र जज निवेंदिता अनिल शर्मा ने अपने फैसले में कहा कि लड़की ने अपने बयान बार-बार बदले हैं। वहीं उसकी मां के बयान भी बुजुर्ग पर आरोप साबित नहीं कर सके।
जज ने यह भी कहा कि भले ही आरोपी बरी हो गया हो, लेकिन हो सकता है कि समाज में कोई उसे निर्दोष न माने और इस तरह वह जिंदगीभर ग्लानी में रहेगा। साथ ही इतनी उम्र में उन्हें निर्दोष होने के बाद भी लंबा समय जेल में गुजारना पड़ा है।
9 साल की नातिन ने बुजुर्ग पर डिजिटल रेप का आरोप लगा था। जांच के बाद पुलिस ने केस दर्ज किया था और चार्जशीट दाखिल की थी, लेकिन आरोप गलत साबित हुए। सुनवाई के दौरान बुजुर्ग ने कहा कि उनकी बेटी ने ये झूठे आरोप लगवाए हैं, क्योंकि वह उनकी प्रॉपर्टी पर कब्जा करना चाहती है। बुजुर्ग के अनुसार, उन्होंने पिता का धर्म निभाते हुए बेटी को अपने ही घर में रहने की अनुमति दी थी, लेकिन प्रॉपर्टी के लालच में आकर बेटी ने ही ऐसी साजिश रच दी।
सुनवाई के दौरान कोर्ट ने पाया कि नाबालिग अपने नाना पर लगाए आरोप साबित नहीं कर सकी। उसने जज के सामने कुछ ऐसी बातें कहीं, जो पुलिस रिपोर्ट में नहीं थीं। उसके साथ कब-कब किस तरह हरकतें हुई, यह भी साबित नहीं हो पाया। इस तरह कोर्ट को कोई ऐसा कारण नहीं मिली कि बुजुर्ग को दोषी माना जाए। फैसले के आखिरी में जज ने कहा, हर कोई महिलाओं और बच्चों के राइट्स की बात रह रहा है, उसके लिए लड़ रहा है, लेकिन किसी को भी पुरुषों के सम्मान की परवाह नहीं है।