राजधानी दिल्ली का बचपन नशे की गिरफ्त में दिखाई दे रहा है. यह बात अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) की हाल ही में सामने आई रिपोर्ट से पता चलती है. रिपोर्ट दिल्ली सरकार को भेज दी गई है. बच्चों को इस लत से बचाया जा सके, इसके लिए सरकार प्लान भी तैयार कर रही है.
दिल्ली सरकार के समाज कल्याण विभाग ने साल 2016 में एम्स से ड्रग्स के शिकार बच्चों पर सर्वे करने के लिए कहा था. यह सर्वे स्ट्रीट चिल्ड्रेन पर किया जाना था. एम्स ने अपनी रिपोर्ट सरकार को भेज दी है. रिपोर्ट में 70 हजार बच्चों को नशे की लत का आदि बताया है. सड़क पर घूमने वाले बच्चे तम्बाकू से लेकर खतरनाक नशे हेरोइन तक के शिकार हैं.
रिपोर्ट के मुताबिक सबसे ज्यादा 20 हजार बच्चे तम्बाकू के शिकार हैं. शराब पीने वाले बच्चों की तादाद 9,450 बताई गई है. भांग-गांजे के शिकार 5600, हेरोइन के 840, सूंघने वाले नशे के शिकार बच्चों की तादाद 7,910 बताई गई है. रिपोर्ट में कहा गया है कि कुछ बच्चे इंजेक्शन से भी ड्रग्स लेते हैं. इसके अलावा और भी कई तरह के नशे के शिकार बच्चे बताए गए हैं.
रिपोर्ट के मुताबिक हेरोइन का नशा करने वाले बच्चों की उम्र 12-13 के बीच है, जबकि किसी भी तरह का ड्रग्स लेने वाले बच्चों की उम्र 9 साल है. एम्स की इस रिपोर्ट में सरकार से कुछ सिफारिशें भी की गई हैं. रिपोर्ट में कहा गया है कि बच्चों को साफ माहौल दिया जाए.
कोशिश हो कि इन बच्चों को परिवार के पास भेज दिया है. सूत्रों का कहना है कि सरकार ने दिल्ली के स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों में नशे की लत जानने के लिए भी एक सैंपल सर्वे कराया है. इसमें 296 बच्चों ने कहा कि उन्होंने कभी कोई नशा किया है, जबकि 5863 का कहना है कि उन्होंने कभी कोई नशा नहीं किया.
नशे के शिकार स्ट्रीट चिल्ड्रन के इलाज के लिए दिल्ली सरकार ने प्लान भी तैयार किया है. सूत्रों के मुताबिक सरकार इस मुद्दे को लेकर बेहद गंभीर है. ईस्ट दिल्ली के इहबास अस्पताल में एक स्पेशल क्लिनिक ऐसे बच्चों के इलाज के लिए बनाने का प्लान है.
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