द्वापरयुग के अंत के साथ कलयुग की शुरूआत हुई। समय के साथ अब काफी कुछ बदल चुका है, लेकिन नहीं बदला हैं तो उस समय का यह निर्माणाधीन मंदिर। यह मंदिर वर्तमान में भी है। हालांकि समय-समय पर इसका राजाओं द्वारा जीर्णोद्धार करवाया गया।
द्वापरयुग का यह मंदिर उत्तराखंड के मसूरी से 75 किमी दूर है। यह मंदिर लखमंडल गांव में स्थित है। किंवदंती है कि लाक्षाग्रह से जब पांडव बाहर निकले तब उन्होंने इसी मंदिर के गुप्त रास्ते का उपयोग किया था। कुछ दिन पांडव इस मंदिर में रहे थे। मान्यता है इस छोटे से मंदिर को बाद में पांडवों ने भव्य बनवाया था।
भगवान शिव के इस मंदिर में कई शिवलिंग हैं। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की मानें तो इस मंदिर का जीर्णोद्वार 12वीं और 13वीं शताब्दी के बीच नागर शैली में किया गया।
मंदिर के बारे में एक और रहस्यमयी बात प्रचलित है वह यह कि यदि किसी का भी मंदिर परिसर में निधन हो जाए तो उसे यहां कुछ देर तक रखने पर वह जीवित हो जाता है। हालांकि यह स्थानीय लोगों द्वारा प्रचलित मान्यता है।