उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहा कि आज विकास और संरक्षण के बीच एक नाजुक संतुलन बनाने की आवश्यकता है, जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि लोगों की विकास आवश्यकताओं को पूरा करते हुए हमारे जंगल फलते-फूलते रहें। उन्होंने कहा कि वन हमारे लाखों नागरिकों, विशेषकर आदिवासी समुदायों की जीवन रेखा हैं। वनों का संरक्षण महत्वपूर्ण है, लेकिन वन संसाधनों पर निर्भर समुदायों को उनसे अलग नहीं किया जा सकता है।
देहरादून में वन अनुसंधान संस्थान (एफआरआई) में यूनाइटेड नेशन्स फोरम ऑन फॉरेस्ट (यूएनएफएफ) की बैठक के समापन समारोह को संबोधित करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि सतत विकास और जलवायु परिवर्तन पर काबू पाना सुरक्षित भविष्य के लिए अत्यंत आवश्यक है। भावी चुनौतियाें के प्रति लोगों को आगाह करते हुए उन्होंने कहा कि यदि विकास टिकाऊ नहीं है तो पृथ्वी पर जीवित रहना मुश्किल होगा।
उन्होंने कहा कि हम जिस जलवायु चुनौती का सामना कर रहे हैं, वह किसी व्यक्ति को प्रभावित नहीं करेगी, बल्कि यह पूरी पृथ्वी को प्रभावित करेगी। उन्होंने कहा कि जलवायु परिवर्तन कोविड चुनौती से कहीं अधिक गंभीर है। उपराष्ट्रपति ने पर्यावरणीय चुनौतियों के समाधान के लिए समन्वित वैश्विक रुख को एकमात्र विकल्प बताते हुए कहा कि एक देश इसका समाधान नहीं ढूंढ सकता है। समाधान खोजने के लिए युद्धस्तर पर सभी देशों को एकजुट होना होगा।
उत्तराखंड के राज्यपाल, लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह (सेनि), वन महानिदेशक चंद्र प्रकाश गोयल, निदेशक यूएनएफएफ जूलियट बियाओ कॉडेनौक पो, अतिरिक्त महानिदेशक वन बिवाश रंजन, भरत लाल सहित विभिन्न देशों और अंतरराष्ट्रीय संगठनों के प्रतिनिधि मौजूद रहे।
जब से देवभूमि उतरे हैं, दिव्यता और शांति का अनुभव कर रहे : धनखड़
उत्तराखंड के दो दिवसीय दौरे पर आए उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने इससे पहले गंगोत्री, केदारनाथ और बदरीनाथ का दौरा किया। अपने अनुभव को साझा करते हुए उन्होंने कहा कि जबसे वह और उनकी पत्नी देवभूमि में उतरे हैं, तब से दिव्यता, उदात्तता, शांति और मनोरम वातावरण का अनुभव कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि पवित्र धामों की ये यात्राएं उनकी यादों में हमेशा बनी रहेंगी। उपराष्ट्रपति ने कहा कि ये दिव्य स्थान हमारी सभ्यता के लोकाचार और सार को प्रतिबिंबित करते हैं। कई महान लोगों ने शांति और खुशी पाने के लिए इन पवित्र और पूजनीय स्थलों पर आकर इनका लाभ उठाया।